मन मेरा, उन्मुक्त गगन सा, काले मेघा सा इतराए, तोड़ सारी बंदिशों को, परिंदे सा निर्बाध उड़ना चाहे। झूम उठूँ, सारे गमों को भूल, पवन के वेग सा बहती जाऊँ, रिश्ते - नातों को धता बता, तितलियों सा मैं बौराऊँ। गाऊँ ऐसे, कुहक – कुहक कर कोकिल सा, मिठास हवा में घोलती जाऊँ, रश्मों – रिवाजों का उतार कर चोला, स्वछंद विचरती जाऊँ| नाच उठूँ, हवा संग जैसे धान की बालियाँ सरसराये, कल की चिंता में क्यों रहूँ मैं? आज में जी लूँ ऐसे, प्रकृति और मैं एकरंग हो जाएँ | -कुमार भास्कर 💞 स्वछंद मन #womanhood #womanempowerment #mankibaat #Poetry #poetry_voiceofsoul #womaniya