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लिखते-लिखते दर्द आलम कुछ, यूँ हो चला है; कि कलम से

लिखते-लिखते दर्द आलम कुछ, यूँ हो चला है;
कि कलम से स्याही बनकर लहू बह चला है।

लिखते-लिखते दर्द आलम कुछ, यूँ हो चला है; कि कलम से स्याही बनकर लहू बह चला है। #Books

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