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तेरी किताब के किस्से समझ नहीं आते। ऐ जिन्दगी तुझक

तेरी किताब के किस्से समझ नहीं आते। 
ऐ जिन्दगी तुझको पढ़ कर भी समझ नहीं पाते।। 

कितने पन्ने फाडू और कितने संभाल कर रखूँ। 
तेरे कितने हिस्से हैं समझ नहीं पाते।। 

वैसे तो चौकाया है जिंदगी, हर मोड़ तूने।
लेकिन अभी और कितना बाकी है समझ नहीं पाते।। 

एक पल में जिंदगी कहा से कहा पहुंचा दें। 
तेरे ये चलने चलाने के तरीके समझ नहीं पाते।। 

पर फिर भी शुकराना तेरे हर एक पल का जिंदगी। 
क्योंकि मौत कब पास से गुजर जाए हम समझ नहीं पाते।।  तेरी किताब के किस्से समझ नहीं आते। 
ऐ जिन्दगी तुझको पढ़ कर भी समझ नहीं पाते।। 

कितने पन्ने फाडू और कितने संभाल कर रखूँ। 
तेरे कितने हिस्से हैं समझ नहीं पाते।। 

वैसे तो चौकाया है जिंदगी, हर मोड़ तूने।
लेकिन अभी और कितना बाकी है समझ नहीं पाते।।
तेरी किताब के किस्से समझ नहीं आते। 
ऐ जिन्दगी तुझको पढ़ कर भी समझ नहीं पाते।। 

कितने पन्ने फाडू और कितने संभाल कर रखूँ। 
तेरे कितने हिस्से हैं समझ नहीं पाते।। 

वैसे तो चौकाया है जिंदगी, हर मोड़ तूने।
लेकिन अभी और कितना बाकी है समझ नहीं पाते।। 

एक पल में जिंदगी कहा से कहा पहुंचा दें। 
तेरे ये चलने चलाने के तरीके समझ नहीं पाते।। 

पर फिर भी शुकराना तेरे हर एक पल का जिंदगी। 
क्योंकि मौत कब पास से गुजर जाए हम समझ नहीं पाते।।  तेरी किताब के किस्से समझ नहीं आते। 
ऐ जिन्दगी तुझको पढ़ कर भी समझ नहीं पाते।। 

कितने पन्ने फाडू और कितने संभाल कर रखूँ। 
तेरे कितने हिस्से हैं समझ नहीं पाते।। 

वैसे तो चौकाया है जिंदगी, हर मोड़ तूने।
लेकिन अभी और कितना बाकी है समझ नहीं पाते।।