अपने जीवन के अनुभव अब किससे प्रकट करूं बहुत तो टूट चुका हूं मैं इससे अधिक क्या विकट करूं प्रत्येक मनुष्य यहां अपनी समस्याओं से तंग है हर कोई यहां आर्थिक रूप से अपंग है मात्र आशायें ही यहां सभी के संग हैं बरसों से चली आ रही कुछ परम्परायें आज भी प्रसंग हैं प्रस्तुत तौर तरीके समाज का प्रमुख अंग हैं चंद्र रात्रि में खिली कोमल चांदनी जीवन के लिये उज्जवल तरंग है बनावटी है सारी खिलखिलाहट,निश्छल तो उस बालक की मुस्कान है बनाये रखो तुम भी स्वयं को अबोध बालक के भांति क्यूंकि ईश्वर के लिये बस मनुष्य बालक के जैसा ही महान है कवि आयुष कुमार गौतम की कलम से जीवन के अनुभव किससे प्रकट करुं(कवि आयुष कुमार गौतम की कलम से)