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शीला लेख।। छेनी हथौड़ी हाथ मे ले, स्मृतियों की वक्

शीला लेख।।

छेनी हथौड़ी हाथ मे ले, स्मृतियों की वक्षशीला पर,
शब्द हूँ मैं कुरेदता।।
बन दधीचि अस्थियों का ले तूणीर तरकश में भर,
तम हूँ मैं भेदता।।

धीर स्थिर अन्तःकरण का, नीर ले आंखों में भर,
तार हूँ मैं छेड़ता।
मूक बधिर मैं सूरदास, शब्ददृष्टि संग लिए समर
पार हूँ मैं देखता।।

शिशु, बालक, वयस्क, वृद्ध, सबके मन वास कर,
ज्ञानचक्षु मैं फेरता।
कोई सबल, निर्बल हो या हो दिनचर या निशाचर,
दर्द सबकी टेरता।।

पौरुष का हुंकार भी मैं, नारी का गहना मान बन,
निज से हूं झेंपता।
पवनसुत का बल कभी तो कभी कान्हा समान बन,
वस्त्र भी हूँ फेंकता।।

शब्द की महत्ता जो समझे, बन स्तंभ अशोक का,
ज्ञान हूँ मैं टेकता।।
बन शीला लेख मैं, खुशी से परे, बिन शोक का,
जन जन को मैं सेवता।।

©रजनीश "स्वछंद" शीला लेख।।

छेनी हथौड़ी हाथ मे ले, स्मृतियों की वक्षशीला पर,
शब्द हूँ मैं कुरेदता।।
बन दधीचि अस्थियों का ले तूणीर तरकश में भर,
तम हूँ मैं भेदता।।

धीर स्थिर अन्तःकरण का, नीर ले आंखों में भर,
शीला लेख।।

छेनी हथौड़ी हाथ मे ले, स्मृतियों की वक्षशीला पर,
शब्द हूँ मैं कुरेदता।।
बन दधीचि अस्थियों का ले तूणीर तरकश में भर,
तम हूँ मैं भेदता।।

धीर स्थिर अन्तःकरण का, नीर ले आंखों में भर,
तार हूँ मैं छेड़ता।
मूक बधिर मैं सूरदास, शब्ददृष्टि संग लिए समर
पार हूँ मैं देखता।।

शिशु, बालक, वयस्क, वृद्ध, सबके मन वास कर,
ज्ञानचक्षु मैं फेरता।
कोई सबल, निर्बल हो या हो दिनचर या निशाचर,
दर्द सबकी टेरता।।

पौरुष का हुंकार भी मैं, नारी का गहना मान बन,
निज से हूं झेंपता।
पवनसुत का बल कभी तो कभी कान्हा समान बन,
वस्त्र भी हूँ फेंकता।।

शब्द की महत्ता जो समझे, बन स्तंभ अशोक का,
ज्ञान हूँ मैं टेकता।।
बन शीला लेख मैं, खुशी से परे, बिन शोक का,
जन जन को मैं सेवता।।

©रजनीश "स्वछंद" शीला लेख।।

छेनी हथौड़ी हाथ मे ले, स्मृतियों की वक्षशीला पर,
शब्द हूँ मैं कुरेदता।।
बन दधीचि अस्थियों का ले तूणीर तरकश में भर,
तम हूँ मैं भेदता।।

धीर स्थिर अन्तःकरण का, नीर ले आंखों में भर,

शीला लेख।। छेनी हथौड़ी हाथ मे ले, स्मृतियों की वक्षशीला पर, शब्द हूँ मैं कुरेदता।। बन दधीचि अस्थियों का ले तूणीर तरकश में भर, तम हूँ मैं भेदता।। धीर स्थिर अन्तःकरण का, नीर ले आंखों में भर, #Poetry #Quotes #kavita #hindikavita #hindipoetry