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ना हांथो में कलम ,ना तन पे इक लिबास है आज फिर कैस

ना हांथो में कलम ,ना तन पे इक लिबास है 
आज फिर कैसे कहे वो, ये आजादी खास है 

झोपड़ी में आज भी घुटती, उनकी साँस है 
मुस्कुरा फिर क्यों कहे कि,आज शाम -ए-खास है 

जिंदगी भर जो सुने हो ,झोलिया भर गालिया  
आज फिर वो क्यों बजाये ,इस सभा में तालिया

आज मालाए पड़ी थी, जिन  गिद्धों के गले 
कल गली में वो मिले थे ,हाँथ में बोटी लिए 

मैंने पूछा कौन है ,इस उजली टोपी के तले
वह कहा जो झोपड़ो को ,कुचले जूतों के तले

सब सभाये मग्न है ,भाषणों के शोर में 
आज भी सर कट रहे है ,माँ भारती के गोद में 
 
बिक  रही है बेटीया खादी पोशाकी आड़ में 
एक माँ  फिर रो रही है ,छिपकर  किसी किवाड़ में 

जो लड़े थे दुश्मनो से ,हथेली  में मौतों के लिए 
उनके नामो की मची है, लूट वोटो  के लिए

वो खड़े थे मौन हांथो में कटोरी  को लिए ,
खादी जो उतरी थी बाजारों में, गाँधी को लिए 

आज भारत माँ की तस्वीरें, बिलख कर रो पड़ी 
उसकी संताने जो ,कौमो  की वजह से लड़  पड़ी #अधूरी  #आजादी
ना हांथो में कलम ,ना तन पे इक लिबास है 
आज फिर कैसे कहे वो, ये आजादी खास है 

झोपड़ी में आज भी घुटती, उनकी साँस है 
मुस्कुरा फिर क्यों कहे कि,आज शाम -ए-खास है 

जिंदगी भर जो सुने हो ,झोलिया भर गालिया  
आज फिर वो क्यों बजाये ,इस सभा में तालिया

आज मालाए पड़ी थी, जिन  गिद्धों के गले 
कल गली में वो मिले थे ,हाँथ में बोटी लिए 

मैंने पूछा कौन है ,इस उजली टोपी के तले
वह कहा जो झोपड़ो को ,कुचले जूतों के तले

सब सभाये मग्न है ,भाषणों के शोर में 
आज भी सर कट रहे है ,माँ भारती के गोद में 
 
बिक  रही है बेटीया खादी पोशाकी आड़ में 
एक माँ  फिर रो रही है ,छिपकर  किसी किवाड़ में 

जो लड़े थे दुश्मनो से ,हथेली  में मौतों के लिए 
उनके नामो की मची है, लूट वोटो  के लिए

वो खड़े थे मौन हांथो में कटोरी  को लिए ,
खादी जो उतरी थी बाजारों में, गाँधी को लिए 

आज भारत माँ की तस्वीरें, बिलख कर रो पड़ी 
उसकी संताने जो ,कौमो  की वजह से लड़  पड़ी #अधूरी  #आजादी