साँसों को कोई डोर खींचती है... पंख लगा मन परिंदा नहीं हो जाता है .. चाहतों को चोट पहुंचती है... इंसान जरूरतों से जिंदा नही हो जाता है .. साँसों को कोई डोर खींचती है पंख लगा मन परिंदा नहीं हो जाता है चाहतों को चोट पहुंचती है इंसान जरूरतों से जिंदा नही हो जाता है