सूरत पाया घर बार । शब्द भरतार, राधास्वामी भारी ।
बच गई अब उसकी ख्वारी ।।टेर।।
बहु भटकी सूरत घर घर । चौरासी चोले धर धर ।।
अज्ञान अवस्था बहकर । लुट गई भारी (1)
अब धुर का जागा भागा । सतगुरू से नाता लागा ।
कर दया उन दिया सुहाग । स्वामी पाया री (2)
सतगुरू ने किरपा धारी । मोहिं अन्तर दीन्ह सहारी ।।
कर्मों का छुट गया भारी । सत्तदेश पाया री (3)
सत्तपुरुष का पाया दरशा । चेतन्य अंग से परसा ।।
सत्त शब्द की होती बरषा । अमृत धारी (4)
राधास्वामी धाम समाई । राधास्वामी द्याल को पाई ।।
हरदम उनके गुण गाई । पिव पाया री (5)
"राधास्वामी"
राधास्वामी प्रीति बानी 3-53
निज्ज घर अपने चालिए ।