जितना भी सँभालूँ मैं, सम्भलता भी नहीं है बहलाने पे आ जाऊँ तो, बहलता भी नहीं है गुस्से में झटक दूँ तो, लिपट जाता है मुझसे तेरा ख़्याल दिल से, निकलता भी नहीं है