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टूटता हूं, गिरता हूं , समहलता हूं, सोचता हूं, बिख

टूटता हूं, गिरता हूं , समहलता हूं,
सोचता हूं,
 बिखर क्यों नहीं जाता।
वफा कि जो रोज शिकायत हैं उसे, मुझसे,
सोचता हूं  ,
वो मुकर क्यों नहीं जाता।
ये जो रोज दीवानों की तरह मरता हूं तुझपे
ये ख़ुदा,
 मैं मुक्कमल मर क्यों नहीं जाता। #street
टूटता हूं, गिरता हूं , समहलता हूं,
सोचता हूं,
 बिखर क्यों नहीं जाता।
वफा कि जो रोज शिकायत हैं उसे, मुझसे,
सोचता हूं  ,
वो मुकर क्यों नहीं जाता।
ये जो रोज दीवानों की तरह मरता हूं तुझपे
ये ख़ुदा,
 मैं मुक्कमल मर क्यों नहीं जाता। #street