टूटता हूं, गिरता हूं , समहलता हूं, सोचता हूं, बिखर क्यों नहीं जाता। वफा कि जो रोज शिकायत हैं उसे, मुझसे, सोचता हूं , वो मुकर क्यों नहीं जाता। ये जो रोज दीवानों की तरह मरता हूं तुझपे ये ख़ुदा, मैं मुक्कमल मर क्यों नहीं जाता। #street