गगरी हाथों में लिए , पनघट रही निहार । प्यासे होगें घर पिया , करती रही विचार ।। करती रही विचार , नीर है मैला कुचला । दूजा नही उपाय , जल का स्तर है निचला ।। यही आज है व्याधि , शहर हो या हो नगरी । लिए हाथ में नार , देख लो खाली गगरी ।। पायल झुमका औ कड़ा , पहने दिखती नार । अलकें कुछ लटकी हुई , लगता करे विचार ।। लगता करे विचार , नीर बिन खाली गगरी । जाए वह किस घाट , घाट तो इक ही नगरी ।। सूख-सूख कर आज , गला है पिय का घायल । कैसे करूँ निहाल , बजाकर मैं अब पायल ।। ११/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गगरी हाथों में लिए , पनघट रही निहार । प्यासे होगें घर पिया , करती रही विचार ।। करती रही विचार , नीर है मैला कुचला । दूजा नही उपाय , जल का स्तर है निचला ।। यही आज है व्याधि , शहर हो या हो नगरी । लिए हाथ में नार , देख लो खाली गगरी ।। पायल झुमका औ कड़ा , पहने दिखती नार ।