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कृपया इस लघु लेख को कैप्शन में पढ़कर अपनी प्रतिक्रि

कृपया इस लघु लेख को कैप्शन में पढ़कर
अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें अंधेरे के लिए प्रयास नहीं करने होतें
यह शाश्वत है,
शुरू से है और अंत के बाद भी रहेगा।
जबकि प्रकाश जो हमें अंधकार के विरुद्ध लड़ता प्रतीत होता है, वह भी इससे अलग नहीं,
प्रकाश का अस्तित्व ही अंधकार पर टिका है
कभी-कभी सोंचता हूँ कि
जब तम ही तमाम है, फिर हम ईश्वर को प्रकाश से जोड़कर क्यों देखते हैं, तब महसूस करता हूँ कि तम क्रियाशील नहीं होता, इसमें शिथिलता है अक्रियाशीलता है।
इसमें गति नहीं तो जीवन भी नहीं, अर्थात जीवन की परिभाषा गति में निहित है, जो गतिशील है वही जीवित है। अक्रियाशीलता के प्रति अपने जड़त्व के मोह से छूटे बिना तम जीवन नहीं दे सकता, ईश्वर नहीं बन सकता। पर जब यह अंधकार अपने गतिमान न हो सकने के मिथक को विस्फोट के साथ फोड़ देता है, तो प्रकाश में रूपांतरित हो उठता है. गतिशील हो जीवनदायी बन, ईश्वर की संज्ञा प्राप्त कर लेता है। लौकिक रूप में यदि प्रकाश, उम्मीद, आशा ही ईश्वर है तो इस ईश्वर के जनक उस तम को आप क्या कहेंगे⁉️
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यह शाश्वत है,
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जबकि प्रकाश जो हमें अंधकार के विरुद्ध लड़ता प्रतीत होता है, वह भी इससे अलग नहीं,
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कभी-कभी सोंचता हूँ कि
जब तम ही तमाम है, फिर हम ईश्वर को प्रकाश से जोड़कर क्यों देखते हैं, तब महसूस करता हूँ कि तम क्रियाशील नहीं होता, इसमें शिथिलता है अक्रियाशीलता है।
इसमें गति नहीं तो जीवन भी नहीं, अर्थात जीवन की परिभाषा गति में निहित है, जो गतिशील है वही जीवित है। अक्रियाशीलता के प्रति अपने जड़त्व के मोह से छूटे बिना तम जीवन नहीं दे सकता, ईश्वर नहीं बन सकता। पर जब यह अंधकार अपने गतिमान न हो सकने के मिथक को विस्फोट के साथ फोड़ देता है, तो प्रकाश में रूपांतरित हो उठता है. गतिशील हो जीवनदायी बन, ईश्वर की संज्ञा प्राप्त कर लेता है। लौकिक रूप में यदि प्रकाश, उम्मीद, आशा ही ईश्वर है तो इस ईश्वर के जनक उस तम को आप क्या कहेंगे⁉️
arsh1145292537229

Arsh

Bronze Star
New Creator

अंधेरे के लिए प्रयास नहीं करने होतें यह शाश्वत है, शुरू से है और अंत के बाद भी रहेगा। जबकि प्रकाश जो हमें अंधकार के विरुद्ध लड़ता प्रतीत होता है, वह भी इससे अलग नहीं, प्रकाश का अस्तित्व ही अंधकार पर टिका है कभी-कभी सोंचता हूँ कि जब तम ही तमाम है, फिर हम ईश्वर को प्रकाश से जोड़कर क्यों देखते हैं, तब महसूस करता हूँ कि तम क्रियाशील नहीं होता, इसमें शिथिलता है अक्रियाशीलता है। इसमें गति नहीं तो जीवन भी नहीं, अर्थात जीवन की परिभाषा गति में निहित है, जो गतिशील है वही जीवित है। अक्रियाशीलता के प्रति अपने जड़त्व के मोह से छूटे बिना तम जीवन नहीं दे सकता, ईश्वर नहीं बन सकता। पर जब यह अंधकार अपने गतिमान न हो सकने के मिथक को विस्फोट के साथ फोड़ देता है, तो प्रकाश में रूपांतरित हो उठता है. गतिशील हो जीवनदायी बन, ईश्वर की संज्ञा प्राप्त कर लेता है। लौकिक रूप में यदि प्रकाश, उम्मीद, आशा ही ईश्वर है तो इस ईश्वर के जनक उस तम को आप क्या कहेंगे⁉️ #Science #Mythology #thought #Arsh