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इश्क के ढब से गा़फिल हो तुम सच पूछो तो जा़हिल हो त

इश्क के ढब से गा़फिल हो तुम
सच पूछो तो जा़हिल हो तुम
हांथ में पत्थर ले के खड़े हो
क्युं मजनू के पीछे पड़े हो
देखो ये इंसाफ़ नहीं है
एक जवां है एक हंसी है
जुर्म बराबर का है यारो
लैला को भी पत्थर मारो

   Zubair Ali Tabish

©sundram shukla Alfaz Dil ke##
इश्क के ढब से गा़फिल हो तुम
सच पूछो तो जा़हिल हो तुम
हांथ में पत्थर ले के खड़े हो
क्युं मजनू के पीछे पड़े हो
देखो ये इंसाफ़ नहीं है
एक जवां है एक हंसी है
जुर्म बराबर का है यारो
लैला को भी पत्थर मारो

   Zubair Ali Tabish

©sundram shukla Alfaz Dil ke##

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