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" जब मन ज्यादा उछलने लगे अहम का वहम बढ़ने लगे स्व

" जब मन ज्यादा उछलने लगे
अहम का वहम बढ़ने लगे

स्वयं को बड़ा दूसरे छोटे लगे
संस्कार तमीज के लहजे घटने लगे

अहंकार सर चढ़ने लगे
स्वयं का दिखावा सजने लगे

हीरे मोती सोना चांदी अपने लगे
अपने जब चुभने लगे 

एक रात शमशान जाकर गुजारे
स्वयं हकीकत समझने लगे

ज्यादा उछलने लगे********!"

©kanchan Yadav
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