पिंजरे का पंछीं
बचपन से मैंने एक परिंदा पाला
ना जाने कहां से उड़ आया था
अपने साथ ढ़ेरों खुशियां लाया था ......
कई सालों तक हम आपस में बात करते रहे
अपने हर दुःख-सुख सांझा करते रहे ....
अपने बंद पिंजरे में उसने एक दिन कहा
अब मैं उड़ना चाहता हूं #Poet#Hindi#Raj#poem#shares