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पिंजरे का पंछीं बचपन से मैंने एक परिंदा पाला ना ज

पिंजरे का पंछीं
बचपन से मैंने एक परिंदा पाला 
ना जाने कहां से उड़ आया था 
अपने साथ ढ़ेरों खुशियां लाया था ......
कई सालों तक हम आपस में बात करते रहे 
अपने हर दुःख-सुख सांझा करते रहे ....
अपने बंद पिंजरे में उसने एक दिन कहा 
अब मैं उड़ना चाहता हूं 
मुझे आजाद कर दो 
मैं अपनी जिंदगी जीना चाहता हूं....... 
मैं भी उसके दुःख को समझ गई 
मन कठोर कर उसको मैंने आज़ाद किया 
उड़ने के लिए उसके पैरों को सहलाया 
कैसे उड़ना है वह भी सिखाया .…..
मुझे आशीष दे वह परिंदा 
अपनी खुशियां समेटने के लिए उड़ गया 
मेरा दिल उसके प्यार में घिर गया 
सोचा कभी तो मुझसे मिलने आएगा 
मेरा प्यार उसे ले आएगा ......
पर कुदरत का खेल देखो 
ना जाने कहां खो गया 
मेरी आंखों से कैसे दूर हो गया 
आज भी मेरी निगाहें उसे खोजती हैं.....
आज हर पल उस पिंजरे को 
दुःखी मन से घूरती हूं 
सोचती हूं काश उसे ना उड़ने देती 
कम से कम आज भी मैं उससे बातें करती...... 
हम दोनों की कहानी अब खत्म हो गई
मेरा दिल और उसका पिंजरा 
एक दूसरे को देखते हैं 
फिर अतीत के पल समेट कर 
जीने की नाकाम कोशिश करते हैं.....
आज भी मैं इस पहेली को न समझ पाई 
अपने इस नायाब परिंदे को मैं न ढूंढ पाई.....
@_muskurahat_ पिंजरे का पंछीं
बचपन से मैंने एक परिंदा पाला 
ना जाने कहां से उड़ आया था 
अपने साथ ढ़ेरों खुशियां लाया था ......
कई सालों तक हम आपस में बात करते रहे 
अपने हर दुःख-सुख सांझा करते रहे ....
अपने बंद पिंजरे में उसने एक दिन कहा 
अब मैं उड़ना चाहता हूं
पिंजरे का पंछीं
बचपन से मैंने एक परिंदा पाला 
ना जाने कहां से उड़ आया था 
अपने साथ ढ़ेरों खुशियां लाया था ......
कई सालों तक हम आपस में बात करते रहे 
अपने हर दुःख-सुख सांझा करते रहे ....
अपने बंद पिंजरे में उसने एक दिन कहा 
अब मैं उड़ना चाहता हूं 
मुझे आजाद कर दो 
मैं अपनी जिंदगी जीना चाहता हूं....... 
मैं भी उसके दुःख को समझ गई 
मन कठोर कर उसको मैंने आज़ाद किया 
उड़ने के लिए उसके पैरों को सहलाया 
कैसे उड़ना है वह भी सिखाया .…..
मुझे आशीष दे वह परिंदा 
अपनी खुशियां समेटने के लिए उड़ गया 
मेरा दिल उसके प्यार में घिर गया 
सोचा कभी तो मुझसे मिलने आएगा 
मेरा प्यार उसे ले आएगा ......
पर कुदरत का खेल देखो 
ना जाने कहां खो गया 
मेरी आंखों से कैसे दूर हो गया 
आज भी मेरी निगाहें उसे खोजती हैं.....
आज हर पल उस पिंजरे को 
दुःखी मन से घूरती हूं 
सोचती हूं काश उसे ना उड़ने देती 
कम से कम आज भी मैं उससे बातें करती...... 
हम दोनों की कहानी अब खत्म हो गई
मेरा दिल और उसका पिंजरा 
एक दूसरे को देखते हैं 
फिर अतीत के पल समेट कर 
जीने की नाकाम कोशिश करते हैं.....
आज भी मैं इस पहेली को न समझ पाई 
अपने इस नायाब परिंदे को मैं न ढूंढ पाई.....
@_muskurahat_ पिंजरे का पंछीं
बचपन से मैंने एक परिंदा पाला 
ना जाने कहां से उड़ आया था 
अपने साथ ढ़ेरों खुशियां लाया था ......
कई सालों तक हम आपस में बात करते रहे 
अपने हर दुःख-सुख सांझा करते रहे ....
अपने बंद पिंजरे में उसने एक दिन कहा 
अब मैं उड़ना चाहता हूं

पिंजरे का पंछीं बचपन से मैंने एक परिंदा पाला ना जाने कहां से उड़ आया था अपने साथ ढ़ेरों खुशियां लाया था ...... कई सालों तक हम आपस में बात करते रहे अपने हर दुःख-सुख सांझा करते रहे .... अपने बंद पिंजरे में उसने एक दिन कहा अब मैं उड़ना चाहता हूं #Poet #Hindi #Raj #poem #shares