मै तो कही न कही कैद होकर लिखता रहा, मेरा हर शब्द महंगा हो होकर बिकता रहा, जो नफरत करते थे कभी मेरे साये से, फिर उनको मै अब खवाबो में दीखता रहा ombir phogat #shayri#poem 10