महज़ बारह या तेरह साल की उम्र से वेदना ,पीड़ा,अपमान हर माह सहती है पुरुषों पर दोष क्या और क्यों मढ़े एक स्त्री खुद,खुद को अपवित्र कहती है है शाश्वत सत्य यह,जानती पूरी सृष्टि है इस अपवित्रता से ही वो माँ बनती है नौ महीने अपवित्र कोख में रखकर एक "पवित्र" पुरुष को वो जन्मती है एक संतान के लिए कई वर्षों की तपस्या निरन्तर चलती रहती है महज नौ का नहीं होता सफ़र माँ का न नौ माह में एक जान मिलती है बारह या तेरह वर्ष की छोटी उम्र से वो इस लंबे सफर पर चल पड़ती है ख़तम नहीं होता जन्म पर सफर माँ आखरी सांस तक माँ रहती है वेदना,पीड़ा,अपवित्रता हर माह की चालीस-पैंतालीस तक वो सहती है इतने लंबे सफर और इतने दर्द के बाद हर माह कुछ दिन वो अपवित्र रहती है #माहवारी #अपवित्र #मातृ #माहवारी_नहीं_मातृत्व