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तअल्लुक़ जो उन संग बनाएं थे मैंने ज़र्रा ज़र्रा सम

तअल्लुक़ जो उन संग बनाएं थे मैंने
ज़र्रा ज़र्रा समेटकर कुछ ख़्वाब सजाएं थे मैंने
बातिल का नकाब हटा यकायक ख़्वाब सारे ढह गए
निगाहों से वो अश्क़ मेरे फ़िर आब बनकर बह गए।
अब इल्ज़ाम लगाएं ख़ुद पर या तोहमतें फिर सारी उन्हें ही दे 
मुमकि़न नही रफ़ाक़त उन संग हम अब यही छोड़ दे। 
अजि़य्यत जो दी उन्होंने हम वो भी कूबू़ल करते है
हां
उनसे महोब्बत का एतराफ़ हम अपने उनके बदगुमानी के बाद भी करते है।
फिक्रमंद हो उन्ही के लिए, जिक्र भी बस उन्हीं का करते है
तासीर हो मेरे दुआओं में इतनी
मुक्ममल खुशियां अपनी एक उन्हीं के नाम़ करते है।

©Tanya Srivastava
  इश्क़ है उनसे बेपनाह
तभी तो हम आज़ भी सजद़ा  किया करते है।

इश्क़ है उनसे बेपनाह तभी तो हम आज़ भी सजद़ा किया करते है। #Poetry

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