खिड़कियां खोल दो शीशे के रंग भी मिटा दो परदे हटा दो हवा आने दो धूप भर जाने दो दरवाजा खुल जाने दो मैं आजाद हुई हूं सूरज गया है मेरे कमरे में अंधेरा मेरे पलंग के नीचे छिपते-छिपते पकड़ा गया है धक्के लगाकर बाहर कर दिया गया है उसे धूप से तार-तार हो गया है वह मेरे बिस्तर की चादर बहुत मुचक गई है बदल दो इसे मेरी मुक्ति के स्वागत में अकेलेपन के अभिनन्दन ऋतिका सिंह.. ,