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जिस्तजू ना आरज़ू किसी की खुद से खुद को रूबरू हूं मैं ऐसी वेसी जैसी भी हूं , बस ऐसी ही हूं मैं ✍️
🔶 किसी कविता को पढ
कर गर यूं लगे आपको,"यह तो मेरी ही छवि है !"
तो यकीन मनिए ,
लिखने वाला एक अच्छा कवि है (unknown)
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Shikha Dubey
तू ही दवा तू ही मर्ज
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Shikha Dubey
main har Roz tujh SE इश्क़ जताती हूं
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Shikha Dubey
भोर से पहले आज एक सुबह हुई है हाथों में सर्गी की थाली
मुख पर तेज़ प्रकाश है उषा की लालिमा , उसके अधरों में समाई है
हरियाली पर लालिमा छाई है
सजनी लाल जोड़े में जो अाई है
लाल लाल है समा, सिंदूरी आसमां
पानी भी प्यासा अधरों की प्यास में
चांद भी बेताब है , लज्जित छुप गया बादलों की ओट में
कस्तूरी सुगंध में मंत्र मुग्ध है समा
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Shikha Dubey
एक चिराग जलाएं रखना
वो लौट कर आएगा
ये खुद को बताए रखना
खामोशियों से कहना कि सुन कर आए उन्हें
बहुत खामोश रहती है जुबां उनकी
की उनकी नज़रों से उनके राज़ पढ़ लेना