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nalinisai3461
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Nalini Sai

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Nalini Sai

छुपाते-छुपाते जिगर का  जख़्म और भी ज्यादा हो गया।
मुझ पर राज करते-करते बुरा वक्त ही शहज़ादा हो गया।
कैसे कट रहे हैं मेरे दिन और रात कभी भी यह मत पूछो,
मेरे  हाल पे पिघलते-पिघलते ये चाँद भी आधा हो गया।

©Nalini Sai
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Nalini Sai

ज़रा सी  मोहलत मिलते  ही आँसू पलकों  से गिरना चाहता है।
मुस्कराहट को कुछ समय तक चौखट  पर वो रखना चाहता है।
दुनिया को  गुमराह  करने  का  चलन टूटने वाला है आजकल,
उर का घाव भर जाते ही आँखो में फिर वो सिमटना चाहता है।

✍️साई नलिनी

©Nalini Sai
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Nalini Sai

बहुत ही  उत्सुक है  कान्हा मुझसे बिछड़ने के लिए ।
कैसे मनाऊँ मैं मेरे नादान दिल को धड़कने के लिए ।
होंठों की मुस्कान हृदय के घाव को तो छुपा लेती है ,
लेकिन तरस रही हैं मेरी सूखी आँखें बरसने के लिए।

✍️साई नलिनी 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ दोस्तों,,, 
राधे राधे जी 🙏🌹🙏

©Nalini Sai
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Nalini Sai

धरती पर हरेक  इनसान नया नया लेता है जनम जाग जाने के बाद।
दूर भागता है तम,अकसर गुम हो जाता है  वहम जाग जाने के बाद।
लूटकर  अपनों  का प्यार, जी  भर के  जी  लेता है वो ख़्वाबों में,इसीलिए
कभी  हँसती हैं उसकी आँखें, कभी रहती है नम जाग जाने के बाद।

✍️साई नलिनी

©Nalini Sai
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Nalini Sai

दूर तक  पसरी हुई  रात  की तन्हाई हूँ मैं।
ख़ाली  नजरों में  ठहरी रही परछाईं हूँ मैं।
ताल्लुक़ टूट गया है  मतलबी  दुनिया  से ,
हर सहन में बजती रही वह शहनाई हूँ मैं।

✍️साई नलिनी

©Nalini Sai

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Nalini Sai

उस जश्न में हम भी शामिल थे,पर दिल श्रांत लगने लगा। 
देखते  ही देखते  वहाँ के माहौल हमें अशांत लगने लगा।
महफ़िल में मेहमानों का हम कैसे  रख सकते थे ख़याल,
खुद को ढूँढते -ढूँढते यह जगत ही हमें भ्रांत लगने लगा।

✍️साई नलिनी

©Nalini Sai
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Nalini Sai

घनी अँधियारी रात धीरे- धीरे अपनी नज़र उठा रही थी।
ख़ामोशी का बिछावन मानो सारे जहान में लगा रही थी।
सन्नाटे से त्रस्त होकर  माहताब भी समंदर में डूबने लगा,
बे-नूर रात बिना  किसी आहट के  हलचल मचा रही थी।

✍️साई नलिनी

©Nalini Sai
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Nalini Sai

बाहर से प्रबल मगर अंदर टूटा सा हूँ मैं ।
उनसे उलझ कर खुद से  छूटा सा हूँ मैं ।
छटपटाते घूमता फिरता हूँ सपने में भी ,
हररात की नींद से बेशक रूठा सा हूँ मैं ।

✍️साई नलिनी

©Nalini Sai
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Nalini Sai

कुछ  अजीब  रफ़्तार से धड़कने  लगी थी सुनो आज मेरे 
हृदय की घड़ी।
आँखों  की  दहलीज़  पर  एकाएक  आकर वो  बिलकुल 
ख़ामोश ही पड़ी। 
मैं क्या  करता मेरी  मीठी नींद के सपनों में बसना चाहती 
थी वो शायद,
कौन देता है इश्क़ में साथ!आँखें खोलने को पलकें मुझसे   
बहुत ही लड़ी।

✍️साई नलिनी

©Nalini Sai
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Nalini Sai

उस शहर की बगल में नदी का  पानी बस यूँही बहता रहा।
तट पे काग़ज़ का नाव शिद्दत से माँझी की राह तकता रहा।
दीप बुझे,नीरवता छायी मगर शक्ल कोई नज़र नहीं आयी,
ज़रा सा पाँव की आहट सुनने को शब भर वो तरसता रहा।

✍️साई नलिनी

©Nalini Sai
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