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आशीष कुमार

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आशीष कुमार

साहित्य लोक मासिक ई पत्रिका के जनवरी माह के अंक के लिए आपकी रचनाएँ आमंत्रित हैं। यदि आप हिन्दी में किसी भी विधा में मौलिक लेखन करते हैं तो आप अपनी रचनाएँ हमें ई मेल अथवा वाटसअप द्वारा भेज सकते हैं।

Email : sahityalokpatrika@gmail.com 
WhatsApp: 9997322011
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आशीष कुमार

तुझे इस दिल से निकाल चुका हूँ मैं 
हाँ अब दिल को संभाल चुका हूँ मैं 
अब तू मेरे खतों को रखे या फाड़े 
तेरा हर खत कूड़े में डाल चुका हूँ मैं

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आशीष कुमार

गम और खुशी दोनों उस गली में हैं..... 
उसका घर और ठेका दोनों उसी में हैं...

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आशीष कुमार

#yaadonkatakiya
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आशीष कुमार

चुराये नींदों को मेरी ये तेरी आँख का काजल।
बड़ा बेचैन करता है ये तेरा मखमली आँचल॥

कभी खामोश रहती थी जो धड़कन सीने के अंदर।
पुकारे नाम अब तेरा मचाये शोर अब हर पल॥

सितारा कहकशां का हो या फिर हो माहपारा तुम ।
कभी हो तलअते-मेहर कभी बिजली कभी बादल ॥

डुबाया मत करो पूरा बदन तुम आब में अपना।
जवानी की तपन छूकर कहीं ये जल न जाये जल॥

मुझे तुम भीग जाने दो निशाते-हुस्न में अपने ।
शमीमे-जुल्फ से अपनी नफ़स में कर दो तुम हलचल॥

कदम रख दो जहाँ पर तुम मुझे मंदिर सा लगता है।
तुम्हारी आँख का आँसू मुझे लगता है गंगाजल॥

बताऊँ हाल क्या तुमसे हुआ है इश्क़ में मेरा।
अभी तक तो मैं था शायर हुआ अब प्यार में पागल॥
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कहकशां - आकाश गंगा
माहपारा - चाँद का टुकड़ा
तलअते मेहर - सूरज की रौशनी
निशाते हुस्न - सौंदर्य की मस्ती में
शमीमे जुल्फ - केशों की सुगंध
नफ़स - साँस

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आशीष कुमार

कभी लेती बलाएँ है कभी लोरी सुनाती है 
नजर मुझको न लग जाए नजर टीका लगाती है 
बुराई लाख चाहे पर मेरा कुछ कर नहीं पाती
मैं घर से जब निकलता हूँ दही चीनी खिलाती है #kavyapankh3
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आशीष कुमार

नजरों ने तेरी मुझ पर कैसा किया है जादू, 
देखें जिधर ये नजरें आती नजर उधर तू।
सब पूछते हैं मुझसे मैं इतना क्यों महकता-
तूने गले लगाया अब तक बसी है खुशबू॥ #spokenstudios2
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आशीष कुमार

इतना चले इश्क की पथरीली राहों पर 
कि आज तक पाँव से छाला न गया 
हमने ताउम्र उसके दर्द को संभाले रखा 
पर उससे गमे जुदाई संभाला न गया
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आशीष कुमार

कभी खामोश रहते हैं कभी कुछ गुनगुनाते हैं।
वो उतना याद आते हैं उन्हें जितना भुलाते हैं

कभी नजरें मिलाते हैं कभी पलकें झुकाते हैं।
कभी बातों ही बातों में वो मेरा दिल चुराते हैं॥

खुदा भी झाँकता नीचे भुला कर काम सब अपना।
सुखाने गीले बालों को वो छत पर जब भी आते हैं॥

सितारे चाँद सूरज सब शरम से पानी पानी हों।
करोड़ों चाँद के जैसे अकेले जगमगाते हैं॥

न पूछो तुम दिवानों के दिलों पर क्या गुजर जाती।
वो अँगड़ाई में दोनों हाथ ऊपर जब उठाते हैं॥
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आशीष कुमार

खुद सिगरेट पिलाते हैं फिर घर बता देते हैं 
बड़े कमीने हैं यार मेरे माँ से पिटवा देते हैं

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