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#PoetryTutorial
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है एक अटूट रिश्ता
खेल और दर्शकों के बीच,
मैं,तुम,तुम, मैं की जगह
हम का भाव हममें देता है सींच।
यहां ना कोई ऊंच,ना होता कोई नीच
ना ही देते धर्म और लिंग की लकीरें खींच।
हम तो देतें हैं ऊर्जा,भरते हैं उत्साह अपनी मुट्ठी भींच
और करते हैं जीत को अपने समीप।

हैं खिलाड़ी और दर्शक परस्पर सिखाते एक दूसरे को,
"हौसले बुलन्द कर रास्तों पर चल दे
मिल जाएगा तुझे तेरा मुकाम
बढ़कर पहल कर तू अकेला
देख कर तुझको काफिला बन जाएगा खुद।"

है यह रिश्ता एकता का प्रतीक 
और देता हमें यह सीख- 
"एक साथ आने से होती है शुरुआत हमारी
एक साथ रहना दिखाती है प्रगति हमारी
और एक ही लक्ष्य के लिए साथ कार्य करना है कामयाबी हमारी।"

 यह रिश्ता भरता है घावों को
हटाटा है मतभेदों को
और बढ़ाता है सार्वभौमिक मूल्य।
होता है यह रिश्ता 
ठीक  उसी  तरह जैसे 
 है रिश्ता
कवि और पाठक का। #खेल_और_दर्शक
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आओ सुनाऊं आपको एक किस्सा
एक प्रतिशत आबादी के पास,
है संपति का निन्यानबे प्रतिशत हिस्सा।
अकसर रुपया सारी गलतियों में टांका लगा देता है
और गरीब मामूली गलती केलिए ज़िन्दगी भर पछताता है।

गरीब बहलाते खुद का पेट रोटी नहीं नसीब हो जब
साठ सत्तर रुपए देकर तुम फुसलाते हो उन्हें तब।
क्या इनकी गरीबी  की पहचान  कभी बदलेगी?
क्या वो दो पैसों की पुड़िया इनका भाग्य भी बदेलगी?

अरे,तू क्या जाने कीमत किसी कम नसीब की
कभी झोली खाली होती नहीं किसी गरीब की
उसके आंसु बहा बहा कर भी कम नहीं होते
तू क्या जाने कितनी अमीर होती आंखे गरीब की।
खड़े हैं लोग आशा में गली गली के मोड़ पर
एक से हटाओ ध्यान,ध्यान दो करोड़ पर।
है यह समानता नहीं, कि एक तो अमीर हो
दूसरा  व्यक्ति चाहे ही फकीर हो
न्याय हो तो आर पार एक ही लकीर हो।
मिले सूरज आसमां से,किरणें मिले धरती से
हो समानता ऐसी,मनुष्य अपना  गम भूला दे। #आओ_सुनाऊं_तुम्हें_एक_किस्सा_एक_प्रतिशत_आबादी_के_पास_है_संपति_का_निन्याबे_प्रतिशत_हिस्सा।

आओ_सुनाऊं_तुम्हें_एक_किस्सा_एक_प्रतिशत_आबादी_के_पास_है_संपति_का_निन्याबे_प्रतिशत_हिस्सा।

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है  यह  हम सभी की कहानी..
नाम है शतरंज,पर्याय है संभावना।

हाथी,घोड़े, ऊंट,बादशाह का है बोलबाला राज्य में
और हर तरफ है दबदबा और मान वजीर का।
प्यादा, 
इसपे पूछता है छोटा ही क्यूं मैं रहूं?
जहां सब हैं शक्तिशाली वहां एक क्यूं चलूं?
बखूबी समझता है शतरंज प्यादे की इस उलझन को,
कहता प्यादे से कि तू  सर्वशक्तिमान है
तू वो है जो पढ़ सके दुश्मन की चाल 
मार सके जो शत्रु पक्ष
और झेल सके जो पहला वार।
मत तोड़ खुद को जब भी किस्मत ने अकेला छोड़ा
तू भी वजीर बन जाएगा अगर धैर्य रखो थोड़ा।
तू एक भले चलता है,पर चलता है तू सीध में
एक अहम हिस्सा बनकर उभरेगा तू जीत में

उसकी बातें सुनकर प्यादा चलता है सीध में
विश्वास है इतना कि लड़ जाएगा भीड़ से
वो एक फिर से चलता है,चलता है वो सीध में
और सीमाओं को लांघकर,वो बदलता है वजीर में।

एक प्यादे की वजीर बनने की है संभावना
नाम है शतरंज ,पर्याय है संभावना।
है यह हम सभी की  कहानी,
नाम है ज़िन्दगी,पर्याय है संभावना। #नाम_है_शतरंज_पर्याय_है_संभावना।

नाम_है_शतरंज_पर्याय_है_संभावना।

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देखता हूं इस कांच के पार से
रेत घड़ी के गिरते कण;
हर कण एक कहानी कहता है..

कहानी हम इंसानों के जीवन की
जो है रेत रूपी समय की नींव पर,
एक अनोखा नींव;
जो पल पल फिसलता है और क्षण में पलट कर परिवर्तित भी हो जाता है, 
ठीक वैसे ही
जैसे इस रेत घड़ी की रेत।

समय ,देता है एक हाथ से,
दो हाथ से ले लेता है
बादल निचोड़,कुछ छिटें
तपते जमीन पर बिखरेता तो है,
सूरज बन 
उस नमी को है जाता पी।

ये जो इस रेत घड़ी में है बन्धन
है यह समय का ही बांधा हुआ
बंध जाते हैं मनुष्य भौतिक बंधनों में समय समय पर
पर समय कहां रहता गुलाम,
गुलाम बना रखा है सबको
बस स्वयं ही आज़ाद।

पर क्यूं न इन बंधनों को तोड,
फिसला जाए समय के साथ
और चालाकी से पलट दिया जाए इस रेत घड़ी को
ताकि बना रहे यह रेत हमारी नींव हमेशा। #रेतघड़ी
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रुई से मुलायम बादलों के बीच, दूर क्षितिज के आगोश में जाता सूरज,
बालकनी से टघरती   बारिश की बूंदों के आवाज के साथ,
अगर मिल जाए एक प्याला गरम चाय;
 एक चाय प्रेमी के लिए यही तो है एक रूमानी शाम।

हां,उसी रूई से मुलायम मुट्ठियों में चाय का गिलास पकड़कर,
भागता है एक मेज से दूसरे मेज एक छोटू भी;
उन्हीं ठंडी लहरों में उस बारिश की बूंदों से धोता  चाय का गिलास है एक छोटू भी।

हमें पसंद है गरमी में भी चाय,अरे गरमी में चाय नहीं पीते हो तो कैसे चाय के दीवाने!
आजकल तो हमें आंच में झुलसी हुई तंदूरी चाय से प्रेम सा हो गया है;
पर शायद नहीं हुआ प्रेम उस चुले की आंच में झुलसते छोटू के बचपन से प्रेम!

हमें पसंद है पढ़ना किताब गरम चाय की चुस्की के साथ,
पर है छोटू किताबों की दुनिया की एक चुस्की से महरूम।

हम चाय प्रेमी अलग - अलग चाय को भी देतें हैं उनका खुद का नाम,
पर क्यूं हर छोटू का है बस एक ही नाम?
क्यूं गुम है उसका अपना अस्तित्व? चाय

चाय

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उसके हर  दिन की शुरुआत होती है एक असमंजस के
साथ..
“कौन सा पहने आज ”
“किसके लिए पहने आज ? 

इतने सारे मुखौटे तो पड़े हैं
झूठी दोस्ती वाला,कॉलेज का मुखौटा ,
झूठे तारीफों वाला, दोस्तों का मुखौटा ?
झूठे प्यार का ,प्रेमी/प्रेमिका  केलिए मुखौटा ?
उनकी ज़िम्मेदारी सर लेने को उत्सुक ,बूढ़े माँ-बाप केलिए मुखौटा ?
पूरे घर का काम कर ,थकावट में भी परिवार को खुशी खुशी  खाना खिलाने वाला मुखौटा?
मासिक दर्द में  भी ,मुस्कुरा देने वाला मुखौटा?

बहुत से मुखौटे तो अब पुराने भी हो चले —
जैसे टीचर्स के लिए था चापलूस मुखौटा।
जैसे दोस्तों की कुसंगतियों को समेटे ,परिवार वाला नादान मुखौटा।

कितने ही झूठे जिए हैं और जी रहा है वो
इन मुखौटों के पीछे छुपकर
डरता भी है  क्योंकि  जानता है कि
अकेला नहीं है वो  मुखौटा लगाए बल्कि
 पूरी  एक भीड़ है  ।
कभी कभी तो जी करता होगा
की नोंच डाले
एक एक कर के इन सारे मुखौटों को।
और पा ले खुद को
असलियत तक।

पर मुखौटों से छुटकारा पाने  का,
था ये भी एक मुखौटा। #मुखौटा
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मैं फाल्गुन मास में पेड़ से गिरा  वो अकेला पत्ता हूँ जो ऊपर  देखता है बाक़ी ताजे पत्तों को सुनहरी धूप में खिलते हुए, और हां  मैं  शिशिर  में पेड़ पे लगा वो अकेला  ताजा पत्ता हूँ जो नीचे  देखता है बाक़ी साथी पत्तों को  सड़क पर सोने की परत बनाते हुए ; जो मेरी प्रेमिका के पैर के नीचे कुचले जाते है  और मुस्कुराते है जैसे  उन्हें एक नई ताजगी मिल गई हो। #ताजगी
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#आंगन

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कहां गए वो आंगन....

घर के चारदीवारी से खुले आसमान को निहारता था वो आंगन...
इतना बड़ा तो न था कि अट जाए मन के कोनों में
पर था जैसे हवा होती है,
जितनी चाहिए भर लो सांसों में।
हमारे  किलकारियों  को अवसर देता था गूंजने को पूरे आसमान में,
खुरदुरा एहसास उसका
था हमारे तलवों की मालिश सा।
कूटती थी धान ,फटकती थी सूप दादी और मम्मी 
तो  गुनगुनाता था संग आंगन भी।
वो सिलती बुनती तो वह
रोशनी की लकीरें खींचता 
और बजता रहता घड़ी की सुइयों सा तीनों पहर।
सजते थे मंडप बनते थे रिश्ते
था ऐसा अनोखा पवित्र जगह,
रोते थे सारे जहां  बेटी की विदाई में,तो ठिठोली भी होती थी  वहां दुल्हन की मुहदिखाई में।
दादी नानी के किस्सों का भंडार था वो, 
पहले दीए का हकदार भी  वही  तो था
आंगन जमीन का एक टुकड़ा न था
वह धूप
पहली बारिश
जेठ की शाम
और खुली सांस लेने का एक मौका था
था नहीं जायदाद वो।।।। #angan

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