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rajeshwarsinghra3187
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RAJESHWAR SINGH RAJU

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RAJESHWAR SINGH RAJU

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RAJESHWAR SINGH RAJU

शब्द 

मेरे शब्दों के 
हैं मायने क्या 
मेरे शब्द भी 
कहां बताते हैं ? 

सुना है 
उच्चारण से ही 
अब उनके अर्थ 
बदल दिए जाते हैं । 

__राजेश्वर सिंह 'राजू'
   जम्मू 04.10.2022

©RAJESHWAR SINGH RAJU
  शब्द

शब्द #कविता

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RAJESHWAR SINGH RAJU

शब्द 

मेरे शब्दों के 
हैं मायने क्या 
मेरे शब्द भी 
कहां बताते हैं ? 

सुना है 
उच्चारण से ही 
अब उनके अर्थ 
बदल दिए जाते हैं । 

__राजेश्वर सिंह 'राजू'
   जम्मू

©RAJESHWAR SINGH RAJU शब्द 

#feeling_loved

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RAJESHWAR SINGH RAJU

शब्द 

मेरे शब्दों के 
हैं मायने क्या 
मेरी शब्द भी 
कहां बताते हैं ? 

सुना है 
उच्चारण से ही 
अब उनके अर्थ 
बदल दिए जाते हैं । 

__राजेश्वर सिंह 'राजू'
   जम्मू

©RAJESHWAR SINGH RAJU
  शब्द

शब्द #कविता

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RAJESHWAR SINGH RAJU



बेबसी


आज फिर 
मौत पास से होकर 
ज्यों गुज़र गई 
मानो रूठी हो । 

हां
देखती गयी मुड़- मुड़ कर 
एक उम्मीद का थाम दामन 
कि मना ही लेगी बेबस को । 

पर
उम्मीद ना-उम्मीद में बदली 
कि जीने की ख्व़ाहिश में
मैंने पार पा लिया बेबसी को । 

__@ राजेश्वर सिंह 'राजू' 
        जम्मू

©RAJESHWAR SINGH RAJU
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RAJESHWAR SINGH RAJU

भाव 


मेरे 
चेहरे पर 
सिमट आते 
प्रसन्नता के भाव 
प्रतिनिधित्व कहां करते  
मेरे भीतर का ? 

उन्हें 
मैं ही तो 
करता हूं संचालित 
यथा स्थिति 
परिस्थिति । 

__राजेश्वर सिंह 'राजू'
    जम्मू

©RAJESHWAR SINGH RAJU
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हवा महल 

तुम्हारे
दिखाए हुए ख़्वाब 
हुए हैं साबित 
हवामहल 
हमारी उम्मीदों पर । 

जिनका निर्माण 
तुम खुद ही करते हो 
ज़मीन से ऊपर। 

कि 
कल को जब 
हो जाएं धराशायी ,
तो मढ़ दो 
उल्टे आरोप 
कि नींव 
तो थी ही नहीं । 

__@राजेश्वर सिंह 'राजू'
      जम्मू

©RAJESHWAR SINGH RAJU
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RAJESHWAR SINGH RAJU

मुखौटा 


मेरे इर्द-गिर्द 
अक्सर मंडराते 
अपनेपन का रौब जमाते 
मेरे अपने हैं भी कि नहीं 
मैं नहीं जानता । 

क्योंकि,
लोग आजकल 
अपना सच छुपाने लगे हैं 
और वक्त के मुताबिक 
मुखौटा लगाने लगे हैं ।

©RAJESHWAR SINGH RAJU
  मुखौटे

मुखौटे #कविता

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RAJESHWAR SINGH RAJU

स्याही 

ज़िन्दगी के पन्नों पर 
कल्पना की क़लम 
ख्वाबों की स्याही में 
डुबो कर 
सुनहरी भविष्य की लकीरें 
खींचा करता हूं ,
पर वक्त 
बवंडर बनकर 
अक्सर मिटा देता है । 

और मैं 
फिर से 
थामता हूं क़लम 
ढूंढता हूं स्याही 
जो मिट ना सके ,,,। 

___@ राजेश्वर सिंह 'राजू'
          जम्मू

©RAJESHWAR SINGH RAJU
  स्याही

स्याही #कविता

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RAJESHWAR SINGH RAJU


परिंदे 

कुछ परिंदे 
जिनके पंख कुतरे गए 
अपनी ही गलतियों का 
खामियाज़ा भुगतते,
ज़िन्दगी कहां जीते हैं ? 

बस 
आखिरी सांस तक 
सिसकते हुए 
मांगते हैं 
मौत ,,,। 

@ राजेश्वर सिंह 'राजू'

©RAJESHWAR SINGH RAJU
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