मेरी चाहत, मेरी आकांक्षा, मेरे सपने यह सब कवि बनने से इतर हैं। मै चाहता हूं कि मेरी रचनाएँ इतनी बुरी हों कि कोई भी इसे ना पढे। मै इतना नापसंद किया जाउं कि लिखना ही छोड़ दूं। हां, मै कवि नही बनना चाहता। ये तो भावनाओं का ज्वार है जो कभी-कभी बस मचल भर जाता है। मै तुम्हें पाना चाहता हूं मगर चुंकि तुम्हें पाने को ये भावनाओं का ज्वार नितांत अपर्याप्त है सो शायद इस जनम मुझे कवि ही रहना पड़े।
Prakash Ranjan Shail
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