""
"#OpenPoetry ये प्रेम है प्रिये समर्पित होना पड़ता है,
टूटे गर प्रेम में तो टुकड़ा टुकड़ा गड़ता है।
ये मोम नही जो घट जाये ये शयने शयने बढ़ता है,
ये प्रेम है प्रिये समर्पित होना पड़ता है।
रहे सखा जो साकी तो खुद को खोना पड़ता है,
प्रेम नही है पान हाला का जो अकस्मात् ही चढ़ता है।
रहे बिमुख जो साजन तो खुद ही से लड़ना पड़ता है,
ये प्रेम है प्रिये समर्पित होना पड़ता है।
प्रेम नही अनुवाद प्रिये जो सबको कहना पड़ता है,
प्रेम तो है उन्माद प्रिये जो खुद को सहना पड़ता है।
प्रेम नही अभिभाषक जो आरोप किसी पे मढ़ता है।
प्रेम तो है एक याचक जो नीर नयन में भरता है।
रहे संलग्न खुद में जो स्वंम से हटना पड़ता है,
ये प्रेम है प्रिये समर्पित होना पड़ता है।"