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poempoetess5590
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poempoetess

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poempoetess

#nojoto

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poempoetess

वस्ल  में भी हिज्र को महसूस कर के आ गए हम 
दिल  लगाने  को गए थे आँख भर के आ गए हम 

टूटना फिर आँख  भरना कर रहे हैं हम मुसलसल 
मौत  से पहले  ही कितनी बार मर के आ गए हम 

बज़्म  में  पूछा  किसी  ने बेवफ़ा  का नाम क्या है 
और  उस  के  नाम से दीवार  भर के आ गए हम 

बात  है  मेआ'र  की  तो  मय-कदे  जाते  नहीं  हैं 
पर नशे में हैं नशा उल्फ़त का कर के आ गए हम 

मसअला  करने  लगा  था दिल भुलाने में उसे तब 
हाथ पकड़ा और दिल हाथों में धर के आ गए हम

©poempoetess

4 Love

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poempoetess

जब   मुहब्बत   के   ज़ख़्म   ताज़ा  करेगा
तब  न  जाने    ये  क़ल्ब  क्या-क्या करेगा

सलवटें   जब   पड़ने    लगेंगी   बदन  पर
उम्र    को    तब    इंसान   कोसा   करेगा

साथ    देगें  ये  नक़्श-ए-पा  ज़िंदगी  भर
कौन    पीछा    इनके    अलावा    करेगा

सोचती    हूँ   आँसू    अगर   सूख   जाए
दर्द    ज़ाहिर   कैसे    तू   अपना   करेगा

साथ   देंगे   शाने   तिरे   बस  क़ज़ा  तक
रुख़्सती    कोई   और     शाना    करेगा

ज़िक़्र-ए-क़िस्मत ही मिट गया गर जहाँ से
आदमी फिर  किस शय को  कोसा करेगा

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8 Love

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poempoetess

देख   अपना   हुस्न   मछली   ग़म   करे  या  शाद  हो
काँच   ख़ाने   का   सबब   भी  तो   मलाहत है फ़क़त
©poempoetess

5 Love

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poempoetess

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poempoetess

To be with you देखा   उसको  जब से   कुर्ते   में
मैं   तब  से  अब  तक हैरत में हूँ

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14 Love

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poempoetess

कुछ  दिन  से  यारों  फ़रहत में हूँ 
मेरा    मतलब    मोहब्बत   में  हूँ 

इक शब काटी  उसके तसव्वुर में 
सो अब तक हया की हालत में हूँ

बीत   चुके जीवन के  बीस  बरस 
फिर भी  बचकानी  आदत  में  हूँ

देखा   उसको  जब से   कुर्ते   में
मैं   तब  से  अब  तक हैरत में हूँ 

ख़ूब   दुआ   देती    है  दादी   माँ
इस  ख़ातिर  ही  मैं  बरकत  में हूँ 

लहरों  पे  इक  घर  की चाहत  है 
हाए   ये   कैसी   हसरत    में   हूँ

©poempoetess

14 Love

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poempoetess

You are beautiful सियाही   भरी   चंद    क़लमें  धरी  थी
रदीफ़ों     भरा    एक   पन्ना   पड़ा  था
घड़ी   चल  रही  थी थिरकती थिरकती
सुई  ने   कमर  पे  समय  को  रखा था
सहर  थी  कि शब थी पता ही नहीं  था
टहलते टहलते   बदन   थक  गया  था
क़दम-दर-क़दम हर्फ़ मुझको मिला था
घड़ी  हर  घड़ी  कुछ  नया घट रहा था
जिगर  को  मशक़्क़त  बड़ी हो रही थी
मगर  अब  तलक  एक मेरी ग़ज़ल का
कहीं   एक   मतला   अधूरा  पड़ा  था
कहीं  क़ाफ़िया  ही  मुकम्मल  नहीं था

©poempoetess

12 Love

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poempoetess

एक  तरफ़ा  है  मुहब्बत फ़िक्र भी इक और यानी
इक   तराज़ू  में   वज़न का एक ही पलड़ा हुआ है

©poempoetess

11 Love

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poempoetess

इस  अहद  में तो सदाक़त पे सितम ऐसा हुआ है
पाँव   छोड़ो   पर पसारे छल-कपट फैला हुआ है

इस  धुँए  पे  क़त्ल का  इल्ज़ाम आएगा यक़ीनन
क्योंकि  ये हर मर्तबा कुछ ख़ाक कर पैदा हुआ है

एक  तरफ़ा  है  मुहब्बत फ़िक्र भी इक और यानी
इक   तराज़ू  में   वज़न का एक ही पलड़ा हुआ है

देखते  है  बुत   सभी  ये  मस'अला  हैरान  होकर
किस क़दर याँ आदमी ख़ुद आप ही मौला हुआ है

एहसासों  की  बहुत क़िल्लत  हुई है क़ल्ब में अब
'गीत' दिल पे कौन चिलमन तान कर बैठा हुआ है

©poempoetess

9 Love

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