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anuragbhardwaj8867
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Anuraag Bhardwaj

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Anuraag Bhardwaj

White मै जानता हू।
ये कोरी कल्पना ही है।
मगर फिर भी कितनी खूबसूरत है।
मेरी बेकरारिया तुम्हारी मजबुरिया। 
एक दूसरे की चाहत। 
दूरियों में सिमट जाती है।
भीड़ से दूर कही। 
एक साथ बैठने का एहसास।
मन में रोमांच भर देता है।
स्पर्श मात्र से रोम रोम
प्रफुल्लित हो जाए ।
लब्ज़ हल्क में फंस गए हो जैसे।
दिमाग शून्य हो जाए।
ना कहने को ना सुनने को।
बस एक दूसरे के साथ में मग्न हो जाए।
ये पल भर की कल्पना। 
जीने इच्छा और उम्मीद सी जगा देती है।
तुम कितनी कितनी हो पास।
ये वजह बता देती है
#अनुराज

©Anuraag Bhardwaj #Couple
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Anuraag Bhardwaj

आजकल उसका मेरा रिश्ता।
बड़ा formal सा हो गया है।
कैसे हो और सब कैसे हैं।
जैसे और कोई बात नही बची।
मगर फिर भी जताया जा रहा है
मुझे फिक्र है तुम्हारी।
इस फिक्र में अपनेपन से जायदा।
एक जबरदस्ती सी झलकती है।
ये बताने को अब भी हम वैसे ही है।
मगर क्या सच में ही वैसे ही है।
नही अब अपनेपन का हक सा।
 नजर नही आता तुम्हारी बातो में।
एक खाना पूर्ति पूरी कर रही हो जैसे।
अब लगता है वो दौर आयेगा भी नही 
जहा हक जताने की जरूरत नहीं पड़ती थी। 
वक्त बेवक्त अनजाने में होती थी सब बाते।
हो सकता है  वक्त के सब कुछ बदल जाता हो।
 या हमारा नजरिया बदल जाता हो।
मगर वो अपनापन वो गुजरे लम्हे।
कही ना कही चिढ़ाते रहते हैं मन को।
और हम अपने दिल को झूठी तसल्ली देते हैं। 
नहीं कुछ नही बदला। 
जो वाक्य में ही बदल चुका होता है।
देर सवेर ये दौर सबकी जिंदगी में भी आता है। 
ये हम पर निर्भर करता है।
 हम सच्चाई को स्वीकार करते हैं।
या नजरंदाज करते हैं ।
#अनुराज

©Anuraag Bhardwaj #lightning
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Anuraag Bhardwaj

orange string love light कुछ स्त्रियां।
कभी बूढ़ी नही होती।
ना तन से न मन से।
ना विचारो से।
ना व्यवहार से।
ना स्वभाव।
बरसो बाद भी देखो तो।
साल बढ़ रहे होते हैं
मगर उम्र ठहर गई हो।
वही स्फूर्ति।
वही ताज़गी।
वही सादगी।
वही खूबसूरती।
वैसी ही मुस्कुराहट। 
जो बरसों से बरकरार हो।
चुंबकीय व्यक्तित्व।
कोई भी अनायास खींचा चला जाए।
अदाएं ऐसी की स्तब्ध हो जाए।
बाते मानों दिल पर वार करती जाए।
हां सच में कुछ स्त्रियां।
कभी बूढ़ी नही होती।
#अनुराज

©Anuraag Bhardwaj #lovelight
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Anuraag Bhardwaj

Stranger
क्या कभी सुना शादीशुदा stranger।
आज कल एक नया trend शुरू हो गया।
जहा पति पत्नी साथ होकर भी साथ नहीं होते।
निभाते हैं हर रिश्ता मगर दिल नहीं मिलते।
कोशिश नहीं करते  एक दूसरे को समझने की।
बन कर अजनबी रात गुजार देते हैं
 बात किए ना जाने  कितने दिन गुजर जाते हैं।
बना कर डाकिया बच्चो को।
एक दूसरे से काम करवाए जाते हैं।
कभी बच्चो के लिए कभी मा बाप की खातिर।
खुद को बांध लेते हैं।
कभी विचारो की लड़ाई कभी स्वाभिमान की।
बस खुद साबित करने में लग जाते हैं।
बंद कमरों में कैद हो जाती चींखें।
बाथरूम में आंसूओ के सैलाब आते है।
बस दिखावे में गुजरती है ज़िन्दगी।
पूछ लेता है जब भी कोई हाल दिल का।
सब ठीक है कह कर लीपापोती  करते हैं।
सौ सौ बहाने बनाते हैं साथ साथ जाने में।
झूठ बातों से रिश्ते निभाए जाते हैं।
बोझ समझ कर ढोहते है अपनी ज़िंदगी।
दिल कैसे कैसे समझाए जाते हैं।
बना लेते हैं अपना अपना दायरा।
बस खुद में सिमट जाते हैं।
फिर ढूंढते हैं दोस्ती बाहर जा कर।
कुछ अनजान रिश्ते बना लेते हैं।
पति पत्नी भी stranger बन जाते हैं।
#अनुराज

©Anuraag Bhardwaj #GateLight
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Anuraag Bhardwaj

पढ़ कर तुम्हे मेरे ख्याल।
तुम्हे कैसे चैन आता है।
देख कर मेरा हाल।
कैसे तुम्हे सब्र आता है।
तुम तो सो जाती है सकूं से। 
एक एक पल पहाड़ हो जाता है।
घड़ी की टिक टिक भी। 
चुभती है कानो में।
क्या तुम्हे मेरी बेचैनी का।
 एहसास हो पाता है।
जब भीं देखता हूं उम्मीद से तेरी तरफ।
तेरा मजबूरी भरा जवाब आता है।
ये उम्र कट गई तेरे इंतजार में।
क्या कोई इस जहां में लौट कर आता है।
क्या जवाब दोगी उस खुदा के पास जाकर।
कोई ऐसे भी रिश्ता निभाता है 
नही मालूम ये अना है या मजबूरी।
कोई कैसे इतना बे प्रीत हो जाता है।
#अनुराज

©Anuraag Bhardwaj #PhisaltaSamay
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Anuraag Bhardwaj

जब  किसी को सोचते हैं
फिर एक ख्याल आता है
जिसे उतार दिया जाता है
कागज पर।
जब कोई पढ़ता है  उस ख्याल को।
वो ख्याल छा जाता हैं
 उसके दिल में।
एक एहसास बन कर।
वो एहसास जोड़ देता है उसे।
उस शख्स की कल्पना से।
और कही ना कही।
वो एक एक लब्ज़ मानो 
उसे ही सोच कर लिखे गए हो।
जो लब्ज़ जो बोले ना जा सके हो।
समझे ना जा सके हो।
वही लब्ज़ एक जरिया बन
 जोड़ देते हैं दोनो को।
जो कभी मिले ना।
कभी बात ना हुई है।
बस एक एहसास  एक ख्याल है।
जो जोड़ो हुए  दो अजनबियों को।
ना कोई आस  ना कोई उम्मीद।
फिर भी कभी न खत्म।
होने वाला इंतजार। 
#अनुराज

©Anuraag Bhardwaj #MoonShayari
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Anuraag Bhardwaj

मै जानता हूं
ये जो दूरियां बन गई है
अब वो कम नहीं होगी
तुम्हे मुझसे पहले जैसी 
मुहब्बत नही होगी।
बात करेंगे मगर।
पहली जैसी बात नही होगी।
आयेगी हंसी अब भी लबों पर
तुम्हारे।
वो मेरी वजह नही होगी।
नींद अब भी आयेगी शायद।
मेरे ख्वाब की आहट नही होगी।
ना होगी कोई कसक। 
ना होगा तुम्हे मेरा इंतजार।
दिल में कोई हलचल नहीं होगी।
दिन तो ढल जाएगा ।
मगर पहले जैसी शाम नही होगी
देखोगी जब भी आईना।
मेरे अक्स की उम्मीद नहीं होगी।
दुआ करोगी मेरे लिए अब भी।
मगर मुझे मांगने की।
 हिम्मत नही होगी।
हां मगर ये भी जानता हु।
तुम्हे अब किसी और से भी।
मुहब्बत नही होगी।

©Anuraag Bhardwaj #thelunarcycle
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Anuraag Bhardwaj

कभी कभी सोचता हूं
आंसुओ की कीमत नही।
बेकार ही आंसुओ को बहाया जाता है
कोई समझता नही।
कोई पोछता नही।
जानकर वजह भी अनजान बन जाते हैं
ये कमबख्त आंसू भी 
जैसे मौके को तलाश में होते हैं
जब कोई याद आता है
किसी का ख्याल आ जाता है
कोई ऐसी बात कर जाता है
बस टपकना शुरू।
ना मौका देखते ना जगह देखते।
हां कुछ आंसू समझदार होते हैं
हमेशा अकेले में निकलते हैं
किसी कोने में या तकिए के ऊपर।
काश की इन आंसुओ की कीमत होती।
एक एक आंसू  पोछने वालो का तांता लग जाता।
तो शायद फिर आंसुओ के भी नखरे होते।
निकलते ही नही।
खैर आंसू आंसू ही निकलेगे।
मगर ये दुआ इस बार आंसू खुशी के लिए हो
#अनुराज

©Anuraag Bhardwaj #lonely
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Anuraag Bhardwaj

मन जब भी अपनी मनमानी करता है।
हमें औरो से अलग कर देता है।
कभी भीड़ में भी तन्हा कर देता है।
और कभी अकेले में मौज मिल जाती है।
कभी हम ढूंढ़ते हैं किसी को ।
अपने मन की सुनाने की खातिर।
कभी हम छुप जाते हैं सभी से।
अपने मन की बात छुपने की खातिर।
सब खेल मन ही रचाता है।
कभी किसी को करीब।
किसी को दूर ले जाता है।
मन की चंचलता सब पर भारी पड़ जाती है।
कभी कोई बहुत बुरा हो कर भी।
हमे अच्छा लगता है लेकिन क्यों।
कभी कोई इतनी फिकर करता है।
लेकिन मन को नहीं भाता।
मन एक अथाह समुद्र है।
जिसमे विचारो की कश्तियां हिलोरे खाती है।
मंथन करता है मन अपने आप से।
कभी करता है अपनी मर्जी।
कभी करता है चालकिया।
सही गलत भूल कर।
जिसे वो पसंद करता है उसे चाहता है।
#अनुराज

©Anuraag Bhardwaj #lightning
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Anuraag Bhardwaj

मन जब भी अपनी मनमानी करता है।
हमें औरो से अलग कर देता है।
कभी भीड़ में भी तन्हा कर देता है।
और कभी अकेले में मौज मिल जाती है।
कभी हम ढूंढ़ते हैं किसी को ।
अपने मन की सुनाने की खातिर।
कभी हम छुप जाते हैं सभी से।
अपने मन की बात छुपने की खातिर।
सब खेल मन ही रचाता है।
कभी किसी को करीब।
किसी को दूर ले जाता है।
मन की चंचलता सब पर भारी पड़ जाती है।
कभी कोई बहुत बुरा हो कर भी।
हमे अच्छा लगता है लेकिन क्यों।
कभी कोई इतनी फिकर करता है।
लेकिन मन को नहीं भाता।
मन एक अथाह समुद्र है।
जिसमे विचारो की कश्तियां हिलोरे खाती है।
मंथन करता है मन अपने आप से।
कभी करता है अपनी मर्जी।
कभी करता है चालकिया।
सही गलत भूल कर।
जिसे वो पसंद करता है उसे चाहता है।
#अनुराज

©Anuraag Bhardwaj #sadak
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