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प्रियजीत प्रताप

घमंडी,पत्थरदिल,स्वार्थी जो कहना हो कह लीजिए।

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प्रियजीत प्रताप

उफ्फ ये लड़के!

गमों के सीने पर पैर जमाए हुए लड़के,
दिल में दर्द और होंठों से मुस्कुराए हुए लड़के,

एक कमरे में संजोते हैं सपने जमाने भर के,
वो घर से दूर शहर में आए हुए लड़के,

हफ्तों नहीं नहाते जब वक्त नहीं मिलता,
वो संघर्षों के पसीने से नहाए हुए लड़के,

नजर नहीं उठती किसी अनजान चेहरे की तरफ,
अहा!आंखों में हया के समंदर बसाए हुए लड़के,

छत पर आंसू बहा दिल हल्का कर लिया करते हैं,
अपनों के चोट खाए हुए लड़के,

वो तन्हा भी गाते हैं तराने झूमकर,
खुश रहते हैं अक्सर जख्म छुपाए हुए लड़के,

ज़िंदगी के सारे किरदार निभा जाते हैं बखूबी,
कितने सुलझे होते हैं ये जिंदगी में उलझाए हुए लड़के।
       -प्रियजीत❤️
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प्रियजीत प्रताप

काश कभी ये मुमकिन हो।

बारिश वाले मौसम में,
तुम भींग रही हो कभी कही,
आती-जाती नजरें तुमपर टिक कर आगे बढ़ जाएं,
उस पल उस रस्ते पर मैं,
संयोग से तुम्हें गर मिल जाऊं,
अपने सारे काम छोड़,
मैं साथ तुम्हारे हो जाऊं,
अपना छाता तुम्हें सौंपकर,
मैं बारिश में खुद को भींगा सकूं,

शायद कभी ये मुमकिन हो।

जीवन के अंतिम क्षण में जब,
मैं पड़ा कही दिन गिनता रहूं,
आंखें मूंद तुम्हें सोचूं तब,
एक हाथ मेरे जो सिर पर हो,
जब आंखें खोल तुम्हें देखूं,
नम आंखें तुम्हारी हो जाए,
मैं हल्की सी मुस्कान लिए,
जीवन के हर पल को याद करूँ,
फिर धीरे से आंखें मूंद तभी,
वो हाथ तुम्हारा थाम सकूं,

काश कभी ये मुमकिन हो।
-प्रियजीत
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प्रियजीत प्रताप

#अंतरराष्ट्रीय_महिला_दिवस
पैदा होने से पहले,गर्भ में ही मार दिया जाना,
इतना आसान है क्या एक औरत हो जाना?

चेहरे पर हंसी और सीने में गमों को बसाना,
एक आँगन से आकर एक आँगन का हो जाना,
छोटी सी आँचल में पूरी दुनिया सजाना,
इतना आसान है क्या एक औरत हो जाना?

पति के खाने तक भूखे रह जाना,
सास-ससुर की ख़ातिर सवेरे जाग जाना,
दिनभर भागकर घर के सब काम निपटाना,
अपनी थकान हर किसी से छुपाना,
इतना आसान है क्या एक औरत हो जाना?

तबियत खराब हो मग़र चुपचाप रह जाना,
हर किसी की ज़रूरत को पूरा कर जाना,
बच्चों की ग़लती को अपना बताना,
अपनी परेशानी को सबसे झुठलाना,
इतना आसान है क्या एक औरत हो जाना?

किसी की बिगड़ी तबियत पर रात भर जाग जाना,
अपनी से पहले अपनों का हो जाना,
एक ही देह से पत्नी,बहन,बेटी,बहु का रिश्ता निभाना,
रिश्तों की ख़ातिर जीवन खपाना,
इतना आसाना नहीं है एक औरत हो जाना।
     -प्रियजीत💞 #AWritersStory
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प्रियजीत प्रताप

मैनें अपनी कविता में तुम्हें अपना लिखा है।
अंधेरे रास्ते सा जीवन का ये सफर,
जहां उम्मीद की कोई लौ नहीं टिकती,
मैनें जुगनुओं को जोड़कर एक दीप सजाया है,
शब्द-शब्द से इश्क कर एक गीत बनाया है,
मैनें कई पहर रातों को जागकर काटे,
खाली पड़े कमरे में तुम्हें हरपल गुनगुनाया है,
मैनें हाथों को तुम्हारी कमल के फूल सा लिखा,
तुम्हारी घनेरी केशुओं को उमड़ते बादलों सा पाया है,
मैनें तुम्हारी आँखों को गहरे झील सा लिखा,
बाहों में तुम्हारी मैनें पूरा जहां सा पाया है,
अपने हाथों की लकीरों से बगावतें की मैनें,
माथे की सिकन पर अविश्वास जताया है,
मैनें अपने भाग्य से इतर एक सपना लिखा है,
मैनें अपनी कविता में तुम्हें अपना लिखा है।
-प्रियजीत #इश्क़
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प्रियजीत प्रताप

"महज आंखों से मुश्किल है इश्क़ का जाहिर होना.
अब दिल का हर हाल बताना पड़ता है।

चल पड़ते हैं मेरे कदम किसी भी आहट पर.
बार-बार इसे ठोकरों से समझाना पड़ता है।

बेरंग कोई पत्थर समझने लगते हैं दुनिया वाले.
जरूरत पड़ने पर हर रंग दिखाना पड़ता है।

मुक़द्दरों से कहाँ मिली है मंजिल किसी बाजीगर को?
कभी धूप तो कभी बारिशों में भी पल बिताना पड़ता है।

बोलियां लगती हैं आंसूओं की जमाने भर में.
झूठा ही सही मगर मुस्कुराना पड़ता है।"

    -प्रियजीत
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प्रियजीत प्रताप

सवाल इतने सारे हैं..जवाब कौन देगा?
टूट रही इन सांसों का..हिसाब कौन देगा?
कौन देगा झुकते कंधों को सहारा?
इस अंधेरे आज को कल आफ़ताब कौन देगा?
बिलखती मां को नाकाफ़ी है तस्सली हुक्मरानों की;
 इस हवा के झोंके में बुझ चुका चिराग; कौन देगा?
-प्रियजीत
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प्रियजीत प्रताप

है तिमिर घनेरी किन्तु वो लड़ रहा है;
एक टिमटिमाता दीप जो जल रहा है
जानता है हार निश्चित है इस रण में
किन्तु अंधेरे का नुकसान बहुत वो कर रहा है।
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प्रियजीत प्रताप

बचपन का पुराना कोई दोस्त मिले और पुरानी यादों और मस्ती-मजाक के अलावा यदि हैसियत, पोजीशन, रुतबा और पैसों की बात करे तो या तो परहेज कर लें या रास्ता बदल लें।
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प्रियजीत प्रताप

वहां लोग रहते हैं,
रिश्तों का बसर नहीं होता,
महज इमारतें होती हैं,
घर नहीं होता,

वो मोहब्बत करता है,
बेइंतहा किसी चेहरे से,
बड़ा सीधा है,
मौत का डर नहीं होता?

इतना आसान नहीं है,
ज़िन्दगी को जी पाना,
मेरा तजुर्बा कहता है,
आसान ये सफर नहीं होता,

वो अंधा है,मगर वाकिफ है,
सारे तौर तरीकों से,
दुनिया को देखने का,
कोई नजर नहीं होता।

ठोकरें सिखाती हैं,
जीने का सलीका,
घर चलाने का,
कोई उमर नहीं होता।
©प्रियजीत
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प्रियजीत प्रताप

मैं तुम्हारा बिहार हूँ,

थके हारे,उठते गिरते,
निरन्तर आगे बढ़ते तुम्हारे पैर,
उन चमकते सड़कों को लांघ,
पगडंडियों तक का सफर पूरा कर,
सूरज के जिस लालिमा को देख तुम मुस्कुराए,
तेरे अंधेरे कल और सुबह की उस रोशनी के,
बीच का इंतजार हूँ,
मैं तुम्हारा बिहार हूँ।

गौरव के कब्र पर पनपे,
गरीबी,बेरोजगारी,छलावे के तरु,
जिसे काटने के बजाय तुमने,
यूँ पनपने छोड़ दिया था,
सियासी अमरबेलों के मकड़ जाल में,
उलझ गए मेरे सारे अतीत,
मैं ठंड पर चुकी उस राख के नीचे दबा,
सुलगता हुआ वो अंगार हूँ,
मैं तुम्हारा बिहार हूँ।

मेरी मिट्टी से निकले,
मेरी ही मिट्टी में मिले,
अनगिनत धरतीपुत्रों के,
संघर्ष,विद्वता,बहादुरी के वो किस्से,
जिसे भूल तुमने,
मेरे सीने को रौंद आगे बढ़ने का निश्चय किया,
मैं तुम्हारी उन महत्वाकांक्षाओं में झेला हुआ तिरस्कार हूँ,
मैं तुम्हारा बिहार हूँ।

तुम्हारी उन गगनचुंबी अट्टालिकाओं,
या समंदर के किनारे बिखरे रेत पर,
सुकून के पर्दे से ढका बेचैन आदमजात,
कट्ठे, बीघों में बने वो एकमात्र झोपड़े पर,
चूने से किया गया वो श्रृंगार हूँ,
मैं तुम्हारा बिहार हूँ।
©प्रियजीत

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