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adityagupta2091
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Aditya Gupta

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Aditya Gupta

बला की धूप है घर में रहिये।
सुबह रहिये दोपहर में रहिये।

पानी पिएं प्याज जेब में रखें,
कुछ दिन तो लू के डर में रहिये।

वर्ना हक़ीम को कहना पड़ेगा,
चौदह दिन तो बिस्तर में रहिये।

गम ए कोरोना फ़िर आ रहा है,
ख़ुद भी ना कभी ख़बर में रहिये।

ना काटिये  चक्कर हसीनों का,
चुप कर अपने दफ़्तर में रहिये।

डूबने वाले डूब जाते हैं,
किनारे या फ़िर भँवर में रहिये।

हुनर एक दिन ज़माना देखेगा,
शर्त यही है बस बहर में रहिये।

©Aditya Gupta
  #citylight
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Aditya Gupta

जब भी लोगों का मेरी ओर ध्यान जाता है।

अचरज़ से हमारी ओर मुठ्ठी तान जाता है।

हर शख़्स मुस्कुराते  निकलता है सामने से,

एक सिर्फ वही है जो बहुत हैरान जाता है।

उल्फ़त वो आईना है जो मेरी हर हरक़त।

गाहे बगाहे मिलते ही पहचान जाता है।

गम ग़लत करने को इधर फिरता रहता है दिल,

हर शब जब घर जाता है परेशान जाता है।

आख़री सफ़र में फ़क़त दोस्त ही नहीं शरीक,

साथ जिस्म के कुछ मौत का सामान जाता है ।

©Aditya Gupta
  #boat
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Aditya Gupta

#PoetryDay
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Aditya Gupta

नाम तेरा सुबहो शाम रट रट के रो लेंगें।
भीड़ भरी दुनिया से ज़रा हट के रो लेंगे।

मर जाने दो उम्मीदों और अरमानों को-
हम भी इसकी लाश से लिपट के रो लेंगे।

दुनिया इतनी बड़ी भी नहीं बन सकी है,
कुछ दूर चलेंगें हम और पलट के रो लेंगे।

अपना दुख कभी इन अंधेरों से ना कहना,
जब मिलेंगे हम बाहों में सिमट के रो लेंगे।

ज़िब्ह यूँ ही नहीं होती है मोहब्ब्त जहाँ में,
हम तुम भी यहाँ कटार से कट के रो लेंगे।

©Aditya Gupta
  #Nightlight
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Aditya Gupta

ये खिलखिलाता ये खुशमिजाज फूल।
छिपाता खूबसूरत सा राज फूल।

कभी गजरे में कभी शबिस्तानों में,
दीवानी के सर का है ताज फूल।

रूह बागानों की और अरमानों की,
मोहब्बत सुर है तो है साज़ फूल।

हम कदम की आहट हैं सूखे पत्ते,
तो टूटे दिल की है आवाज फूल।

तेरे चूमे हुए तेरे कुचले हुए,
सुर्खरू हो कर करते हैं नाज़ फूल।

कभी गालों से तो कभी आँखों से,
सरगोशियाँ कर रहे हमराज़ फूल।

उठती गिरती जवान सीनों की ये,
सब राज खोल रहे गम्माज़ फूल।

@ आदित्य गुप्ता
सर्वाधिकार सुरक्षित

©Aditya Gupta #lonelynight
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Aditya Gupta



क्या मजबूरी है और आवश्यकता क्यों है।
इश्क विश्क वग़ैरह  ज़रूरी बता  क्यों  है।

दिल लगाने की सज़ा ही जब है  रुसवाई,
फ़िर मुसलसल हमारी यही ख़ता  क्यों है।

मुनक़्क़ीद हुई है जबसे बज़्मे अदा यहाँ पे,
मोहब्बत अपने फ़र्ज़ से ही लापता क्यों है।

गुलाब निकाल कर कांटें छोड़ गया है कोई,
हाथ में तेरे ख़ाली खाली गुलदस्ता क्यों है।

आँखों का पानी सूख गया जब माजी में ही,
आँखों से बूंद बूंद जैसा कुछ रिसता क्यों है।

सिक्कों के बाज़ार में दिल उछाला ना करो,
अपने आप में ही बंद रहो बिखरता क्यों है।

ग़म गुसार ये और बहुत मिस्कीन है"आदित्य",
वक़्त है परिंदा तो ये मन भी फ़ाख्ता क्यों है।

©Aditya Gupta
  #Nightlight
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Aditya Gupta

किसी के साथ  किसी शाम टहलते हुए।
दरिया को भी देखा मैनें साथ चलते हुए।

चंचल मन बहती नदी सी थी वो लड़की,
देख रहे थे लोग जिसको हाथ मलते हुए।

डूबते सूरज की किरणें पड़ रही धारों पर,
जैसे लाल रंग बिखेर रहा हो पिघलते हुए।

लाल लहरें लग रही  जैसे बैठी हो लड़की,
पानी में एड़ियों की महावर को रगड़ते हुए।

छू कर निकल जाती है हाथ आती नहीं है
कोशिश जो की  किनारे पर फिसलते हुए।

अल्हड़ है,जादू है और बला की खूबसूरत,
बहुत शाद रहती है  ज़माने को छलते हुए।

चले आते हैं हम दोनों  हर शाम घर अपने,
रात भर तड़पने के लिए दिन में जलते हुए।

©Aditya Gupta #realization
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Aditya Gupta

फूल कुछ  कह रहे हैं मेरे कानों में।
लग गए ताले भौंरों की ज़ुबानों में।

सावन ने ली है जबसे अंगड़ाई यहाँ,
खुली रह गई खिड़कियाँ मकानों में,

वो रिमझिम बरसता पानी और बूंदें,
शायद ढ़ेर छेद हो गए आसमानों में।

बच्चे नाच रहे और बारिश का पानी,
मादकता ही तो भर रहा जवानों में।

कौन कितने पानी में है ये देखने को,
होड़ सी मच रही है हर खानदानों में।

आदित्य गुप्ता

©Aditya Gupta #selflove
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Aditya Gupta

अव्वल तो अपनी  तबियत सादा रखो।
फिर मोहब्बत हर कौम से ज़्यादा रखो।

दिमाग़ के बंद दर मुस्कुराने नहीं देते हैं,
हर हाल में मिज़ाज़ ज़रा  कुशादा रखो।

जो आज शहंशाह हैं वो कल नहीं रहेंगे।
क्या ज़रूरी है साथ अपने प्यादा  रखो।

उधार लेने वाला आँख चुराता फिरता है,
सभी से नक़द व्यवहार का तगादा रखो।

हर सुबह कली को चूम कर घर से चलो,
दिन भर फूलों से चाहत का इरादा रखो।

भीड़ इंसान को देवता बना देती है कभी,
बस जिंदगी अच्छे काम पे आमादा रखो।

गज़ल मुकम्मल हो तो कहें "आदित्य"से,
या मुझे तालीम देने का  नेक वादा रखो।

©Aditya Gupta #lily
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Aditya Gupta

खुश होती है बहन राखी बंधी कलाई देखकर।
जैसे शाद है ज़माना  ख़ुदा की खुदाई देखकर।

कई बहनें तड़प जाती हैं रक्षाबंधन के वक़्त पे,
कई बहनें फ़ख्र करती हैं सीमा पे भाई देखकर।

लाल पीला तिलक और अक्षत रख कर थाल में,
मचली बहन भाई में पिता की परछाई देखकर।

कब सुबह हो कब राखी बांधें और इतराने लगें,
नन्हें नन्हें भाई मचल रहे ताज़ी मिठाई देखकर।

आज मुस्कुरा कर बांध दे प्यारी सी राखी बहना,
कल मुस्कुरा ना पाऊंगा मैं तेरी बिदाई देखकर।

अपने लिए तो हर आदमी जिंदगी भर जीता है,
आदमी वो है जो हो गमगीन पीर पराई देखकर।

अंधेरे पर भारी है छोटा सा आरती का ये दीपक,
अब पहुँचेगा"आदित्य"दीये की रहनुमाई देखकर।

©Aditya Gupta #Hill
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