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सुनहरा वर्तमान

नाम देवीलाल जायसवाल काम नमकीन बेचना शोक घूमना पढ़ना और लिखना

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सुनहरा वर्तमान

केरल तीन आयामों पर जनसंख्या असंतुलन की ओर बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप सांस्कृतिक परिवर्तन में एक अतिवादी मुस्लिम बहुलता खतरनाक रूप से बढ़ रही है।
14 जून 2016 को मलेशिया में रहने वाली भारत की कृष्णेन्दु आर नाथ केरल के मल्लपुरम जिले की यात्रा कर रही थीं कि तभी वह अचानक बीमार हो गईं। नाथ ने लाइम सोडे की माँग की। उनके पति के मित्र ने हाइवे पर ही एक दुकान से लाइम सोडा खरीदने की कोशिश की। तो मित्र से कहा गया कि इस समय रमज़ान चल रहे हैं और किसी भी दुकान पर इस समय सोडा या दूसरा कोई भोज्य पदार्थ नहीं बेचा जा सकता है।

झुँझलाते हुए, नाथ ने दुकानदार से खुद जाकर पूछा कि उपवास के दौरान लाइम सोडा या लेमन जूस बेचने में उसे परेशानी क्या है। उन्होंने अचरज से सोचा कि उपवास न करने वाले यात्री क्या करते होंगे। दुकानदार ने विनम्रतापूर्वक जवाब दिया कि वह बिक्री तो करना चाहता है लेकिन ऐसा करने के बाद उसकी दुकान बंद कर दी जाएगी। अपने साथ घटी इस अप्रत्याशित घटना का एक फेसबुक पोस्ट में जिक्र करते हुए नाथ कहती हैं कि दूसरी दुकानों पर भी उनको ऐसी ही प्रतिक्रिया मिली जिससे वह यह सोचने पर मजबूर हो गईं कि कहीं वह सऊदी अरब में तो नहीं हैं।

70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले मल्लपुरम की वास्तविकता यह है कि यहाँ पर गैर-मुस्लिमों, हिंदुओ या ईसाईयों, का रमज़ान के दौरान दुकान या रेस्तरां खोलना और भोज्य पदार्थ बेचना संभव नहीं है। वाशिंगटन के मध्य पूर्व मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट में दक्षिण एशिया अध्ययन परियोजना के निदेशक और बीबीसी के पूर्व पत्रकार तुफैल अहमद नए इस्लाम पर अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि स्थानीय हिंदू विरोध करने में असमर्थ हैं और स्वेच्छा से द्वितीय श्रेणी के नागरिकों या ‘धिम्मियों’ के रूप में अपनी स्थिति स्वीकार कर चुके हैं।

केरल के मुस्लिम बहुलता वाले इलाकों में हालात बदल रहे हैं। रमज़ान के महीने को सऊदी अरब की तरह अब रमदान कहा जाने लगा है जिसके लिए खाड़ी देशों के धन और प्रभाव को धन्यवाद। पारंपरिक वेशती या लुंगी अब अरब के गाउन में बदल रहा है और मुस्लिम महिलाएं खुद को पूरी तरह से काले बुर्के से आच्छादित कर रही हैं, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया मुस्लिम बहुलता वाले इलाकों में मजबूत आधार प्राप्त कर रही है।

केरल की जनसांख्यिकीय की बदलती स्थिति काफी गंभीर है जिसको लेकर विशेषज्ञ भयभीत हैं। आँकड़े उभरती हुई बुरी प्रवृत्ति को इंगित करते हैं। सन् 1901 में, हिंदुओं की आबादी 43.78 लाख थी जो केरल की कुल आबादी की 68.5 प्रतिशत थी तथा मुस्लिमों की आबादी 17.5 प्रतिशत और ईसाईयों की आबादी 14 प्रतिशत थी। सन् 1960 तक, हिंदुओं की आबादी घटकर 60.9 प्रतिशत तक ही रह गई जबकि मुस्लिमों की आबादी बढ़कर 17.9 प्रतिशत तक हो गई। ईसाईयों की आबादी 21.2 प्रतिशत तक बढ़ी।

तब से केरल की आबादी में एक आश्चर्यजनक बदलाव होता रहा है। अगले दशक में, मुस्लिम आबादी में 35 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि के साथ हिंदुओं और ईसाईयों की आबादी में करीब 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। तब से हिंदू आबादी की वृद्धि कम होती रही है, जिसमें सन् 2001 से 2011 के बीच 2.29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मुस्लिम आबादी में असाधारण वृद्धि जारी रही है लेकिन इस अवधि में यह 12.84 प्रतिशत तक कम हुई है।

आज, हिंदुओं की आबादी 55 प्रतिशत (सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 55.05 प्रतिशत), मुस्लिमों की आबादी 27 प्रतिशत (सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 26.56 प्रतिशत) और ईसाईयों की आबादी 18 प्रतिशत है। लेकिन सन् 2016 में एक और वृद्धि दर्ज हुई है, वह है हिंदुओं से मुस्लिमों की जन्म संख्या में वृद्धि।

केरल अर्थशास्त्र एवं सांख्यिकी विभाग के अनुसार, सन् 2016 में हिंदुओं के मुकाबले मुस्लिमों का जन्म प्रतिशत 42.55 प्रतिशत के साथ सबसे ऊपर था। इसका मतलब है कि केरल में जन्म लेने वाले प्रत्येक 100 बच्चों में से 42 बच्चे मुस्लिम थे, जबकि हिंदू बच्चों की संख्या 41.88 के साथ थोड़ी सी कम थी। वास्तविक संख्याओं के बारे में बात करें तो सन् 2016 में 2.11 लाख से ज्यादा मुस्लिम तथा 2.07 लाख हिंदू बच्चों का जन्म हुआ था।

एक पूर्व अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि जन्म की मौजूदा प्रवृत्ति को देखते हुए सन् 2030 तक केरल की आबादी में 40 प्रतिशत मुस्लिम होंगे। अधिकारी ने कहा कि “यह सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं कि मुस्लिमों की जल्द से जल्द 50 प्रतिशत से अधिक आबादी हो। इसीलिए लव जिहाद के प्रकरण सामने आते रहते हैं।” बढ़ती मुस्लिम आबादी एक त्रिआयामी समस्या का केवल एक पहलू है। यह मुद्दा बेहद स्पष्ट होने के कारण सारी सुर्खियाँ बटोरता रहा और लोगों ने अन्य दो आयामों पर शायद ही ध्यान दिया।

केरल की जनसांख्यिकीय का दूसरा आयाम राज्य की वृद्ध आबादी है। करीब 15 प्रतिशत आबादी 60 साल की आयु के ऊपर की है। एक अध्ययन में पाया गया है कि सन् 1981 से केरल की आबादी में हर साल 10 लाख वृद्ध जुड़ते रहे हैं। सन् 1980 से 2001 तक होने वाली हर जनगणना में केरल की आबादी में 80 साल से अधिक आयु के एक लाख लोग जुड़ते रहे हैं। सन् 2001 के मुकाबले 2011 में यह सँख्या 2 लाख तक बढ़ गई थी।

सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज, तिरुवनंतपुरम के एस इरुदया राजन तथा तीन अन्य के द्वारा तैयार किए गए एक दस्तावेज में कहा गया है कि केरल में 60 साल और इससे ऊपर की आयु के अपवाद के साथ आयु सम्बन्धी वृद्धि में कमी आई है। सबसे ज्यादा चिंताजनक पहलू यह है कि 0-14 साल की युवा आबादी में नकारात्मक वृद्धि हुई है। इसके साथ ही, प्रजनन तथा मृत्यु दर में भी कमी आई है। तथ्य यह है कि केरल के सामने हर 1000 पुरुषों पर 1084 महिलाएं भी एक और समस्या है। अधिक वृद्ध जनसँख्या होने के कारण यह आयाम केरल को खतरे में डालता है।

केरल की बदलती जनसांख्यिकी का तीसरा आयाम केरल की तरफ बढ़ता प्रवासन है। यह सब इस सदी की शुरुआत में शुरू हुआ था जब रबर के पेड़ से रबर निकालने के लिए पूर्व और उत्तर-पूर्व से लोगों को यहाँ लाया जाता था। स्थानीय युवा विवाह सम्बन्धी समस्याओं सहित कई प्रकार की समस्याओं के कारण रबर निकालने के समर्थक नहीं थे। इसके बाद राज्य को बढ़ईगिरी, नलसाजी, भवन-निर्माण और विद्युत कार्यों के लिए प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर होना पड़ा।

गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड टैक्सेशन के मुताबिक, 2017 में कम से कम 35 से 40 लाख प्रवासी श्रमिक केरल में कार्यरत थे, हालांकि वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान आर्थिक स्थिरता के परिणामस्वरूप उनमें से कुछ चले गए होंगे। राज्य के अनुसार, लगभग 20 लाख लोग प्रतिवर्ष बाहर (विदेश में) प्रवासन करते हैं और 60 लाख से अधिक लोग अन्य राज्यों में।

इरुदाया राजन अपने दस्तावेज में बताते हैं कि केरल अपनी मूल आबादी में नकारात्मक वृद्धि देखने के लिए बाध्य है। इसका आशय है कि आबादी की संरचना में बदलाव का जिम्मेदार प्रवासन है। राज्य को कृषि, सेवाओं और निर्माण क्षेत्रों में इन प्रवासियों की जरूरत है। जैसा कि प्रवासी श्रमिक केरल के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसलिए राज्य की जनसांख्यिकी में बदलाव भी अपेक्षित समय से पहले हो सकते हैं। केरल के साथ, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे अन्य दक्षिणी राज्यों में भी उनकी जनसांख्यिकी में बदलाव देखे जाने की संभावना है।

राजनीतिक रूप से, मुस्लिम समुदाय को कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाले वाम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के शासन के तहत संरक्षण प्राप्त होता हुआ दिखाई देता है।

यूडीएफ सरकार में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के प्रभुत्व के चलते, इसके सदस्यों को उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी, बिजली, शिक्षा, पंचायत और शहरी विकास जैसे प्रमुख मंत्रालय मिले हैं। यह उन लोगों के लिए एक फायदा है जिन्हें पंचायत और शहरी/ग्रामीण विकास के मंत्री का पद मिलता है। केंद्र से अधिकांश फंड इन मंत्रालयों को मिलता है और प्रभारी व्यक्ति स्थानीय निकायों सहित स्कूलों और अन्य संस्थानों के माध्यम से इनका उपयोग अपनी पार्टी या व्यक्तिगत एजेंडा को बढ़ावा देने के लिए कर सकता है।

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के पास पंचायत और शहरी विकास मंत्री के पद होने के कारण इसे अपने मतदाताओं के निर्वाचन क्षेत्रों, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय, की देखभाल करने में मदद मिली है। इसलिए अधिकांश फंड्स आईयूएमएल के नियंत्रण वाली पंचायतों को गए हैं और साथ ही मुस्लिमों द्वारा चलाये जाने वाले या मुस्लिम प्रभुत्व वाले स्कूलों को भी मदद मिली है। मौजूदा एलडीएफ मंत्रिमंडल में, पंचायतें, शहरी और ग्रामीण विकास ए सी मोइदीन के अंतर्गत हैं, इसलिए मुसलमानों के लिए फंड आवंटन में प्राथमिकता सुनिश्चित की जाती है।

मलप्पुरम, कासारगोड, कन्नूर और कोझिकोड जैसे स्थानों पर मुस्लिम बहुलता ने ईसाइयों को भी चिंता में डाल दिया है, चूँकि इन जिलों में युवा मुसलमानों को चरमपंथी अतिवादी विचारधारा की ओर आकर्षित होते हुए देखा गया है। दो वर्ष पहले, कृष्ण जयंती मनाने के लिए हिंदुओं द्वारा निकाले गए जुलूस को इन तत्वों से कठोर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।

उत्तर केरल में एक ईसाई परिवार कहता है कि इस क्षेत्र में गैर-मुस्लिम लोग इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसे संगठनों द्वारा युवाओं को उकसाए जाने के साथ-साथ अतिवाद बढ़ने पर अधिक चिंतित हैं। जुलाई 2016 में, 21 लोगों ने सीरिया में आईएस में शामिल होने के लिए केरल छोड़ दिया। ये सभी अच्छी तरह से शिक्षित थे और यहाँ तक कि उनमें से कुछ डॉक्टर भी थे तथा प्रभावशाली पारिवारिक पृष्ठभूमि से थे। बाद में पता चला कि इन 21 लोगों को आईएस द्वारा नियंत्रित इलाकों में ‘अच्छी पोस्टिंग’ का भरोसा दिलाया गया था।

उन 21 लोगों में से कम से कम 4 लोगों की मौत हो गई लेकिन अन्य 17 लोगों के साथ क्या हुआ इस बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। दुर्भाग्य की बात है कि अदालतें इन मामलों को पर्याप्त गंभीरता से नहीं ले रही हैं। कम से कम दो लोगों, जिन्हें आईएस द्वारा नियंत्रित युद्ध-ग्रस्त क्षेत्रों से भारत भेज दिया गया था, को केरल उच्च न्यायालय द्वारा बरी कर दिया गया है, जिसने कहा है कि ऐसी आतंकवादी विचारधारा का समर्थन करना राज्य के खिलाफ युद्ध संचालित करना नहीं है।

लव जिहाद और सबरीमाला अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं का प्रवेश ऐसे मुद्दे हैं जो बदलती हुई जनसांख्यिकी और राज्य सरकार द्वारा पूर्ण बल के साथ हरकत में आ रहे तुष्टीकरण को देख रहे हैं। हादिया मामले में, सुप्रीम कोर्ट एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देने में असफल रहा। हादिया का जन्म अखिला अशोकन के रूप में हुआ था लेकिन उसने इस्लाम में धर्मपरिवर्तन कर लिया था। जब वह पीएफआई से संबंधित महिला ज़ैनावा की देखरेख में थी तो इसकी शादी एक मुस्लिम व्यक्ति शफीन जहाँ से हुई थी। जब हादिया के पिता ने केरल उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, तो विवाह रद्द कर दिया गया। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को नकारते हुए हादिया को जहाँ (उसका पति) के साथ जाने की अनुमति दे दी। जब यह प्रेम का मामला नहीं है तो माता पिता को सूचना दिए बिना अभिभावक या संरक्षक लड़की का विवाह कैसे कर सकते हैं?

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के वर्तमान विवाद के सन्दर्भ में, रेहाना फातिमा ने युगों-पुरानी परंपरा का खंडन करने के लिए पहाड़ी पर चढ़ाई की जिन्हें पिनाराई विजयन सरकार की पुलिस का समर्थन प्राप्त था। उनका दुर्भाग्य था कि उनके प्रति भक्तों ने कठोर व्यवहार किया और मंदिर तंत्री ने भी उन्हें पैदल वापस जाने को मजबूर करते हुए मंदिर बंद करने की धमकी दी।

समय के साथ-साथ केरल आने वाले प्रवासियों को देख रहा है और हर दशक में यहाँ मुस्लिमों की जनसँख्या बढ़ रही है। यह सब कुछ एलडीएफ और यूडीएफ दोनों की तुष्टीकरण राजनीति की पृष्ठभूमि के खिलाफ है। और तुष्टीकरण के संबंध में, इतिहास स्पष्ट है कि यह केवल आक्रामक को और अधिक आक्रामक बनाता है। जब मुसलमानों की आबादी कुल आबादी की 27 प्रतिशत है तो परिस्थितियाँ ऐसी हैं, तो जब यह संख्या 30 प्रतिशत से ऊपर पहुंचेगी तो केरल का भविष्य क्या होगा? #height

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सुनहरा वर्तमान

मतलब पड़ा तो सारे अनुबंध हो गए,

नेवलों के भी साँपो से संबंध हो गए। #waiting

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सुनहरा वर्तमान

पहचान से मिला काम बहुत कम समय के लिए टिकता है लेकिन काम से मिली पहचान उम्र भर कायम रहती है। #twilight

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सुनहरा वर्तमान

अब मंदिरों के सोने पर उनकी नजर ?
हिंदू मंदिरों और ट्रस्टों के पास रक्खा सोना कांग्रेस ने मांगा !
न देश ने मांगा, न सरकार ने, न प्रधानमंत्री ने !
तो पृथ्वीराज चव्हाण एंड कम्पनी ने घोर संकट के इस दौर में मंदिरों का सोना क्यों मांगा ?

वर्तमान समय में भारत की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत है। इतनी मजबूत कि भारत सरकार देशवासियों के लिए 20 लाख करोड़ का पैकेज ले आई। यूँ भी सरकारी खजाने में सोने का अकूत भंडार मौजूद है। देश लॉकडाउन के साथ साथ खोला भी जा रहा है। अब धन की कमी जल्द सामान्य होने की संभावना है। 

वैसे जरूरत पड़ने पर भारत की जनता कभी पीछे नहीं हटी। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के सहायता कोष के लिए देशवासियों ने अपनी तिजोरियाँ खोलकर लाखों करोड़ दान किया। 1962 और 65 के युद्धों में भारत की महिलाओं ने अपने कानों से कुंडल, हाथों से कड़े और नाक से नथनी उठाकर बिन मांगे देश के लिए न्यौछावर कर दिए। शास्त्रीजी की एक अपील पर करोड़ों देशवासियों ने सोमवार का व्रत रखकर अन्न बचाना शुरू कर दिया था।

प्रत्येक युद्ध के समय देश के भामाशाहों ने राष्ट्र की बलिवेदी पर क्या कुछ नहीं चढ़ाया। यहां तक कि रिक्शेवाले और मोची तक ने राष्ट्र को अपना हिस्सा अर्पित किया। भूकम्प हो, राष्ट्रीय संकट या राष्ट्रीय आपदा, देशवासी रुकना नहीं जानते। युद्धों के समय जनता ने अपने जवानों के लिए इतना रक्तदान किया कि ब्लड बैंकों को और लेने से मना करना पड़ा।

देने में भारत की सानी नहीं। यहां तो लोग जन्म से मिले और शरीर में जड़े कवच कुंडल तक दान कर देते हैं। भरत और बुद्ध जैसे राजपाट को सिद्धांतों की खातिर ठोकर मार देते हैं। कोरोना संकट में सोने की क्या बिसात ! सरकार जरा सा इशारा तो करे, लोग अपने जेवर चढ़ा देंगे। भारत तो कभी सोने की चिड़िया था, सोने की खान था। हमने तो लुटाया ही लुटाया, चाहे गजनवी लूटे, मीरबाकी, बाबर, तैमूर या औरंगजेब। शक लूटें या हूण, फिर कोरोना की जंग तो भारत तथा मानवता के अस्तित्व की जंग है। सरकार मांगेगी तो स्वर्ण दान करने वालों की कमीं नहीं रहेगी।

सरकार के किसी अंग ने सोने की बात नहीं की, पर उन्हें मंदिरों का सोना याद आ गया। पद्मनाभ, तिरुपति, महाकाल, साईं बाबा के मन्दिर याद आ गए। भारतवर्ष के मठ मन्दिर आश्रम और अखाड़े याद आ गए। किसी ईसाई या मुस्लिम को नहीं, शिवाजी के वंशज पृथ्वीराज चव्हाण को याद आ गए। इसी के साथ ट्विटर और शोशल मीडिया पर अतिबुद्धिजीवियों को मंदिरों का सोना याद आने लगा। अब सुभाष गई, अरुंधति और स्वरा को भी याद आने में देर नहीं लगी।

वास्तव में मन्दिर में जाकर भक्त जब कुछ चढ़ाता है तो मन्दिर को या ट्रस्ट को नहीं चढ़ाता, भगवान के अर्पण करता है। सुप्रीमकोर्ट से लेकर कई न्यायालयों ने अपने आदेश में मन्दिर का स्वामी भगवान को माना, पुजारी या ट्रस्ट को नहीं। नैनीताल हाईकोर्ट ने तो ऐतिहासिक फैसला देते हुए गंगाजी को जीवित व्यक्ति मान कर फैसला सुनाया। स्वयं उच्चतम न्यायालय ने रामलला को मन्दिर का स्वामी माना।

तो कांग्रेसी मित्रो ! मंदिरों में सोना है और बहुत खूब है ,,,
उसके स्वामी भी भगवान हैं ,सोना चाइए, तो सीधे भगवान के पास जाकर मांगिए ,खानदानी मंगतो।।। #footsteps
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सुनहरा वर्तमान

गैर हिंदुओं का हमारे देव स्थानों पर अनैतिक आकर्षण
अतीत से ही हमारे देवस्थान हमारी वैभवशाली संस्कृति के परिचायक रहे हैं ,ढेरों किलो सोना अकूत खजाने, सुंदर स्निग्ध मूर्तियां इन सब की विशेषताएं रही है ।जिस पर शुरू से ही गैर हिंदू आक्रांता ओं की नजर रही यह भूखे नंगे हमारी संस्कृति के ध्वजवाहको को लूटने खसोटने में ही दिलचस्पी रखते थे, हैं और रहेंगे ।मुगलों से शुरू है यह सिलसिला आज भी कायम है।
सवाई बदलने के साथ-साथ यह मंदिर यह मार्ट यह गुरुद्वारे श्रद्धालुओं के द्वारा और पोषित होते गए चढ़ावे की रकम सोना चांदी हीरे जवाहरात और विदेशी मुद्राएं इनमें निरंतर संचित होते आया है ।इसके ठीक उलट मुसलमानों की मस्जिदें और ईसाईयों के गिरजाघर सिर्फ और सिर्फ अनैतिक रूप से अपनी संख्या बढ़ाने में लगे हुए जमीनों को घेरना उस पर दुकानें बनाना और अंदर को जगह को प्रार्थना सभा का नाम देना इनका व्यवसाय बन गया उनके नेता उत्पन्न हो गए इनसे उनकी रोजी-रोटी चलने लगी सनातन धर्म को बदनाम करने की साजिश है यहीं से पनपने लगी आज भी यही हो रहा है हिंदू विरोध की अपने कुचक्र में आज फिर एक कांग्रेसी कुत्ते ने बयान दिया कि मंदिरों का सोना क्यों नहीं सरकार काम में लेती ।अरे हिम्मत हो तो सोनिया के चाटुकार अल्सेशियन कुत्ते किसी चर्च किसी गिरजाघर किसी कब्रस्तान किसी मस्जिद किसी मदरसे के बारे में ऐसा बोल कर बता । #footsteps
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सुनहरा वर्तमान

*"यूँ मुक़र्रर ना कर मेरी खुशियों की हद-ए-ज़िन्दगी,*
*हदों में रहना ना फितरत है ना आदत हैं मेरी "* #sunrays

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सुनहरा वर्तमान

तुम्हारे नाम से तुम्हारे ख्याल से.तुम्हारे आस-पास होने के एहसास से.

इश्क़ है प्यार है महोब्बत है. हाँ मुझे मोहब्बत हैं तुमसे ...! #Moon

9 Love

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सुनहरा वर्तमान

कच्चे कान,  शक्की नजर,  और कमज़ोर मन

इंसान को अच्छी समृद्धि  के बीच भी "दुःख" का अनुभव कराता है #Love

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सुनहरा वर्तमान

*जीवन में किसी को रुलाकर*
    *हवन भी करवाओगे तो*
       *कोई फायदा नहीं*

 *और अगर रोज किसी एक*
*इंसान को भी हँसा दिया तो*
  *आपको अगरबत्ती भी*
   *जलाने की जरुरत नहीं* #myvoice

7 Love

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सुनहरा वर्तमान

*जीवन में किसी को रुलाकर*
    *हवन भी करवाओगे तो*
       *कोई फायदा नहीं*

 *और अगर रोज किसी एक*
*इंसान को भी हँसा दिया तो*
  *आपको अगरबत्ती भी*
   *जलाने की जरुरत नहीं* #emptiness
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