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chandrapokhriyal6427
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Chandra Pokhriyal

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Chandra Pokhriyal

 अकेला पढ़ा हूँ
ढेर! फ़र्श पर
कपड़े की गठरी सा
न मान, न सम्मान
निर्जीव, निष्प्राण
बेडौल निराकार
शो खत्म होने के बाद
क्यों ऐसा तिरस्कार?

अकेला पढ़ा हूँ ढेर! फ़र्श पर कपड़े की गठरी सा न मान, न सम्मान निर्जीव, निष्प्राण बेडौल निराकार शो खत्म होने के बाद क्यों ऐसा तिरस्कार? #Poetry

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Chandra Pokhriyal

स्पंदन...

चाहे राजशी आन बान हो
या फिर अरण्य बियाबान हो

महल विशाल आलीशान हो।
या सादा घास-फूस का मकान हो।

वन उपवन में परिणित हो जाता है
जब अधरों पे मीठी मुस्कान हो।

क्योंकि मुस्कान तब ही जागृत होती है
जब अन्तरहृदय में प्रेम स्पंदन होता है।

नहीं तो हर उन्मुक्त अट्टाहास के पीछे
सदैव एक करुण क्रंदन होता है।

-चंद्रमोहन, 09/12/2017, 15:32

©chandra_mohan_pokhriyal

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Chandra Pokhriyal

अकेला पढ़ा हूँ ढेर! फ़र्श पर कपड़े की गठरी सा न मान, न सम्मान निर्जीव, निष्प्राण बेडौल निराकार शो खत्म होने के बाद क्यों ऐसा तिरस्कार? #Poetry

अकेला पढ़ा हूँ ढेर! फ़र्श पर कपड़े की गठरी सा न मान, न सम्मान निर्जीव, निष्प्राण बेडौल निराकार शो खत्म होने के बाद क्यों ऐसा तिरस्कार? #Poetry

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Chandra Pokhriyal

       गरीब की मुहोब्बत!

जब भी पहुंचे तेरे कूचे में, दौड़ा दिए कुत्ते हम पर
न रहा शरीफों का ज़माना, हुई इंसानियत ख़ाक

तेरे बाप ने लेकर पुलिस, पैसे और कुत्तों का सहारा 
हम गरीबों की मुहोब्बत का उड़ाया है मज़ाक

गरीब की मुहोब्बत! जब भी पहुंचे तेरे कूचे में, दौड़ा दिए कुत्ते हम पर न रहा शरीफों का ज़माना, हुई इंसानियत ख़ाक तेरे बाप ने लेकर पुलिस, पैसे और कुत्तों का सहारा हम गरीबों की मुहोब्बत का उड़ाया है मज़ाक #Poetry

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Chandra Pokhriyal

                      मश्के सुखन...

दो बजे थे रात के, 
हर सम्त था गहरा सुकून,
और मैं फरमा रहा था 
शौक से मश्के सुखन,

जाग उठी बेगम अचानक,

मश्के सुखन... दो बजे थे रात के, हर सम्त था गहरा सुकून, और मैं फरमा रहा था शौक से मश्के सुखन, जाग उठी बेगम अचानक, #Poetry #हिंदी #चन्द्रमोहन

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Chandra Pokhriyal

बेचारा रावण... एक बार अपराध किया तो, सज़ा मिले एक बार सीता हरण इक बार हुआ, क्यों जले रावण बारम्बार नैतिकता की बात रहने दो, #Poetry

बेचारा रावण... एक बार अपराध किया तो, सज़ा मिले एक बार सीता हरण इक बार हुआ, क्यों जले रावण बारम्बार नैतिकता की बात रहने दो, #Poetry

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Chandra Pokhriyal

#गणतंत्र #वोट #पद्मावती #ख़िलजी #padmavati #लोकतंत्र
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Chandra Pokhriyal

#indian #toilet #गर्व #चन्द्रमोहन
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Chandra Pokhriyal

#झंडा #गणतंत्र #प्रजातंत्र #स्वतंत्र
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Chandra Pokhriyal

काला धन आये न आये,
डूबे हुए सब कर्ज माफ होंगे।
है यकीन लगा लो शर्त, 
गंगा से पहले बैंक साफ होंगे॥

- चन्द्रमोहन, 23/02/2018 #कालाधन #बैंक #bank #loan
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