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raviguptart6283
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Ravi Gupta(RT)

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Ravi Gupta(RT)

चोट  पे  चोट   खा  रहे हो , बड़े अजीब हो 
फिर भी   मुस्कुरा   रहे हो , बड़े अजीब हो 

सीख  के  हमसे  पैंतरे  दुनियादारी के तुम
हम  पर ही आज़मा  रहे हो बड़े अजीब हो 

रात   भर  अंधेरे  में  खाकर इतनी   ठोकरें 
दिन में   दीए  जला  रहे  हो बड़े अजीब हो

बरसों   बाद    मांगे   हैं   वापस अपने  पैसे  
अब  भी   सर  खुजा रहे हो बड़े अजीब हो 

लटका  है   ताला  इतना  बड़ा जिस द्वार पे
उसे कब से खटखटा  रहे हो बड़े अजीब हो

कभी वापस न आने  का वादा करके हमसे
रोज  ख्वाब  में आ  रहे   हो  बड़े अजीब हो

खूने जिगर  से लिखी हैं ' रवि' ने जो ग़ज़लें 
उन्हें  अपना   बता  रहे   हो  बड़े  अजीब हो 

रवि गुप्ता RT  ' like u RT
बङे आजीब हो

like u RT बङे आजीब हो

7 Love

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Ravi Gupta(RT)

ग़ज़लः-
जुस्तजू है न कोई तलब क्या कहूँ
हो गई है जिंदगी बे-सबब क्या कहूँ

क्यूँ सी लिए हैं मैंने लब क्या कहूँ
अब सामने सबके सबब क्या कहूँ

जब कहा मरते हैं तुम पर हंस दिए
जहाँ से क्यूँ चल दिए अब क्या कहूँ

तुमने तो तारे गिन कर रात काट दी
गुजरी है कैसे अपनी शब क्या कहूँ

रेज़ा-रेज़ा हो गया दिल का आईना
उसको समझा था मुक़रर्ब क्या कहूँ

ऊपरवाले को बताते हैं सभी वो एक है
पर हैं अलग अलग सबके रब क्या कहूँ

गालियों के सिवा जिनके पास कुछ नहीं
ऐसे शख़्स भी चाहते हैं अदब क्या कहूँ

जिंदा है आदमी बस मर गई इंसानियत
इल्म की ये सहर या कि शब क्या कहूँ like u RT

like u RT

10 Love

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Ravi Gupta(RT)

ज़माने में लोगों  का अजब हाल देखा 
रहन सहन रईसी , दिल  कंगाल देखा

हल्दी  से  ज़र्द  देखे चेहरे   अमीरों  के 
फकीरों के चेहरों को सुर्ख  लाल देखा 

उतना  सन्नाटा  ही पाया   उनके अंदर
महलों को हमने जितना विशाल देखा

जहन  में  फांसने  की  साज़िशें  देखी 
चेहरों  पर मुस्कुराहटों का जाल देखा

जीस्त*  के हर मुसाफ़िर  की आंख में 
अन  सुलझा  सा  कोई  सवाल   देखा

शैतानियत  को   बुलंदियां   छूते  देखा 
इंसानियत   को   गिरते   पाताल  देखा 

मुबारक   देने   आए   हुए    लोगों   के 
दिलों    के     अंदर    मलाल       देखा 

थी जिन घरों पर  बुजुर्गों  की शफ़क़त* 
उन  घरों  से    कांपते     भूचाल  देखा

दुनिया ए अदब ने  तब' रवि  'को जाना 
उसके  लफ़्ज़ों  का  जब  कमाल देखा 

जीस्त :- ज़िन्दगी 
शफ़क़त :- दया ,कृपा 

रवि गुप्ता RT अजब हाल देखा
रवि गुप्ता RT

अजब हाल देखा रवि गुप्ता RT

10 Love

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Ravi Gupta(RT)

हम   जब   आईना   दिखाने   लगते  हैं 
लोग      क्यूं   चेहरे   छुपाने   लगते   हैं 

वहां   ले  गए    वो    बहला  कर   मुझे 
जहां    से   लौटने   में   ज़माने लगतें हैं 

जिक्र   होता   है जब मेरी   बरबादी का 
आप   क्यूं   नज़रें      चुराने    लगते  हैं 

बुझ  जाती  है आग उनके ही अश्कों से 
जब वो मेरे   ख़त      जलाने  लगते   हैं 

कुछ तो   छुपाया  है  तूने   अपने बारे में 
तेरे  जिक्र पे   लोग   मुस्कुराने  लगते हैं

मेरे  मरने की  खबर   भी   अब   उनको 
मेरे    न    आने    के   बहाने   लगते   हैं 

न    रोक   आंसुं  ,   इनके      बहने   से   
कितने   ही    गम     ठिकाने    लगते  हैं  

मां   बाप को कहां  मां   बाप समझते हैं 
बच्चे   जब     ख़ुद     कमाने   लगते  हैं 

बदल  ' रवि' तू  अंदाज़  ए बयां अपना 
तेरे  सच्च अब सबको फ़साने*  लगते हैं

फसाने :- कल्पित , imaginary 

रवि गुप्ता RT आईना 
रवि गुप्ता RT

आईना रवि गुप्ता RT

9 Love

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Ravi Gupta(RT)

ख़ुश होती रही तू जिंदगी मुश्किलें डाल डाल के ..
फिर  भी  तुझे जीया  रास्ते  निकाल  निकाल के 

थाम के  रखते   इसे    तो  शायद महफूज़ रहता 
ख़ुद तोड़ लिया दिल अपना  उछाल  उछाल  के 

भर ही जाता   ज़ख्म जो  वक़्त पे दवा कर लेते 
नासूर   बना   बैठे  मर्ज   को    टाल    टाल   के 

ख़ुद  बड़ा     हाथ  ,  ख़तम कर दुशमनियों  को 
कुछ न  मिलेगा दिल   में  इनको  पाल  पाल के 

वो सब  शिकवे   जो   उनसे  किए   न  जा  सके 
ज़हर  बना लिए    दिल   में    संभाल संभाल के 

क़ातिल ने  मेरे  क़त्ल का एक भी निशां न छोड़ा
थक   गए   सब   मौके   को  खंगाल  खंगाल  के 

शायरी करनी  है ' रवि '  तो अभी और फरेब खा
शेर निकलेंगे  दिल  से   फिर  कमाल  कमाल के 

रवि गुप्ता RT खुश होती रही जिन्दगी 
रवि गुप्ता RT

खुश होती रही जिन्दगी रवि गुप्ता RT

10 Love

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Ravi Gupta(RT)

मेरी    मेज़बानी    आज़माने   आया  है 
समंदर मेरे पास प्यास  बुझाने  आया है

वो ख़ुद   मंज़िल  से भटका  मुसाफ़िर है
जो  मुझ   को  रास्ता दिखाने   आया  है

फिर   कटेगी    आज    ये     ज़ेब    मेरी 
फिर  आज   वो    गले  लगाने  आया  है 

मेरे   पांव   में     पत्थर      बांध   रहा है 
कहता  है    डूबने  से   बचाने   आया  है

वो  मुर्गा  जो  आज   कटने    वाला    है    
बांग  दे   कसाई  को   जगाने    आया है 

हार  के सब , फिर  लौटा  है  महफ़िल में
अब   द्रौपदी   दाव   पे   लगाने  आया है

खाली  हाथ  जिसने   लौटाया   था कभी
आज   मेरा   द्वार   खटखटाने  आया   है 

कैसा  नादान  है   मेरी   शायरी का  चोर 
फूलों    से      खुशबू    चुराने  आया   है 

ज़िन्दगी    भर     ठोकरें    खाकर ' रवि  ' 
अब  तेरा    दिमाग    ठिकाने   आया  है

रवि गुप्ता RT आजमाने आया है 
रवि गुप्ता RT

आजमाने आया है रवि गुप्ता RT

10 Love

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Ravi Gupta(RT)

गिले शिकवों  के  अफ़साने पीछे छोड़ आया हूं 
रिस्ते  ज़ख्मों  के  ख़ज़ाने  पीछे  छोड़ आया हूं 

नई सोच लिए खड़ा हूं नए साल की दहलीज पे
दुश्मनीयों के किस्से  पुराने  पीछे छोड़ आया हूं 

आज का काम आज करने की  ठान ली है  मैंने 
कल  पे टालने के  बहाने  पीछे  छोड़  आया हूं 

कर लिए  हैं मुकर्रर    नए  मकसद  ज़िन्दगी के  
न भेद पाया   जो  निशाने  पीछे  छोड़ आया हूं

जमा लीं हैं  फिर  से  पुराने दोस्तों की महफिलें 
वो अकेलापन और वीराने  पीछे  छोड़ आया हूं 

ख़ुदा  की  रज़ा  पे  छोड़  दी  नाव  ज़िन्दगी की 
डूब  जाने  के   डर  अंजाने  पीछे छोड़ आया हूं 

सवारना है ' रवि  'अब बस आने वाले वक़्त को 
गुज़र गए  हैं  जो  ज़माने  पीछे  छोड़  आया  हूं

रवि गुप्ता RT जिले शिकवा
रवि गुप्ता RT

जिले शिकवा रवि गुप्ता RT

12 Love

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Ravi Gupta(RT)

########  ( मां  )   #########

मुठ्ठी  में  नमक  ले  के मेरे सर पे वार देती थी ..
मां  मेरा   बुखार     इस   तरह  उतार देती थी 

बुरा  दौर  भी   मेरा   कुछ   न   बिगाड़  सका 
हाथ  की  रेखाएं   दुआओं  से  सवार देती थी 

बरगद  की  छांव   सी ठंडक मिला करती  थी
अपना  आंचल    मेरे  सर  पे   पसार देती  थी 

फिर   कभी  न   मांगा    वापस    ज़िन्दगी  में 
मेरी  तंगहाली  में  जो  पैसा  उधार   देती  थी 

पिता  की  ज्यादा  लाड  न लगाने की नसीहत 
मेरी  मां तो  मौके  पे   ही   नकार     देती  थी 

हम  सब बहन भाइयों को एक सा  देखती थी
पर मुझ छोटे को  सबसे ज्यादा  प्यार देती थी 

बड़े बड़े  ग्रंथों  से भी   वो कभी   न मिल पाते 
वो अपने  किरदार    से  जो   संस्कार देती थी 

पल भर  में  भूल  जाता  था मैं उसकी मार को 
सर  पे   हाथ  फेर   जब     पुचकार    देती थी 

नाना होकर भी  मैं  , फिर बच्चा बन जाता था 
' रवि  कह कर प्यार से  जब  पुकार  देती थी

रवि गुप्ता RT माँ

माँ

16 Love

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Ravi Gupta(RT)

########  ( मां  )   #########

मुठ्ठी  में  नमक  ले  के मेरे सर पे वार देती थी ..
मां  मेरा   बुखार     इस   तरह  उतार देती थी 

बुरा  दौर  भी   मेरा   कुछ   न   बिगाड़  सका 
हाथ  की  रेखाएं   दुआओं  से  सवार देती थी 

बरगद  की  छांव   सी ठंडक मिला करती  थी
अपना  आंचल    मेरे  सर  पे   पसार देती  थी 

फिर   कभी  न   मांगा    वापस    ज़िन्दगी  में 
मेरी  तंगहाली  में  जो  पैसा  उधार   देती  थी 

पिता  की  ज्यादा  लाड  न लगाने की नसीहत 
मेरी  मां तो  मौके  पे   ही   नकार     देती  थी 

हम  सब बहन भाइयों को एक सा  देखती थी
पर मुझ छोटे को  सबसे ज्यादा  प्यार देती थी 

बड़े बड़े  ग्रंथों  से भी   वो कभी   न मिल पाते 
वो अपने  किरदार    से  जो   संस्कार देती थी 

पल भर  में  भूल  जाता  था मैं उसकी मार को 
सर  पे   हाथ  फेर   जब     पुचकार    देती थी 

नाना होकर भी  मैं  , फिर बच्चा बन जाता था 
' रवि  ' कह कर प्यार से  जब  पुकार  देती थी

रवि गुप्ता RT माँ

माँ

17 Love

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Ravi Gupta(RT)

तब   फ़ना    मेरे    सब    हौशले  हो    गए
बीच    में     अपने जब   फ़ासले   हो   गए

हमने   ही    दिल    लगाने   की तालीम दी
आज  हम  ही  सनम   दिलजले हो     गए 

जिंदगी   भर   में   बन   पाये  थे हमसे  जो 
तिनके  तिनके  वो  सब   घौंसले हो     गए 

जिनको  हमने  सिखाया  वफ़ा  का  चलन
उनकी    नजरों   में   हम   दोगले  हो  गए 

जिनसे   उम्मीद   थी    हमको तामीर   की रवि
वो    कयामत    भरे   जलजले   हो    गए 

जिनको हमने  दिये अपने नक्श़  ए  कदम
हम   बुरे   सबके  और   वो  भले हो    गए

राख    में    ढूँढने     आए    चिंगारी     तब
ज़ब    ज़माने    मिरे    को   ज़ले  हो    गए 

रवि गुप्ता RT तब फना

तब फना

9 Love

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