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shaileshyadav6871
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Shailesh "saral"

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Shailesh "saral"

sochta hu tujhe

sochta hu tujhe

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Shailesh "saral"

सब कहते हैं नर - रूपी पिशाच मुझे
क्या नहीं बची अब मुझ में दया और सहनशीलता
क्यों बन गया मैं ऐसा ,कौन है जिम्मेदार?
परिस्थितियों का रोना हर बार की तरह 
क्या रो कर मैं इस बार भी बच पाऊंगा 
या फिर हो जाऊंगा दूर 
अपने आपसे लगने वाले नर से दूर
संज्ञा- शून्य पिशाच की तरह
जिसकी लाल आंखें सिर्फ चलती हैं
सिर्फ स्वार्थ रूपी रोटियां तलती हैं
और हो जाती हैं मौन ,बेबस 
औरों की सहानुभूतियों के लिए संज्ञा- शून्य
 समझ से परे ,असहिष्णु ।।
                                                       
                                                   शैलेश सरल ' नर -रूपी पिशाच

नर -रूपी पिशाच

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Shailesh "saral"

हां! मैं जिंदा हूं
चलो ,यह एहसास ही काफी है
 जिंदा रहने के लिए
इस नीरीह ,बेबस निस्प्राण धरती पर
जहां ना अब ना बची 
लोगों में जीने की ललक 
ना वो युगों बाद
मानुष तन पाने की चाह
चलो ,अच्छा है कि मैं अभी भी जिंदा हूं
इन संवेदनहीन मुर्दों के बीच
जिनका ना कोई धर्म है ना कोई जात
हां मैं जिंदा हूं 
चलो यह एहसास ही काफी है
 ज़िंदा रहने के लिए  ।।
                                                   शैलेश 'सरल' हां ,मैं जिंदा हूं।।

हां ,मैं जिंदा हूं।।

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Shailesh "saral"

रह रह के  मैं खो जाता हूं 
अपने गम के राहों में
कौन है मेरा, कौन सुनेगा
अब मेरी बातों को 
जब रहा न कोई
नर धरती पर
कौन सहेगा जज्बातों को
रह रह के मैं खो जाता हूं 
अपने गम की राहों में।।
सुना है सब बन गए हैं ,पिशाच
ना रही जीने की ललक 
और ना मरने की आस
छोड़ जीने मरने की सांसत  
चल भाग, उ ठ भाग
जीना है गर तो भाग 
चल उठ भाग
रह रह के मैं खो जाता हूं 
अपने गम की राहों में।। रह - रह के

रह - रह के

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Shailesh "saral"

हे शिवशंकर 
हे प़लयंकर 
जग की पीर हरो।
जग की पीर हरो।।
घोर हलाहल
वसुधा पीड़ित
अब विषपान करो
हे शिव शंकर
हे प्रलयंकर कर
जग की पीर हरो।
अनगिन भस्मासुर
 फिर सक्रिय
 देव शक्तियां 
हतप्रभ निष्क्रिय
गहो त्रिशूल पुनः 
त्रिपुरांतक !
अब संहार करो ।
वसुधा आहत 
अंबर आहत 
मानवता का मन 
क्षत -विक्षत
 सजल नयन से 
तुम्हें निहारे
 अब उद्धार करो 
जग की पीर हरो।
                                                    शैलेश 'सरल' जग की पीर हरो ।।

जग की पीर हरो ।।

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Shailesh "saral"

।।बचपन को बचाना है।।

देश की मौजूदा हालत पर,

पतझड़ में घिरा देखो, उपवन को बचाना है।
 मेघों को बचाना है, सावन को बचाना है।

प्रदूषण पर,      
नदियों में जहर घोला, पेड़ों को मिटा डाला
               अब मौत के पंजे से जीवन को बचाना है।            
अपनों में पर आए हैं रिश्ते हुए बेमानी
              दीवारों के घेरे में आंगन को बचाना है ।       


औरतों की दुर्दशा पर,    
आंखों से बहा काजल कहता है ये रो-रो कर
आंखों को बचाना है , दरपन को बचाना है।
जब कोंख में किलकारी घुट के मर जाती है।
मुस्कान बचाने को बचपन को बचाना है।
                                          शैलेश "सरल" #बचपन को बचाना है।।#

#बचपन को बचाना है।।#

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Shailesh "saral"

# मेरे नजदीक मत आ #

मुझे इन आंखो से डर लगता है
क्या कहीं आंखों से गुजारा चलता है
बग़ैर काम किए कहीं निवाला मिलता है
सुना है ,आंखें होती हैं आदमी की जुबां
जो करती है उसकी मुसीबत बयां
मुफलिसी के दिनों में 
हर किसी से करती हैं इल्तज़ा
पर क्या किसी को इस पर तरस आता है?
मेरे नज़दीक मत अा
मुझे इन आंखों से डर लगता है
कहता है हर कोई,मै हूं तेरा अपना
मुसीबत में कौन साथ निभाता है?
मेरे नज़दीक मत आ
मुझे इन आंखो से डर लगता है।।
शैलेश "सरल" # मेरे नज़दीक मत आ #

# मेरे नज़दीक मत आ #

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Shailesh "saral"

शायद, ये सच है ।

शायद, ये सच है ।

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Shailesh "saral"

आओ ,फिर से तुमको प्यार कर लूं ।

आओ ,फिर से तुमको प्यार कर लूं ।

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Shailesh "saral"

आज तुमसे दूर होकर ।

आज तुमसे दूर होकर ।

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