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DURGESH AWASTHI OFFICIAL

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DURGESH AWASTHI OFFICIAL

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DURGESH AWASTHI OFFICIAL

🌸🌸  *चिन्तन*  🌸🌸

*पूजनीया महाभागाः पुण्याश्च गृहदीप्तयः।*
*स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्ताः तस्माद् रक्ष्या विशेषतः।।*

(महाभारत, उद्योग पर्व ३८/११)

भावार्थः -
स्त्रियां घर की लक्ष्मी कही गई हैं। ये अत्यंत सौभाग्य शालिनी, आदर के योग्य, पवित्र तथा घर की शोभा हैं, अतः उनकी विशेष रूप से रक्षा करनी चाहिए।

©Surbhi Gau Seva Sanstan #bestfriends
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*धनञ्जये हाटक संपरीक्षा*
          *रणाजिरे शस्त्रभृतां परीक्षा l*
*विपत्तिकाले गृहिणी परीक्षा*
          *विद्यावतां भागवते परीक्षा  ll*

भावार्थ -- *सुवर्ण की परीक्षा अग्नि में होती है,  रणभूमि में शस्त्रधारी (योद्धा) की परीक्षा होती है l आपत्ति काल में पत्नी की परीक्षा होती है और विद्वानों की परीक्षा भागवत जी में होती है l
DKCS

         🚩जय श्री राम 🚩

©Surbhi Gau Seva Sanstan #hugday
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वाणी ही महानता का परिचय देती हैं
DKCD
हर हर महादेव

©Surbhi Gau Seva Sanstan #teddyday
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गुप्त नवरात्रि

©Surbhi Gau Seva Sanstan #सनातन_समाज_के_मौलिक_जातीय_तत्त्व।।
१. सनातन समाज में वर्ण चार ही होते हैं, पाँचवाँ वर्ण नहीं होता। ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य ये तीनों “द्विज” वर्ण हैं तथा शूद्र “एकज” वर्ण है। उपनयनपूर्वक गुरु से वेदाभ्यास सीखने के कारण द्विज नाम दिया गया है। पूर्णिमा में स्वगुरु का पूजन व स्मरण करना चाहिए।

२. चारों में से किसी भी वर्ण में परिगणित न होने वाले सनातनियों को “वर्णेतर, अन्तरप्रभव अथवा सान्तराल” कहते हैं। इस विभाग की संख्या सर्वाधिक होती है। इस प्रकार सनातन समाज के ५ विभाग हैं जो क्रमश: निम्नतर हैं क्योंकि इनके लिए क्रमश: न्यून नियम, कर्तव्य, आदर्श तथा मूल्य हैं –
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र व अन्तरप्रभव।

३. द्विज वर्ण “जाति” भी हैं जिनमें अनेक “उपजातियाँ” होती हैं और उच्चता-क्रम भी होता है।

सनातन_समाज_के_मौलिक_जातीय_तत्त्व।। १. सनातन समाज में वर्ण चार ही होते हैं, पाँचवाँ वर्ण नहीं होता। ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य ये तीनों “द्विज” वर्ण हैं तथा शूद्र “एकज” वर्ण है। उपनयनपूर्वक गुरु से वेदाभ्यास सीखने के कारण द्विज नाम दिया गया है। पूर्णिमा में स्वगुरु का पूजन व स्मरण करना चाहिए। २. चारों में से किसी भी वर्ण में परिगणित न होने वाले सनातनियों को “वर्णेतर, अन्तरप्रभव अथवा सान्तराल” कहते हैं। इस विभाग की संख्या सर्वाधिक होती है। इस प्रकार सनातन समाज के ५ विभाग हैं जो क्रमश: निम्नतर हैं क्योंकि इनके लिए क्रमश: न्यून नियम, कर्तव्य, आदर्श तथा मूल्य हैं – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र व अन्तरप्रभव। ३. द्विज वर्ण “जाति” भी हैं जिनमें अनेक “उपजातियाँ” होती हैं और उच्चता-क्रम भी होता है। #ज़िन्दगी

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वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है ।
वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 
इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते |
पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० )
अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है ।
वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के रूप में कृष्ण ही हैं न कि इन्द्र ।
_________________________________________
विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधस : 
सवितारं नृचक्षसं (ऋग्वेद १ /२ २/ ७ 
सब के हृदय में विराजमान सर्वज्ञाता दृष्टा ! जो राधा को गोपियों में से ले गए वह सबको जन्म देने वाले प्रभु हमारी रक्षा करें।👇

त्वं नो अस्या उषसो व्युष्टौ त्वं सूरं उदिते बोधि गोपा: जन्मेव नित्यं तनयं जुषस्व स्तोमं मे अग्ने तन्वा सुजात।। (ऋग्वेद -१५/३/२) ________________________________________
अर्थात् :- गोपों में रहने वाले तुम इस उषा काल के पश्चात् सूर्य उदय काल में हमको जाग्रत करें ।
जन्म के समय नित्य तुम विस्तारित होकर प्रेम पूर्वक स्तुतियों का सेवन करते हो ,
तुम अग्नि के समान सर्वत्र उत्पन्न हो । 👇

त्वं नृ चक्षा वृषभानु पूर्वी : कृष्णाषु अग्ने अरुषो विभाहि । 
वसो नेषि च पर्षि चात्यंह:कृधी नो राय उशिजो यविष्ठ ।। (ऋग्वेद - ३/१५/३ ) 
अर्थात् तुम मनुष्यों को देखो हे वृषभानु ! 
पूर्व काल में कृष्ण जी अग्नि के सदृश् गमन करने वाले हैं ।
ये सर्वत्र दिखाई देते हैं , और ये अग्नि भी हमारे लिए धन उत्पन्न करे इस दोनों मन्त्रों में श्री राधा के पिता वृषभानु गोप का उल्लेख किया गया है ।
जो अन्य सभी प्रकार के सन्देहों को भी निर्मूल कर देता है ,क्योंकि वृषभानु गोप ही राधा के पिता हैं। 👇
यस्या रेणुं पादयोर्विश्वभर्ता धरते मूर्धिन प्रेमयुक्त : -(अथर्व वेदीय राधिकोपनिषद ) 

१- यथा " राधा प्रिया विष्णो : 
(पद्म पुराण )

२-राधा वामांश सम्भूता महालक्ष्मीर्प्रकीर्तिता
(नारद पुराण )

३-तत्रापि राधिका शाश्वत (आदि पुराण )

४-रुक्मणी द्वारवत्याम तु राधा वृन्दावन वने । 👇
(मत्स्य पुराण १३. ३७ )

५-(साध्नोति साधयति सकलान् कामान् यया राधा प्रकीर्तिता: ) जिसके द्वारा सम्पूर्ण कामनाऐं सिद्ध की जाती हैं।
(देवी भागवत पुराण )

और राधोपनिषद में श्री राधा जी के २८ नामों का उल्लेख है। 
जिनमें गोपी ,रमा तथा "श्री "राधा के लिए ही सबसे अधिक प्रयुक्त हुए हैं।

६-कुंचकुंकुमगंधाढयं मूर्ध्ना वोढुम गदाभृत : (श्रीमदभागवत )

हमें राधा के चरण कमलों की रज चाहिए जिसकी रोली श्रीकृष्ण के पैरों से संपृक्त है (क्योंकि राधा उनके चरण अपने ऊपर रखतीं हैं ) यहाँ "श्री " शब्द राधा के लिए ही प्रयुक्त हुआ है । 
महालक्ष्मी के लिए नहीं।

क्योंकि द्वारिका की रानियाँ तो महालक्ष्मी की ही वंशवेल हैं। 
ऐसी पुराण कारों की मान्यता है वह महालक्ष्मी के चरण रज के लिए उतावली क्यों रहेंगी ?

रेमे रमेशो व्रजसुन्दरीभिर्यथार्भक : स्वप्रतिबिम्ब विभाति " -(श्रीमदभागवतम १०/३३/१ ६ कृष्ण रमा के संग रास  करते हैं। 
--जो कभी भी वासना मूलक नहीं था ।
यहाँ रमा राधा के लिए ही आया है।
रमा का मतलब लक्ष्मी भी होता है लेकिन यहाँ इसका रास प्रयोजन नहीं है।
लक्ष्मीपति रास नहीं करते हैं। 
भागवतपुराण के अनुसार रास तो लीलापुरुष कृष्ण ही करते हैं।👇
आक्षिप्तचित्ता : प्रमदा रमापतेस्तास्ता विचेष्टा सहृदय तादात्म्य -(श्रीमदभागवतम १०/३०/२ )

जब श्री कृष्ण महारास के मध्य अप्रकट(दृष्टि ओझल ) या ,अगोचर ) हो गए तो गोपियाँ विलाप करते हुए मोहभाव को प्राप्त हुईं।
वे रमापति (रमा के पति ) के रास का अनुकरण करने लगीं । 
यहाँ रमा लक्ष्मीपति विष्णु हैं।
वस्तुत यहाँ भागवतपुराण कार ने  श्रृंगारिकता के माध्यम से कृष्ण के पावन चरित्र को ही प्रकट किया है।।

©Surbhi Gau Seva Sanstan वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है ।
वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 
इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते |
पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० )
अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है ।
वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के रूप में कृष्ण ही हैं न कि इन्द्र ।
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विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधस :

वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० ) अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है । वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के रूप में कृष्ण ही हैं न कि इन्द्र । _________________________________________ विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधस : #विचार

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har har mahadev

©Surbhi Gau Seva Sanstan प्यास जो बुझ न सकी-
श्रीकृष्ण स्वयं भी महाभारत रोक न सके। इस बात पर महामुनि उत्तंक को बड़ा क्रोध आ रहा था। दैवयोग से भगवान श्रीकृष्ण उसी दिन द्वारिका जाते हुए मुनि उत्तंक के आश्रम में आ पहुँचे।
मुनि ने उन्हें देखते ही कटु शब्द कहना प्रारंभ किया- आप इतने महाज्ञानी और सामर्थ्यवान होकर भी युद्ध नहीं रोक सके। आपको उसके लिये शाप दे दूँ तो क्या यह उचित न होगा?भगवान कृष्ण हंसे और बोले- महामुनि! किसी को ज्ञान दिया जाये, समझाया-बुझाया और रास्ता दिखाया जाये तो भी वह विपरीत आचरण करे, तो इसमें ज्ञान देने वा

प्यास जो बुझ न सकी- श्रीकृष्ण स्वयं भी महाभारत रोक न सके। इस बात पर महामुनि उत्तंक को बड़ा क्रोध आ रहा था। दैवयोग से भगवान श्रीकृष्ण उसी दिन द्वारिका जाते हुए मुनि उत्तंक के आश्रम में आ पहुँचे। मुनि ने उन्हें देखते ही कटु शब्द कहना प्रारंभ किया- आप इतने महाज्ञानी और सामर्थ्यवान होकर भी युद्ध नहीं रोक सके। आपको उसके लिये शाप दे दूँ तो क्या यह उचित न होगा?भगवान कृष्ण हंसे और बोले- महामुनि! किसी को ज्ञान दिया जाये, समझाया-बुझाया और रास्ता दिखाया जाये तो भी वह विपरीत आचरण करे, तो इसमें ज्ञान देने वा #कामुकता

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DURGESH AWASTHI OFFICIAL

💐💐जय माँ भारती 💐💐

*चलने की तीब्र गति से अधिक,* 
*चलने की सही दिशा महत्वपूर्ण है।*

  🙏💐 *सुप्रभात* 💐🙏

©Surbhi Gau Seva Sanstan #LataMangeshkar
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