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krishnakumar3938
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KRISHNA KUMAR

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KRISHNA KUMAR

इश्क की राहों में जो हुस्न का अदा दिखावोगी/दिखावोगे, 
कशिश और उल्फत में न भेद समझ पायेंगे,
लाज़मी है तेरी ओर खींचे चले जायेंगे।
पर कभी जो खुली नींद,होश ठिकाने आया,
शायद तुझ तक ना टिक पायेंगे,
तुम बेवफा-बेवफा कहती/कहते रहना,
हम फिर भी दफा हो जायेंगे।

---किशन---

©KRISHNA KUMAR #Exploration

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KRISHNA KUMAR

वो  जो दिखा गए करिश्मा अपनी,                                             सही है उन्हें भगवान बता रहे हों।                                             यदि बिन साधे खुद को पथ उनके,                                                                                            कर सीना चौड़ा,सिर्फ ले नाम मात्र उनका,                                                   अपना पहचान बता रहे हो।                                                                                         तुम खुद की अशक्ति छुपा रहे हो,                                                       साहब तुम खुद को गुमनाम बता रहे हों।                                                 --Krishna Kumar(किशन)--

©KRISHNA KUMAR
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KRISHNA KUMAR

कई दिन से रहे तोहपे नजरिया अड़ल,एक दिन यूं अंखियां लड़ल,                        दूजा दिन नयनन से कुछ बात भईल,तीजा दिन मुलाकात भईल।                                चौथा दिन मिल तु पुछत बाड़ु त कइसे हम कुछ यार बता दी,                                 सिर्फ चार दिन के मिलन के कइसे हम प्यार बता दी?                                                                         तोहार मध जस मीठ  बतिया ठीक से दिल में रखनी ना,                                                                        तोहरा क्रोध के अग्नी में कबो तपनी ना।                                                                                  ना आपन सपना तोहसे साझा कईनी, ना तोहरा ख्वाब के पंख देनी,                                                                                           ‌तोहसे बिछड़ के विरह के पीड़ा सहले बिना,कईसे हम कुछ यार बता दी,                                                                                          सिर्फ चार दिन के मिलन के कईसे हम प्यार बता दी?                                                                                तोहरा खुशी में आपन पल गुजरनी ना,                                                              तोहके तकलीफ मे कबो सवरनी ना,                                                                                                ना बदलत तोहार तेवर देखनी,ना तोहार हकीकत से रूबरू भईनी।       तोहार एहसास के दिल में उतरले बिना कईसे हम कुछ यार बता दी,                                                                    सिर्फ चार दिन के मिलन के कईसे हम प्यार बता दी?                                               कुछ दिन सब्र करऽ तु खुद ही जान जईबू हो,                                                                                              हमार शब्द से ज्यादा एहसास के पढ़ पईबू हो ।                                                                                                 अगर ज़िद करबु त अभी उ बात हम अभी सुना देब ,                                                     तोहार रूप के आकर्षण के ही प्यार बता देब।                                                                                                पर ई कर के हम कब तक खुश रह पाईब हो,                                           अगर रास ना आई तोहर हकीकत त सायद तोहसे दूर हो जाईब हो।                                                                                                    त का हम बेवफा हो जाईब हो?                                                        --------krishna kumar(किशन)--------

©KRISHNA KUMAR #AWritersStory
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KRISHNA KUMAR

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KRISHNA KUMAR

अभी तो चलना सिख रहा था, राहे भी उंहि है पड़ी।              थोड़ा दूर चला और चलते ही थक गिर गया,मैं साथी रे।                                                                           अब तु ही सहारा है मेरा,ले चल जहां ले जायेगा।                                       पर इतना बता दें मुझे तु छोड़ लौट कहां से आयेगा?                                                                 अब होड़ कैसी,है जाना कहां?                                                            इसका तो न ज्ञान है।                                                                          कुछ जान न पाया अभी तक मैं नदान रहा।                                                                 ठहरना जो चाहु अपने घर, तु खिंच बाहर ले जायेगा।                                       पर इतना बता दें मुझे तु छोड़ लौट कहां से आयेगा?                                                              बनाऊ कहा मैं महल अपना,दो पल सुकुन जहां पा सकु।                    लगता है भुखे ही रहना होगा न ज्ञात मुझे आहार मेरा।                                              कर विश्लेषण विज्ञान का कास ये भी मुझे बता देते।                                    अब जो पुछना चाहु तो तु सुन मुझे ही डर जायेगा।                                                          पर इतना ही बता दें मुझे तु छोड़ लौट कहां से आयेगा?                                                             अद्भुत रहा ये सफर हमारा रे,                                                                        क्रोध किये कभी मुझपे तो कभी बन गए सहारा रे।                                     बरस रहे हैं मेरे भी नयना यह अंतिम मिलन होगा हमारा रे।                                   चल खा कसम एक आज भी कही तु भुल तो न जायेगा।                                                 इतना बता दें मुझे तु छोड़ लौट कहां से आयेगा?                     ---------krishna kumar(किशन)---------

©KRISHNA KUMAR #meltingdown
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KRISHNA KUMAR

राही बन गया हूं पर मंजिल अभी अंजान है,                                           आया किस शहर से मैं इसका भी न ज्ञान है।                                                                      बड़े प्यार में पलता रहा,गिर कर फिर संभलता रहा,           बनी पड़ी जो रीत यहां सिर्फ उसी में ढलता रहा।                                  ढलते-ढलते न जाने कहां खो गया,                                         खुद से ही जुदा हो गया।                                                                         आंखें खुली तो देखा मैंने,ये कैसा मिला मुझे पहचान है?                       राही बन गया हूं पर मंजिल अभी अंजान है।                                                                                किसी ने खुद को श्रेष्ठ बताया, दूजा पर द्वेष का बाण चलाया।                                                                   बाणे यूं हि चलता रहा,                                                   न जाने कितने हस्तियां जलता रहा।                                                               लगी होड़ में शामिल हो मैं भी दौड़ा आ रहा।            दुनिया को समझने चला पर खुद का न ज्ञान है।                                         राही बन गया हूं पर मंजिल अभी अंजान हैं।                                     आया किस शहर से मैं इसका भी न ज्ञान है।                    ----krishna kumar(किशन)----

©KRISHNA KUMAR #walkingalone
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KRISHNA KUMAR

मोह माया के बंधन तोड़ो,   प्रेम से तुम नाता जोड़ो।          -----किशन------

©KRISHNA KUMAR #Janamashtmi2020
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KRISHNA KUMAR

यूंही नहीं कोई बेटी ससुराल में प्रताड़ित की जाती है।                                                                                       दर्द छुपाकर सिने में जीता है एक बेटा,                                                           ना वो अपनो का विरोध कर पाता है।                                                                                     बन सूरणपंखा एक भाई की बहन उसका विनाश कराती है।                                                                 दुशासन बन भाई का भाई अपना रौब दिखाता है,                                                   चुपचाप देखता है एक पिता अपना धर्म भूल जाता है।                                                              फटती है कलेजा देख यह, एक माता जब कुमाता का रोल निभाती हैं।                                                                                    यूंही नहीं कोई बेटी ससुराल में प्रताड़ित की जाती है।            ----किशन-----

©KRISHNA KUMAR #standAlone
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KRISHNA KUMAR

ले नया सृजन फिर आया मैं, मेरा स्वाभिमान ना छिनो।      रुको,ना लाओ बेड़ियां मुझ तक अपने जाति-धर्म की,     ऐसा जोर ना मैं सह पाऊंगा,अगर हो पसंद तो मैं खुद अपनाऊंगा।अपना सारा बोझ ना तुम मुझ तक खेदो‌‌।             मुझे मेरे हक का जमीन और आसमान दे दो।                     यूं बाट कर तुम हर कण को कैसा जगत बनाओगे,                                                                  हो मुसाफिर तुम भी, ठहरोगे कुछ पल यहां,                                                                  फिर लौट वहीं पे जाओगे।                                                         पाओगे नया सृजन कहां तुम इसका भी तो ज्ञान भेदो,                                       मुझे मेरे हक का जमीन और आसमान दे दो।                   बटे पड़े इस जग में खुद को तुम कहां पाओगे,                कहीं जाति-धर्म तो कहीं भूखण्ड से नाम से जाने जाओगे।          अपने दीप से जग को कितना रौशन कर पाओगे?            आखिर फिर ले दीप अपना अनल में मिल जाओगे।                                                                ना है स्वीकार मुझे ये,रखो तुम अपनी जागीर बस मेरा शान दे दो।                                                                              मुझे मेरे हक का जमीन और आसमान दे दो‌।                    ------krishna kumar(किशन)-------

©KRISHNA KUMAR #Life

11 Love

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KRISHNA KUMAR

कहीं ऐसा ना हो पड़ी म्यान में तलवार दो धारी हो जाए,              उसे निकाल बाहर पर चला जरा सम्भल कर ,                          वरना क्या पता कब ये दो पंक्ति ही तुझपे भारी हो जाए।               ------krishna Kumar (किशन)--------

©KRISHNA KUMAR #Corona_Lockdown_Rush
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