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"हँसत, खेलत, चलत, उम्र की तेरहवीं में आई री.........
कोरी कोरी सादी चूनर, बाबा से मंगवाई री..........
पंख बनाकर वो चूनर,
मां की लाडो लहराई री...........
स्वप्नलोक कोई कहीं,
सुदूर तक आकाश सजाई री.............
हाय री विघ्ना......
बस धरा से कुछ ऊपर तक की,उड़ान भर पाई री,
चुभ गई कुछ नज़र, फब्तियां,
सीने को ढांक सकुचाई री.............
मंशा कोऊ चूनर छूने की,
कोऊ तार तार को आई री...........
धम्म पड़ौ फिर कहीं मनोबल,
जोडूं, जोड़ न पाई री..........
आंगन, चौखट, घर की देहरी,
लांघू, ये सोंच घबराई री,
फिर सेहरा, डोली द्वार पर,पिय नाम चूनर रंगवाई री...........
और लाल रंग को भाल सजा,
पिया तोरी होकर आई री............
पिय प्रेम तो ढांका ढ़ाका हैं,पिय भेद करौ पराई री,
जा तन तोरा मन राखा,
सो तन घाव लगाई री...........
मैला धोया, चौका लिपा, चुल्हा ही सुलगाई री,
निज उदर क्षुब्धा जला, अपनो को कोर खिलाई री............
पक्की ये दुनिया हिसाब में, पक्का हिसाब कर जाई री,
जाहिल की जाहिल मैं रही, रोटियां गिन नही पाई री..............
मैं भी वही, मेरी चूनर भी,
बस तेरहवीं से तिरपनवी,
झुर्रियां, चमड़ी झूली,
दर्पण देख लजाई री,
आज भी मोरी चूनर मोसे लिपटी देत दुहाई री,
हे विघ्ना, फिर चूनर की, यो गति न कबहूं दोहराई री..........
@पुष्पवृतियां
©thak gaya aur chalne ki kwahish nahi"