ज़रूरी नहीं सिर्फ साहित्यिक संस्कृति के अनुरूप ही लिखूं...आँचलिक, देसी और चीप शायरी का भी अपना अलग रसास्वादन होता है...कहीं न कहीं ये समाज के संयुगमितस्वप्नों की अभिव्यक्ति है...सब का अपना अपना टेस्ट होता है...पसंद और समझ आये तो पढ़ो...वर्ना आगे बढ़ो...ज़रूरी नहीं मेरी हर बात आपको अच्छी ही लगे... #Poetry