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Prabhakar Prajapati

Name: Prabhakar Prajapati Date Of Birth: 26 May 1999 Father's Name: Mr. Kuldeep Prajapati Mother's Name: Mrs. Saroj Prajapati Home Town: Kaptanganj Azamgarh District : Azamgarh Pin code : 276141 State : Utter Pradesh

https://www.youtube.com/channel/UCk1JW6kzjmSPKEBAf3Z3V1Q

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Prabhakar Prajapati

लेखक: प्रभाकर प्रजापति 

वो MSc की आस थी, बगल की कलास थी,
नम्बर था छः  जिसका, जो सीढ़ी के पास थी!!

कॉलेज में आते ही जिसे मैं याद करता था
इधर से जाऊँ की उधर से जाऊँ...
मैं ये बात करता था!!!
कुछ तो था...जो येबात इतनी ख़ास थी..
कोई और वजह नही थी...बस! ये आप लोगों की क्लास थी।

(क्लास में आने के बाद)

(1) #आकाश भाई को देख ख़ुशी, मेरे होठों से जो छलक जाती,
दिल की, दरिया की, गहराई में...वो तो दूर तलक जाती..!!!
जैसे-जैसे वक्त मुझे इन सबसे दूर ले जायेगा..
सच कहता हूँ यारों मुझको...वो दिन बड़ा सताएगा।

(2) वो हार-जीत की हालातों में, ढ़लना याद आएगा,
तान के सीना #नेता जी का, चलना याद आएगा।
याद आएंगे वो लम्हें, जो लम्हे संग गुजारे हैं..
जो #शुभम_अमित_आशीष_DVD_आवेस जैसे प्यारे हैं...
वो नमकीन मिलाकर लायी में, संग खाना याद आएगा...
#अखिलेश भाई के रूम पे आना...जाना याद आएगा..!!!

(3) अजनबी से थे जो कभी....आज मेरे नबी बन गए,
पहले बने दोस्त...अब ज़िन्दगी बन गए!!!
वज़ूद इनका जब-जब मेरे एहसासों को जगायेगा...
सच्ची कह रहा हूँ....ये लम्हा बहुत याद आएगा..!!

(4) दोसती का ऐसा तराना याद आएगा...
#पूजा_नित्या और #करिश्मा का दोसताना याद आएगा।
याद आएगा #सोनम का हर पल गम्भीर ही रहना,
और innocent सी #ज़ेहरा का मुस्कुराना याद आएगा।

(5) क्लासरूम में जिनके रहने से ही रौनक आई है...
#हमज़ा के संग में #ज़िसान और... अपने #अकरम भाई हैं।।।
जो आप सभी लोगों में से, कोई अपना दूर जायेगा...
सच कहता हूँ यारों मुझको...वो दिन बड़ा सताएगा!!!

(आखिरी चार लाईन)

"आज मैं हूँ...कल चला जाऊँगा...
आप जैसे दोस्तों को मैं कहाँ पाऊँगा?
यूँ ही अपने दिल में ज़िंदा मेरा ऐहसास रखना...
चाहे सबको भूल जाना....
पर मुझे याद रखना!!

-आपका #प्रभाकर_प्रजापति [Msc. finale year Maths

©Prabhakar Prajapati वो MSc की आस थी, बगल की कलास थी,
नम्बर था छः  जिसका, जो सीढ़ी के पास थी!!

कॉलेज में आते ही जिसे मैं याद करता था
इधर से जाऊँ की उधर से जाऊँ...
मैं ये बात करता था!!!
कुछ तो था...जो येबात इतनी ख़ास थी..
कोई और वजह नही थी...बस! ये आप लोगों की क्लास थी।

वो MSc की आस थी, बगल की कलास थी, नम्बर था छः जिसका, जो सीढ़ी के पास थी!! कॉलेज में आते ही जिसे मैं याद करता था इधर से जाऊँ की उधर से जाऊँ... मैं ये बात करता था!!! कुछ तो था...जो येबात इतनी ख़ास थी.. कोई और वजह नही थी...बस! ये आप लोगों की क्लास थी। #कविता #नेता #आकाश #करिश्मा #हमज़ा #अखिलेश #अकरम #सोनम #शुभम_अमित_आशीष_DVD_आवेस #पूजा_नित्या #ज़ेहरा #ज़िसान #प्रभाकर_प्रजापति

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Prabhakar Prajapati

Sad quotes in hindi प्यार वो पौधा है...
जिसे "कद्र" की खाद और  "समय"
के पानी से सींचना पड़ता है..!!!
दोनों में से कोई भी कम हुआ...
तो पौधा "मुरझा" जाएगा..!

©Prabhakar Prajapati prabhakar Prajapati ARVIND YADAV Jyoti Ruma Gupta Aprajita Prajapati Anshu writer   Tarun Singh

prabhakar Prajapati ARVIND YADAV Jyoti Ruma Gupta Aprajita Prajapati Anshu writer Tarun Singh #विचार

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Prabhakar Prajapati

umra bhar is ghadi ki hifazat kru

umra bhar is ghadi ki hifazat kru #शायरी

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Prabhakar Prajapati

dosti ke liye

dosti ke liye #शायरी

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Prabhakar Prajapati

jal ke dekha hai Maine to chat me bhi

jal ke dekha hai Maine to chat me bhi #Shayari

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Prabhakar Prajapati

छला नहीं
Prabhakar Prajapati poem
शीर्षक: छला नहीं
         लेखक: प्रभाकर प्रजापति

मैं सींच रहा बरसों से जिसको, वृक्ष अभी तक फला नहीं...
मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!!

छला नहीं Prabhakar Prajapati poem शीर्षक: छला नहीं लेखक: प्रभाकर प्रजापति मैं सींच रहा बरसों से जिसको, वृक्ष अभी तक फला नहीं... मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!! #Shayari

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Prabhakar Prajapati

शीर्षक: छला नहीं
         लेखक: प्रभाकर प्रजापति

मैं सींच रहा बरसों से जिसको, वृक्ष अभी तक फला नहीं...
मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!!

1) फूलों की चाहत में मैंने, कांटो को दामन बना लिया,
उम्मीदों की बौछारों से, पतझड़ को सावन बना दिया l
 पल-पल मरता चला गया...विश्वास कभी जो पला यहीं...
मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!!

2) ख्वाबों को मान हक़ीक़त मैं तो...अपनी आँखे मींज रहा था,
थी डाली सूखी जिसकी...मैं उस पौधे को सींच रहा था..!!!

लगा रहा था आग जो दिल में... वो सूरज तो ढला नहीं...
मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!!
            -प्रभाकर प्रजापति

©Prabhakar Prajapati शीर्षक: छला नहीं
         लेखक: प्रभाकर प्रजापति

मैं सींच रहा बरसों से जिसको, वृक्ष अभी तक फला नहीं...
मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!!

1) फूलों की चाहत में मैंने, कांटो को दामन बना लिया,
उम्मीदों की बौछारों से, पतझड़ को सावन बना दिया l

शीर्षक: छला नहीं लेखक: प्रभाकर प्रजापति मैं सींच रहा बरसों से जिसको, वृक्ष अभी तक फला नहीं... मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!! 1) फूलों की चाहत में मैंने, कांटो को दामन बना लिया, उम्मीदों की बौछारों से, पतझड़ को सावन बना दिया l #Prabhakar_Prajapati

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Prabhakar Prajapati

#IndiaFightsCorona शीर्षक:  [आज अगर मैं धरती होता]
                

लाखों जीवन देकर भी मैं, जीता जाता अर्थी होता
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता

1) जब नदियां, झील समंदर के...कल-कल में कलरव भर देता,
बाग बगीचे उपवन सारे...हर रंगों से रंग देता!!!
जब डाल-डाल को चिड़ियों के, चीं-चीं से मैं चहका देता
और रंगबिरंगे फूलों को मैं भर खुशबू महका देता..!!
तब

आशाओं की ज्योति भर, इन आंखों में आवर्ती होता.
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता।


2) ना समझी में इक दिन मैं भी, जीवों में इंसान बनाता...
खुद के ही टुकड़े करने को, खुद से ही औजार बनाता!
दिल में सोच ये रखता मानव, जीवों पर उपकार करेगा...
पर पता न होता जीवों पर..ये जीव ही अत्याचार करेगा!!!

इंसानों की नजरों में, मैं भी पल पल अनुवर्ती होता..
बे परवाज तड़फता रहता... आज अगर मैं धरती होता..!!

3) किसको पता चला था आगे, ऐसा भी दिन आएगा
स्वार्थ में आकर के ये मानव, भी दानव बन जायेगा..
बुद्धिमान था जीव ये अपना...बुद्धि मानि भी दिखा रहा...
जिस डाल पे बैठा हुआ है आकर, उसी डाल को काट रहा..!!!

देख दशा ऐसी, क्षण भर में, मेरा दिल भी, गर्ती होता..
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता।
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता!!
                                  (-प्रभाकर प्रजापति)

©Prabhakar Prajapati शीर्षक:  [आज अगर मैं धरती होता]
                लेखक: प्रभाकर प्रजापति

लाखों जीवन देकर भी मैं, जीता जाता अर्थी होता
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता

1) जब नदियां, झील समंदर के...कल-कल में कलरव भर देता,
बाग बगीचे उपवन सारे...हर रंगों से रंग देता!!!

शीर्षक: [आज अगर मैं धरती होता] लेखक: प्रभाकर प्रजापति लाखों जीवन देकर भी मैं, जीता जाता अर्थी होता बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता 1) जब नदियां, झील समंदर के...कल-कल में कलरव भर देता, बाग बगीचे उपवन सारे...हर रंगों से रंग देता!!! #IndiaFightsCorona

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Prabhakar Prajapati

शीर्षक: छला नहीं
         लेखक: प्रभाकर प्रजापति

मैं सींच रहा बरसों से जिसको, वृक्ष अभी तक फला नहीं...
मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!!

1) फूलों की चाहत में मैंने, कांटो को दामन बना लिया,
उम्मीदों की बौछारों से, पतझड़ को सावन बना दिया l
 पल-पल मरता चला गया...विश्वास कभी जो पला यहीं...
मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!!

2) ख्वाबों को मान हक़ीक़त मैं तो...अपनी आँखे मींज रहा था,
थी डाली सूखी जिसकी...मैं उस पौधे को सींच रहा था..!!!

लगा रहा था आग जो दिल में... वो सूरज तो ढला नहीं...
मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!!
            -प्रभाकर प्रजापति

©Prabhakar Prajapati शीर्षक: छला नहीं
         लेखक: प्रभाकर प्रजापति

मैं सींच रहा बरसों से जिसको, वृक्ष अभी तक फला नहीं...
मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!!

1) फूलों की चाहत में मैंने, कांटो को दामन बना लिया,
उम्मीदों की बौछारों से, पतझड़ को सावन बना दिया l

शीर्षक: छला नहीं लेखक: प्रभाकर प्रजापति मैं सींच रहा बरसों से जिसको, वृक्ष अभी तक फला नहीं... मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!! 1) फूलों की चाहत में मैंने, कांटो को दामन बना लिया, उम्मीदों की बौछारों से, पतझड़ को सावन बना दिया l #Shayari #Prabhakar_Prajapati

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Prabhakar Prajapati

शीर्षक:  [आज अगर मैं धरती होता]
 लेखक: प्रभाकर प्रजापति

लाखों जीवन देकर भी मैं, जीता जाता अर्थी होता
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता

1) जब नदियां, झील समंदर के...कल-कल में कलरव भर देता,
बाग बगीचे उपवन सारे...हर रंगों से रंग देता!!!
जब डाल-डाल को चिड़ियों के, चीं-चीं से मैं चहका देता
और रंगबिरंगे फूलों को मैं भर खुशबू महका देता..!!
तब

आशाओं की ज्योति भर, इन आंखों में आवर्ती होता.
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता।


2) ना समझी में इक दिन मैं भी, जीवों में इंसान बनाता...
खुद के ही टुकड़े करने को, खुद से ही औजार बनाता!
दिल में सोच ये रखता मानव, जीवों पर उपकार करेगा...
पर पता न होता जीवों पर..ये जीव ही अत्याचार करेगा!!!

इंसानों की नजरों में, मैं भी पल पल अनुवर्ती होता..
बे परवाज तड़फता रहता... आज अगर मैं धरती होता..!!

3) किसको पता चला था आगे, ऐसा भी दिन आएगा
स्वार्थ में आकर के ये मानव, भी दानव बन जायेगा..
बुद्धिमान था जीव ये अपना...बुद्धि मानि भी दिखा रहा...
जिस डाल पे बैठा हुआ है आकर, उसी डाल को काट रहा..!!!

देख दशा ऐसी, क्षण भर में, मेरा दिल भी, गर्ती होता..
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता।
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता!!
                                  (-प्रभाकर प्रजापति)

©प्रभाकर प्रजापति Aaj Agar Mai dharti hota Prabhakar Prajapati poem
शीर्षक:  [आज अगर मैं धरती होता]
                लेखक: प्रभाकर प्रजापति

लाखों जीवन देकर भी मैं, जीता जाता अर्थी होता
बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता

1) जब नदियां, झील समंदर के...कल-कल में कलरव भर देता,

Aaj Agar Mai dharti hota Prabhakar Prajapati poem शीर्षक: [आज अगर मैं धरती होता] लेखक: प्रभाकर प्रजापति लाखों जीवन देकर भी मैं, जीता जाता अर्थी होता बे परवाज तड़फता रहता...आज अगर मैं धरती होता 1) जब नदियां, झील समंदर के...कल-कल में कलरव भर देता, #Shayari #Drops

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