एक तेरा भी दौर क्या ख़ूब था ग़ालिब न लिखने न बोलने पे किसी का ज़ोर था ग़ालिब, एक यह दौर भी अब देख तू ग़ालिब आवाज़-ए-कलम भी अब गुलाम है ग़ालिब। क्रांति हक़ से लिखता हूं, इश्क़ तजुर्बे से लिखता हूं, गम और शराब जाते-जाते तोफे में दिया था किसी ने Pen-name:- अवि (Avi) ये तो सही बात है 2020 चल रहा है लेकिन मै 2014 से आगे नहीं बढ़ पाया। पिछली बार मोबाईल ने दगा दिया और बहुत कुछ खो दिया अब दोस्त के सलाह पे इस आपलिकेशन को इस्तेमाल कर रहा हूं। ज्यादा कुछ होता नहीं लिखने को गम, शराब और क्रांति के सिवा, काम के बोझ से जब भी फुर्सत मिलता है थोड़ा बहुत लिख लेता हूं।
Avinash Kr. Jha (अवि)
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