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Jayant Mehra

Assistant Manager, DBAI Airport Nagpur "कतरा कतरा स्याही गिराए चलो रास्तों पर चित्रकारी बनाए चलो पढ़े हुए उन हिस्सों को जुटाए चलो इन बेईमानों का अब यह रोज का धंधा है और सिर्फ कलम की स्याही से तू ज़िंदा है इसे सच लिखने की बीमारी है "मेरी कलम थोड़ी सी भारी है"

fb.me/jayant.co

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Jayant Mehra

#5LinePoetry मेरे गाँव के ओटले पर जमती क़िस्सों कि महफ़िल   
गरम चाय सुलगतीं बिड़ी से भरी क़िस्सों कि महफ़िल
कुछ क़िस्से सुबह से जाकर वहाँ बेठ जाते
और कुछ,गहरी छाव देखकर बस लेट जाते
फिर अपनी-अपनी कहानियों कि गठरी खोलते
अपनी कहानियां उची-नीचीं बढ़ा-चढ़ा कर बोलतें
बस उन्हीं में से एक ये भी है !!

उसको काली साइकिल पर ,सवार देखा है
पापा के पीछे बैठा ,मेरा यार देखा है
पहली नज़र वाला प्यार देखा है
देखनें उसे हम स्कूल भी गए 
देख कर उसे सब ,हम भूल भी गए
हिंदी कि क़िताब से उस पार देखा है
उसको काली साइकिल पर ,सवार देखा है

मैंने लिख कर दिया था ,काग़ज़ पर अपना नाम
रात भर में जागा ,न एक पल आराम
उस ओटले पर मैंने इंतज़ार देखा है
टूटते इस दिल को तार - तार देखा है
हिंदी कि क़िताब से उस पार देखा है
उसको काली साइकिल पर ,सवार देखा है

स्कूल जब छूटा तों ,मेरे पास आयी वो
हाथ में काग़ज़ था ,कुछ ख़ास लायी वो
न नाम बताया ,न देख कर हसी
फिर भी दिल के हर कोने में एक हि बसी
स्कूल में पानी का जहां मटका रहता था
मेरा दिल उसकीं चोटी में अटका रहता था
कुछ दिन तक दिल को मेरे ,बिमार देखा है
सौ डिग्री के ऊपर वाला ,बुख़ार देखा है !!
हिंदी कि क़िताब से उस पार देखा है
उसको काली साइकिल पर ,सवार देखा है

आख़िर वो दिन आया , जब उसने मुझे बुलाया
थोड़ा वो मुस्काई, नाम भी बताया
चाँद कों ज़मी पर उतार देखा है
उसकी आँखों के अंदर मैंने प्यार देखा है
इस ओटले पर मैंने संसार देखा है
ख़्वाब को मैंने मेरे साकार देखा है
हिंदी कि क़िताब से उस पार देखा है
उसको काली साइकिल पर ,सवार देखा है

©Jayant Mehra #5LinePoetry

17 Love

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Jayant Mehra

मन के बाहर मन के भीतर हर क्षण चल रहा है
मेरी संसों का तेरी धंडकन से हर रोज़ ,अब रण चल रहा हे 
स्वप्न गान मेरे अंदर से , तेरा नाम पुकारा हे
देह यहीं हे श्वास नही हे ,मरण चल रहा हे
एक रोज़ बस यू होगा ,जब तू होगा तों सुकूं होगा
इंतज़ार में बैठा हू संसों कों भी लूटा दिया
तेरे प्रेम का मेरे प्रेम पर ग्रहण चल रहा हे
रूप स्वप्न नादियों सा चंचल ,मेरे भीतर मन में हे
राधा तेरी मधुर धुन पर ,कृष्ण चल रहा हे
नयन मेरे तुझ कों ढूंढ़े ,पायल कि झंकार तों कर
जिधर में हूँ ,तू नहीं मिलता बस भ्रमण चल रहा हे

©Jayant Mehra #kitaabein
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Jayant Mehra

जब चेहरे पर थकान हो जाती 
मंज़िले ,मुझसे बेईमान हो जाती
उनकी एक मुस्कुराहट से बस
मेरी हर मुश्क़िल आसान हो जाती 
हमारी ख़ुशियों कि बरसात् है
मेरे दो नहीं, चार हाथ है
अक़ेला नहीं हूँ में, मेरे पिता साथ है

ख़्वाबो पर छपीं, तस्वीर बदल दि
मेरी उंगली थामी , तक़दीर बदल दि
हवाओं का रुख़ मोड़ना सिखाया है
मुझे पिता ने चलना नहीं ,दोड़ना सिखाया है
बस इतनीं छोटी सी बात है
मेरे दो नहीं, चार हाथ है
अक़ेला नहीं हूँ में , मेरे पिता साथ है

घर माँ का आँचल लगें 
रात माँ का क़ज़ल लगें
मेरे सपनों कि मिट्टी पर
मेरे पिता के बादल लगें
हमारे ख़्वाबों कि बारात है
मेरे दो नहीं, चार हाथ है
अक़ेला नहीं हूँ में , मेरे पिता साथ है

©Jayant Mehra #LoveYouDad
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Jayant Mehra

प्रेम सें लिखी कहानियां बहुत
प्रेम पर टिकी कहानियां बहुत
प्रेम कि कहानी आज़
हम फिर यहीं दोहराएँगे
युग कृष्ण हों , युग राम हों
हर युग में हम मिल जाएँगे 
द्वापर लिखुं ,त्रेता लिखुं
यें सारे साधें नाम हे
यें दिल तेरा ,सब कुछ तेरा
इस दिल पर ‘राधें’ नाम हे

युग प्रेम हों तो ’श्याम’ सा
राधा लिखुं तेरे नाम सा
युग त्याग हों सिता लिखुं
जब सत्य हों‘ सिया राम’ सा
तुम पास हों , तुम दूर हों
मन के यें बांधे काम हे
यें दिल तेरा ,सब कुछ तेरा
इस दिल पर ‘राधें’ नाम हे

वन में तुम , ग़ोकुल में तुम
त्रेता कें हर एक कण में तुम
प्रेम-धुन तेरे नाम कि 
इस युग का यें पैग़ाम है
राधा भीं तुम सीता भीं तुम
हर युग में ‘सिता राम’ हे
मिलना हमे हर युग में हे
बिन तेरे आधे काम हे
यें दिल तेरा ,सब कुछ तेरा
इस दिल पर ‘राधें’ नाम हे

©Jayant Mehra #Hum
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Jayant Mehra

अकेले हम, अकेले तुम
अकेले बैठेंगे चलों ,जहाँ से गुम
किस तरफ़ चलें तू बता मुझें
कह दें इन रस्तों सें गुदगुदा मुझें
रात का सफ़र , बस आज का सफ़र
आख़ तो तू खोल ज़रा ,देखलें इधर
मुझसे थीं जब मिलीं ,एक रोज़ वो कली
ख़ुशबूओं कि एक हवा ,फिर रात भर चली
अकेले हम, अकेले तुम
अकेले बैठेंगे चलों ,जहाँ से गुम

याद आती हे ,क्यों दूर जाती है
रोज़ मेरे ख़्वाब में वो मुस्कुरातीं है
मिलतीं हे वहीं ,याद में कहीं
फूलों कि कली वों गीत गुनगुनातीं है
कह दु ये उसे ,बस बता मुझें
रोएगीं हँसेगी देगीं एक दवा मुझें
काली आखें वों ,रंगीन सी लगीं
खट्टी मीठी मख़मली नमकीन सी लगीं
अकेले हम, अकेले तुम
अकेले बैठेंगे चलों ,जहाँ से गुम

©Jayant Mehra #BookLife
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Jayant Mehra

देव, क़ाल, यम से मेरा परिचय नहीं लिया तुने 
इंद्र , कीच और भय से मेरा परिचय नहीं लिया तुने
जिस ज्ञानीं के ज्ञान पर ,झुकता यें संसार हे
त्रिभुवन सकल समक्ष मेरे ,करते सोच विचार है
मेरी इच्छा के बिन वानर ,तिनका हिले न लंका में
आज़ तुझें में क्षमा करूँगा ,मत रहना इस शंका में

क्षमा, प्रार्थना विनय निवेदन ,मुझसें ना-उम्मीद करे
तनय भेंट में कर आया हूँ ,बाक़ी भी भयभीत खड़े
उस ज्ञानीं का ज्ञान व्यर्थ ,जो श्रीधर कों न जान सका
शिव भक्त ख़ुद को कहता है ,शिव को न पहचान सका
राम नाम के सत्य कों में ,दोहराने आया हूँ
प्रभुं राम कि आज्ञा पर तुझकों ,सिर्फ़ समझानें आया हूँ 
भूख कम थीं आज में वरना , कुछ और फल में चख लेता
वचन न होता श्रीं राम का तों, लंका चरणों में रख देता
राम नाम से में हूँ , मुझें राम नाम ही भाता
राम नाम के अक्षर से में रामदूत कहलाता
माता कि चिंता थीं तो सिर्फ़ दर्शन करने आया हूँ
वरना माता तो क्या दशानन ,में तुझे साथ ले जाता

©Jayant Mehra #Hanuman
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Jayant Mehra

देव, क़ाल, यम से मेरा परिचय नहीं लिया तुने 
इंद्र , कीच और भय से मेरा परिचय नहीं लिया तुने
जिस ज्ञानीं के ज्ञान पर ,झुकता यें संसार हे
त्रिभुवन सकल समक्ष मेरे ,करते सोच विचार है
मेरी इच्छा के बिन वानर ,तिनका हिले न लंका में
आज़ तुझें में क्षमा करूँगा ,मत रहना इस शंका में

क्षमा, प्रार्थना विनय निवेदन ,मुझसें ना-उम्मीद करे
तनय भेंट में कर आया हूँ ,बाक़ी भी भयभीत खड़े
उस ज्ञानीं का ज्ञान व्यर्थ ,जो श्रीधर कों न जान सका
शिव भक्त ख़ुद को कहता है ,शिव को न पहचान सका
राम नाम के सत्य कों में ,दोहराने आया हूँ
प्रभुं राम कि आज्ञा पर तुझकों ,सिर्फ़ समझानें आया हूँ 
भूख कम थीं आज में वरना , कुछ और फल में चख लेता
वचन न होता श्रीं राम का तों, लंका चरणों में रख देता
राम नाम से में हूँ , मुझें राम नाम ही भाता
राम नाम के अक्षर से में रामदूत कहलाता
माता कि चिंता थीं तो सिर्फ़ दर्शन करने आया हूँ
वरना माता तो क्या दशानन ,में तुझे साथ ले जाता

©Jayant Mehra
  #Hanuman

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Jayant Mehra

"radhey - राधेय"

'शल्य' मेरे सामने खड़ी ये 'शून्य' सेना है
प्रतिशोध ख़ून से , मेरी मित्रता का लेना है 
मुझसा न वीर दूजा , इस युद्ध के मैदान में
अर्जुन का काल हूं , सूर्य के समान में 
वीर है गर 'पार्थ' माधव , ये युद्ध मुझसे छीन लें
अचल - अटल ये कर्ण खड़ा , चाहें खीच तु ज़मीन लें 
युद्ध भूमी में छल करोगे , जीत जो तुमको पानी है
छल माधव ये धर्म अगर है, ये धर्मयुद्व कहानी है !
गंगा कि गोद मे खेला में, परशुराम का चेला में 
मुझसी मित्रता सिख नहीं सकते !
हों तीनों लोकों के स्वामी पर , तुम मुझसे जीत नहीं सकते !
मगर जानता हूं श्याम में , नियति लिखीं तेरे सामने 
तो ले , 'श्राप ,वचन बिन कवच' के माधव राधेय खड़ा तेरे सामने
इस समय के अंत तक जब बात धर्म कि होगी
हे वचन राधेय मेरा , बात कर्ण कि होगी !!

©Jayant Mehra #guru

20 Love

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Jayant Mehra

मुस्कुराता ख़्वाब टूटा मिला 
जागा तो सब कुछ झूठा मिला 
कुछ धुंधला अधूरा सा याद है 
पूरा नहीं, तभी तो वो ख्वाब है 
ख़्वाब शुरु से तो शुरु , कभी हुआ नहीं
तो उस दिन हम मिले उस जगह
करीब शाम का वक्त था
यू तो वो उसके आराम का वक्त था 
वो आई कुछ परेशान थी , ये तूफ़ान का वक्त था 
क्या हुआ परेशान लग रहीं हों, क्या बात है। 
मुझे क्या पता था, मेरे नुक़सान का वक्त था 
बोलीं .. हम जा रहे है, एक नए शहर 
आज रात ट्रेन है, हम फिर मिलेंगे 
क्यों ,कहा़ कब और कैसे मिलेंगे 
ये कुछ ठीक नहीं है 
वो शहर मेरे नज़दीक नहीं है 
रात ने मेरी शाम को घेर लिया 
मेरे चांद ने उस और मुंह फेर लिया 
लेकिन ये तो बस एक ख़्वाब था 
ख़्वाब अपने रंग हर पल बदलता रहा 
में भी रात भर उस ख़्वाब में चलता रहा
कुछ धुंधला अधूरा सा याद है 
पूरा नहीं, तभी तो वो ख्वाब है 
मुस्कुराता ख़्वाब टूटा मिला 
जागा तो सब कुछ झूठा मिला

©Jayant Mehra #wait

13 Love

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Jayant Mehra

तू चांद पर सोजा , में तेरे हाथ पर सो जाऊं
तू रात चादर ओढ़ ले , में रात भर सो जाऊं 
तेरे घर कि चांदनी बस मेरे घर तक आ सके
हों उजाला जो अगर , हम पेट भर कर खा सकें 
भूख कि उम्मीद आखें जागती सोती रहीं 
भूख मेरी रात भर , गोद में रोती रहीं
चांद सी एक गोल रोटी मेरे घर तू भेज दे
दो निवाले मां खिलादे गोद पर सो जाऊं 
तू चांद पर सोजा , में तेरे हाथ पर सो जाऊं

©Jayant Mehra

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