ठोकर खाता गया,लड़खड़ाता गया,कभी रोया तो कभी बहोत रोया,तुम्हे खोया, मानो -सब कुछ खोया, दूरियां बढ़ी - दिल की तड़प भी बढ़ी, कुछ झेल पाया कुछ ने मुझे ओर तड़पाया... मगर मैं खुश हूं- तुम गयी तो लेकिन मुझे बहोत दे गई, तुम मुझे मेरा वक़्त दे गई , जो वक़्त मैं अपनी माँ को नहीं देता था, अपने डायरी को नहीं देता था, स्टडी को नहीं देता था, खुद को नहीं देता था... आज मेरा है
Dinesh bhardwaj
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