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Vikash Mehra KD

मेरी डायरी मेरा बचपन #कहानी

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बचपन और बारिश बारिश का आना ,हमारा काम था नहाना,
सिर्फ पहन के कच्छा, बूंदों को सहलाना ।
पानी में कूद कूद के ऊंची छलांग लगाना,
कच्ची भीगी मिट्टी में जान भूझकर फिसलजाना ,
भैंसों के साथ जोहड़ में नंगे नहाना
सच में कुछ ऐसा था हमारा,
 बचपन और बारिश का याराना ।। मेरी डायरी मेरा बचपन

Vikash Mehra KD

मेरी डायरी मेरा बचपन

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यार वो अपना हमारा बे मतलबी था याराना,
बहुत खेलें साथ साथ,
बहुत टायर चलाए।
दिन का पता ही नहीं था,
 कब गुजर गया,
मुझे लौटा दो बचपन मेरा...,
मुझे बहुत बहुत याद आए।। मेरी डायरी मेरा बचपन

Sharad Yadav

मेरी आवाज में मेरा बचपन...!!

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Sharad Yadav

मेरी आवाज में मेरा बचपन।

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Rajveer Salvi

#alone मेरी पहली कविता मेरे जीवन पर...

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Alone  दासता–ए–बेरोजगार

चार बायीं छ: फ़ीट के बन्द कमरे में, बैठ स्कूल लेक्चरार की तैयारी में,
जुटा है एक किशोर|

कुछ बनने की ख्वाहिश लेकर चन्द सालों पहले अपना घर छोड़,
कई मिलों दूर चला आया है,
एक किशोर|

बीते साल रीट में कुछ पॉइंट से रह गया था वो,
 इस अवसाद के साथ एक अनसुलझी,
 ख़ामोश ज़िन्दगी से बहुत कुछ ना कहते हुए भी,
 बहुत कुछ कह रहा है,
एक किशोर|

रोज़ इस फ़िराक से की कही पीछे ना छूट जाऊ मंझिल की राहों से,
इस कम्पा देने वाली सर्दी में भी जल्दी उठ जाता है,
एक किशोर|

रुपयों की अहमियत और मेहनत की
 कमाई से जोड़ें पैसों की क़द्र समझ,
 कई किलोमीटर दूर कोचिंग तक पैदल अपने हौसले भरे पैरों से बढ़ा जा रहा है ,
एक किशोर|

सर्दी आ रही है, मम्मी ने अपने हाथों की गर्म नरमाहट, प्यार और आशीर्वाद से भेजें स्वेटर को पहनकर,
 इस ढलती शाम में भागते वाहनों को चीरते हुए,
अपने कमरे की ओर बढ़ रहा है,
 एक किशोर|

पापा कह रहे थे, बेटा इस बार फसल अच्छी हो जाए तो,
 कुछ पैसे ज्यादा भेजूँगा,
तू एक अच्छा नया स्वेटर ले लेना और पाव भर दूध भी लाकर पी  लेना, 
बीते महीने तू आया था तो बड़ा कमज़ोर दिख रहा था,
पापा के दुलार को बढ़ाने में दिन रात जुटा हुआ है,
एक किशोर |

पर यह क्या था , इस बार तो बारिश बहुत हुई पक्क चुकी फसलें पानी से भर गई चारों ओर खेत में पानी ही पानी था ,
पापा के इस दुःख पर अपनी ज़िंदगी से कई शिकायतों के सवालों,
 के सैलाब से जूझ रहा है,
एक किशोर |

छुटकी बोल रही थी, फ़ोन पे भैया महीनों हो गये आपको देखे,
दीवाली भी  आ रही है,
आओगे ना आप  इस बार ,
ना जाने बदलतीं सरकारें और सत्ता पाकर बेसुध हुए दो-दो शहनशाहो का,
 कब परीक्षा फ़रमान जारी हो जाये इस डर से इस बार दीवाली पर जाने से कुछ नरवश सा हो गया है,
 एक किशोर |

बदलती सरकारों और बदलतें फैसलों महँगाई के चंगुल तथा शिक्षामंत्री जी की,
 चिड़िया उड़ कोवा उड़ खेल में बुरी तरह फंस चुका है, 
आज का हर एक किशोर |

इस उम्मीद से की एक दिन नई सुबह आएगी उसकी जिंदगी में यही सोच रूखी सुखी रोटी खा कर चंद बिस्तर लिपटकर सो रहा है,
एक किशोर |


            लेखक – कैलाश चंद्र सालवी #alone मेरी पहली कविता मेरे जीवन पर...

Alkesh Chouhan shayar,,🖋️

हमारा बचपन ,,,,, मेरी सायरी,,,✍️ मेरी कविता,,,✍️

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वो समय भी क्या अजीब था ,,
मानो बचपन भी एक जमाना था,,✍️

कुछ  दोस्त थे और पूरा गांव अपना जहां था,
दो तार की गाड़ी थी और हर गली में तहलका था,,✍️

कुछ खेल नियम के अपने थे,,
और चार इंटो का स्टेम था,,✍️

गिल्ली - डंडा भी क्या खेल था,,
मानो खेलना ही जीवन का आधार था,,,✍️

सच में यारो वो बचपन ही सायद स्वर्ग था,,,✍️
अलकेश चौहान,,✍️ हमारा बचपन ,,,,,
मेरी सायरी,,,✍️
मेरी कविता,,,✍️
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