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Dr.asha Singh sikarwar
बसंत ! तुम लौट जाओ अपने गाँव वहाँ खेत-खलिहान बयार-दुलार यहाँ क्या रखा शहर में टोकरी भर फूल बरौनीभर धूप विष गंध में घुटती साँसे गाँव में माँ है जिसकी आखों से तु झरता है निश-दिन और 'वो' भी जिसकी कोर से सटकर बैठा 'तु ' डॉ आशासिंह सिकरवार अहमदाबाद गुजरात 10.2.19 #NojotoQuote वसंत #वसंत वसंत #best #hindi #poetry
Ek villain
जनवरी का महीना कभी-कभी गुजरा हुआ में शीत लहर के जो रहे थे सौभाग्य से सामने वाले फ्लैट में कोई कुत्ता नहीं रहता पर दुर्भाग्य तो उसको लेट में कुत्ते से भी बड़ा एक आदमी रहता है बूढ़ा बूढ़ा गलत रहता है मैंने बालकनी से पसंद का जायजा लेना चाहता हूं उसकी बूढ़े की आवाज सुनकर मैं मन कुंठित हो उठता हूं मैं बालकनी के द्वार बंद कर घर के भीतर आ गया किचन में पत्नी बड़ा वाला है 3:00 हॉस्पिटल बसंत कब आएगी अब सारा काम पड़ा है कभी-कभी तो रुला देती है वह संत ने इस वतन के ख्यालों में खोया पूछ रहा हूं कि मुझसे कुछ कह रही हो क्या मैं अपने स्वभाव में बसते कहती है मैं अभी वसंत की छुट्टी कर ही रहूंगी देखो तो बना 11:15 बज गए लेकिन अभी तक पसंद नहीं आया थोड़ा धीरज रखो पसंद तो आ ही रहा है बसंत भी आ जाएगा मुझे प्राणों से भी पसंद की प्रतीक्षा और पत्नी को मुझसे भी पसंद की इंतजार बसंत के कारण कोई काम नहीं रुक रहा है यदि पसंद नहीं आई तो घर में झाड़ू नहीं लगेगी ना बर्तन साफ होंगे पत्नी आदेश देती है देखो बसंती देख तो नहीं रही है मैं अपनी दृष्टि का विस्तार को चारों ओर खुला छोड़ देती हूं तभी मैं क्या देखता हूं वसंत आ रही है मुझे प्रतीक्षा बसंत की है आ रही है बसंती सच्चाई है सोचिए यदि और बसंती तो मुझे घर के बर्तन साफ करने पड़ते ©Ek villain #वसंत या बसंती का आना #promiseday
Sunita Bishnolia
मंद पवन भी चल रही,ज्यों सरगम के साज। करते स्वागत सुमन है, आए हैं ऋतुराज।। ©Sunita Bishnolia #वसंत
Sunita Bishnolia
अपनी आभा से धरती को करने को गुलजार, सुमन धरा पे खिले संग ले सतरंगी संसार। पहन हरित-वसन-बसंत ने जीवन दिया धरा को, मंद-महक पवन संग उड़-उड़ भर देती घर द्वार #वसंत #
Dr. Bhagwan Sahay Meena
शीर्षक - आया वसंत विकल नव कोंपले, नव कली की चित्कार, मुरझाए फूलों का रूदन, ले वसंत आया। गरीब दीनहीन की दुर्दशा, महंगाई की मार, भ्रष्टाचार का विकट जाल, ले वसंत आया। जाति धर्म के नाम रचित, चक्रव्यूह कितने, नित नए षड्यंत्र मनुज के, ले वसंत आया। हर दहली पर, मां बहन बेटी का अपमान, बगिया में भंवरों की क्रुरता, ले वसंत आया। अब रिश्ते ही, रिश्तों के काटते गले बेरहम, मां के दूध में चलती तलवार, ले वसंत आया। स्वार्थ की मिठास में, खून से तरबतर दामन, तो कहीं दरारों से भरा आंगन, ले वसंत आया। संबंधों में, अपनों के लिए बदल गये अपने, बाजार से झूठ बोलते आईने, ले वसंत आया। अदली बदली सरकारें, बिन बदले मतदाता, भोर सुहावनी मृग मरीचिका, ले वसंत आया। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #वसंत
हरीश भट्ट
आया वसंत उर आंगन में प्रति पल पल पीत हुई धरती । ले स्नेह निमंत्रण सूरज की मृदु किरणे नभ से हैं झरती ।। तितलियों का कैसा गुंजन ये ... कोलाहल सा अमराई में । ऋतु बदल रही चोली चूनर सब व्याधि त्रास को हैं हरती ।। ©हरीश भट्ट #वसंत
मोहित खान
एक किरण चमक रही है उसमे हजारी तरंग निकस रही है वसंत के राजा कामदेव के पुत्र की जैसे लालिमा दलक रही है ©मोहित खान #वसंत
sarika thakur
वसंत आया है, ऐसे ही तुम भी आओ ,पीली सरसों खिली, कोयल की कूक बोली, पेड़ों पर फूल खिले, फूलों से भंवरे मिले,मिलकर कहने लगे वसंत आया है तुम भी चले आओ वसंत