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Anjaan Saraswat

#अंजान सारस्वत# बाल कविता

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बचपन और शैतानी बाल कवता:
बिल्लु
---------------------
चुन्नू-मुन्नू प्यारे गिल्लू
लेई आए इक काला बिल्लू

चुन्नू आखै, एह् मैं लैना
मुन्नू आखै, एह् मैं लैना

दौन्नी दी भी होई लड़ाई
लड़ी मरोए भाई-भाई

दादी आई लाई खड़ाऊं
बिल्लू करदा म्याऊं-म्याऊं

दादी आखै, गिल्लो आओ
बिल्लू मेरै कोल लेआओ

भामें एह् ऐ काला बिल्लू
एह् बी तुंदे आंगर गिल्लू

एह्नै बी अञें होना-जीना 
बिल्ली मां दा दुद्धू पीना

बिल्लू गी बिल्ली कश छोड़ो
जाओ तौले-तौले दौड़ो

दादी ने जे गल्ल समझाई
छोड़ी आए बिल्लू भाई

उंदी बी गल्ल समझा आई
मुक्की सारी हून लड़ाई
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पंकज सारस्वत #अंजान सारस्वत# बाल कविता

Anjaan Saraswat

#अंजान सारस्वत# कविता- ग्लानि

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I regret ग्लानि
००००००००००००००
सहसा ही मेरा हाथ उसे 
गिरने से बचाने वाला था, 
ना जाने क्यों मैं
अड़ा रहा,
बुत्त सा हो के मैं 
खड़ा रहा,
था
रहा खड़ा बस
ज्यूं का त्यूं;
नज़रों मे मेरी
नज़रें डाले,
उसने झल्ला कर 
मुझसे कहा:
मुझ पे यह
मेहरबानी करने 
आए हो कहां से, 
बतलाओ?
चलो दूर हटो!
रस्ता नापो!
मुझ पे यूं रहम
करने वाले, 
तुम होते कौन हो? 
यह सुन कर 
मैं था सुन्न हुआ
और....
मौन रहा!...
०००००००००००००००
पंकज 'अंजान' #अंजान सारस्वत# कविता- ग्लानि

meena

मां सरस्वती सार दो। #कविता #सायरी#कहानी #navratra

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विद्या दायिनी हो आप
मां सरस्वती सार दो
अपने ज्ञान के भण्डार से,
मन-मस्तिष्क को हमारे तनिक सा तार दो।

आपकी सरण मे है हम बालक
हम पर  अपनी कृपा वार दो।
मुझ अज्ञानी को
ज्ञान भण्डार दो।
मां सरस्वती सार दो ।
मां सरस्वती सार दो।
बोलो सरस्वती मईया की जय

©meena मां सरस्वती सार दो।
#कविता #सायरी#कहानी

#navratra

Anjaan Saraswat

युद्ध नाद 
००००००००००००००
नाना अनुनय के शंद पढे़,
हम याचनाएँ नित करते रहे,
पर उसने एक ना मानी है!
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।।

कमज़ोर पे उसने बल डाला,
चहूं और है ऐसा छल डाला,
कायर ने छाती तानी है,
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।

कुदृष्टी ऐसी प्रबल डाली,
सब बसुधा उसने खल डाली,
नित करता वह नादानी है,
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।

धम्भी ने जाल विछाया है,
बच्चा-बच्चा थर्राया है, 
खुद को समझे नाफानी है,
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।

वह कहता है 'भगवान हूँ मैं,
ना माने तो, शैतान हूँ मैं,
कोई ना मेरा सानी है',
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।

कई बार है उसको चेत्ताया,
हमने पुरज़ोर है समझाया,
हाय कैसा वह अज्ञानी है!
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।

हर जीव का उसने त्रास किया,
मनु जीवन का उपहास किया,
कैसा दम्भी अभिमानी है,
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।।

ऐसे पौरुष का लाभ है क्या?
डर कर जीने का भाव है क्या?
समझो, तब व्यर्थ जवानी है,
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।

अब फैंसला इसी क्षण होगा,
मिट्टी में मिट्टी तन होगा,
जब वीर धरा पर उतरेंगे,
अति घोर भयंकर रण होगा!
००००००००००००००००
कापि र० अंजान सारस्वत #अंजान#सारस्वत#कविता#वीर-रस

KRISHNA DIGITAL

सरस्वती मां # सरस्वती मां #समाज

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सरस्वती मां

©Krishna Kumar सरस्वती मां
# सरस्वती मां

Suraj Saraswati

केदारनाथ सिंह कविता : आना आवाज़ : सूरज सरस्वती #Hindi #Poetry #poems #hindipoems

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