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Neophyte
बचपन से समझौता कितना सस्ता होता है अब हर बच्चे के कंधे पर बस्ता होता है कभी कदम न रुके ऐसा बचपन भी होता था अब स्कूल से आकर ही हालात खस्ता होता है ! बस्ता!
Gul Belani
खुद को शायर बताने में डरता था कहीं लोग झोला छाप या बस्ता लेने वाला बदनाम शायर ना समज बैठै लेकिन आपकी तालियां कुछ ऐसी गूंजी कि मैंने बस्ता उठाया और शायरी करने चल दिया गुल बस्ता
Arun kr.
आवाज़ उठाओ आवाज बनो आवाज उठाओ ,आवाज बनो किसी मजबूर की सहारा बनो ना बल से ना धन से सही किसी असहाय की आवाजों की जोर बनो क्योंकि जब मिलती हैं आवाजें तो शोर मचती है तब जाके शासन की तख्ता हिलती है तभी बदहाल भरी जिंदगी में रौनक आती हैं किसी असहाय और मजबूर के जीवन मे खुशहाली भरती हैं एक बात शत प्रतिशत सही हैं तुम अकेले आवाज उठाओ तुम्हे अनदेखा कर गूंगे ,बहरे और अंधे बन बजाएंगे और जब सब मिलकर बोलोगे तो बहरे भी सुन जाएंगे तो देर किस बात की जहाँ दिखे अन्याय वहां सब मिलकर करो हाई-हाई ये मत सोचो इसमें मेरा क्या क्योंकि विपत किसी को बोल कर नही आती और जब कभी खुद पर आए तो लोग ये न कहे इसमें मेरा क्या अंत मे यही आवाज उठाओ ,आवाज बनो। ©Arun kr. #आवाज उठाओ
Avinash Jha
ख़्वाबों का बस्ता पंख लगे पावों में की मुझको आज उड़ने दे मौसम की पहली बारिश में मुझको भींगने दे, लंबा है सफ़र और उम्र अभी कच्चा है कुछ ख़्वाबों से भरा मेरा बस्ता है. ख़र्चने है उन ख़्वाब को कर सौदा, है ख़रीदना मुझको हक़ीक़त को, ज़िंदगी के सफ़र में बेमोल बिक जाती ख़्वाब सारे ज़रूरतों की दौड़ में अधूरे रह जाते सपने अपने. सितारों के संग मैं दौड़ लगाऊ सूरज पर अपना नाम लिख आऊ, कुछ ख्वाइशें ऐसी ही अपनी रौशन कर आऊ नाम अपना मैं भी. छुप जाऊ खटखटा कर द्वार कोई अंजान चुरा कर तोड़ लू पेड़ों से फल बेज़ुबान, हो कर कल से बेख़बर जी लू इस पल को मैं, भींग जाऊ यारों संग बारिश की हर बूंदो में. बचपन की वो नादानियां पाक दिल की वो शरारतें, ख़्वाबों से भरा है बस्ता अपना जीने मैं इनको आज चला. ©avinashjha ख़्वाबों का बस्ता
हार्दिक कुमार झा
मेरे बसेरे पे आया कोई मेहमान है क्या? बस्ते भरे - भरे है इतना समान है क्या? पिछले वाले ने तो तिनका - तिनका छान लिया, इस बार भी लूट जाऊ इतना आसान है क्या? ©हार्दिक कुमार झा #मेहमान #बस्ता #बसेरा #इश्क़
Vibhaw Mishra
तुम्हारी यादों को बस्ते में लिए दर दर भटकता हूं तुम मिल जाओ कहीं किसी मोड़ पे यही बात पल पल सोचता हु कभी भटक जाता हु कभी थक जाता हूं तो कभी रूक जाता हूं कभी मन करता इस बस्ते को ही कहीं फेक दूं ना जानें क्यों ये हाथ रूक जाता है तुम्हारी यादों से ये याद क्यों नही जाती जीने की और कई राह है फिर वो क्यू नही नजर आती तुम हों नही तो फिर ये क्यों नही रुक जाती ©Vibhaw Mishra यादों का बस्ता #safar
जीtendra
अब बस्तों में कैद है मौत का सारा बंदोबस्त, वो इन धमाकों को ही अपनी पढ़ाई समझता है... #मुसलमान #धमाके #maut #बस्ता
Dakshi Raj
किसी के अच्छाई का इतना भी फायदा मत उठाओ की वो बुरा बनने को मजबूर हो जाये, याद रखना... बुरा वही बनता है जो अच्छा बनकर थक चुका होता है ©Dakshi Raj फायदा मत उठाओ #Her