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Bazirao Ashish
असित - गिरि - समं स्यात् कज्जलं सिन्धु - पात्रे । सुर - तरुवर - शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ॥ लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं । तदपि तव गुणानामीश पारं न याति ॥ अर्थ: हे प्रभु (शिव जी)! यदि नीले या काले रङ्ग के समान पर्वतों को सागर रूपी दवात में घोलकर काली स्याही और देवलोक के कल्पवृक्ष की शाखाओं की लेखनी/कलम बनायी जाय/जा सके। यदि माँ शारदा/सरस्वती स्वयं अनन्तकाल तक आपके गुणों की व्याख्यान लिखती रहें तब भी आपके सम्पूर्ण गुणों का को नहीं लिखा जा सकता। अर्थात् आप आदि व अनन्त हैं। 🙏 ©Bazirao Ashish असित - गिरि - समं स्यात् कज्जलं सिन्धु - पात्रे । सुर - तरुवर - शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ॥ लिखति यदि गृहीत्वा
Pushkar Bhardwaj
बड़े दिनों बाद उन गलियों में आया हूँ कुछ गुजरे पलों की बिखरी किताब लाया हूँ एक बुढ़िया थी जो अक्सर दरवाजे पर बेठा करती थी शहर से आने वाली हर गाड़ी को निहारा करती थी एक बिखरे से कागज पर कुछ नम्बर बताकर हर किसी से फोन मिलाने की अरदास किया करती थी मेने अक्सर उसकी दहलीज पर बिखरते निवालों को देखा था अपनों की याद में बूढी निगाहों को तरसते देखा था पर अफसोस आज उन पेड़ों में पतझड़ आया है शहर से कोई ना मिलने आया है हाल देख उसकी बदहाली का अर्थी पर सजे फूलो में लिपटे कफन में सुलगता उफान आया है #भारद्वाज पुष्कर तड़प तडप तड़प
Tsen Meher
तडप तडप के जीना.. तडप तडप के मरना... क्या जीन्दगी मेरी... ना बेवफा है वो.. ना बेवफा हुँ में... फिर भी है मजबूरी... तडप तडप के ..
Kc Chandel King
ऐ खुदा बस इतना सा करम कर दे मेरी सारी खुशियां उसे देदो उस के सारे गम मुझे दे दो चोट उसे लगे ओर आत्मा मेरी दुखे तड़प
Shantisagar (Sy)
अभी सूरज नहीं डूबा, जरा-सी शाम होने दो अभी उसकी यादें आयेंगी, जरा-सा अंधेरा छाने दो #तडप
संजय श्रीवास्तव
तड़प *************** तुम कायर होकर भी क्यूँ मेरे वजूद में समाये हो ! प्रेम की मूक भाषा में मुझे भरमाये हो ! बस एक लफ्ज में ही तुम समेट लेना चाहते हो सागर की अनंत गहराई को ! बस एक बार मे ही छू लेना चाहते हो अंतरिक्ष की ऊंचाई को ! कितने उतावले हो तुम्हें पता है दूर दूर तक फैली बर्फ भी तभी पिघलती है ! जब सूर्य की रश्मियाँ धीरे धीरे वसुधा के आगोश में मचलती है कब समझ पाये तुम मेरे अहसास ! शब्दों को गूंथ कर कागज पर उतार देने का हुनर दुनिया की भीड़ से इतर और तुम्हारा विश्वास ! कुछ देर के लिये विचलित तो करता है पर हावी नही होता ! कितने मौसम आये कितने आयेंगे ! हम तो जी रहे है और जीते जायेंगे ! क्या फर्क पड़ता है तुम लिख देना एक खूबसूरत गजल कैसे हुआ तुम्हारा इश्क़ निष्फल ! अपनी कायरता का जिक्र मत करना अपनी कविताओं में ! ये तो तुम्हारा अधिकार है कुछ भी लिखो सच या झूठ ! पर सच कहां लिख पाओगे तुमने तो कविता का सुंदर शीर्षक सोच रखा है बेवफा सनम ! संजय श्रीवास्तव तड़प