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Silent Lover

हसरतों को चाँद की खूँटी पे टांग आये हैं, इस बार खुदा से कुछ  हसरतों को चाँद की

खूँटी पे टांग आये हैं,

इस बार खुदा से तुम्हारी सलामती 

की दुआ माँग आये हैं। #हसरतों_को_चाँद_की

#खूँटी_पे_टांग_आये_हैं,

#इस_बार_खुदा_से_तुम्हारी_सलामती 

#की_दुआ_माँग_आये_हैं।

Bazirao Ashish

जिन्दगी कमरे में लगी खूँटी-सी हो गयी है। लोगों को हम तभी याद आते हैं। जब कंधों पर मेरे जिम्मेदारियाँ टाँगनी होती हैं। ◆आशीष●द्विवेदी◆ #विचार

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जिन्दगी कमरे में लगी खूँटी-सी हो गयी है।
लोगों को हम तभी याद आते हैं।
जब कंधों पर हमारे जिम्मेदारियाँ टाँगनी होती हैं।

◆आशीष●द्विवेदी◆

©Bazirao Ashish जिन्दगी कमरे में लगी खूँटी-सी हो गयी है।
लोगों को हम तभी याद आते हैं।
जब कंधों पर मेरे जिम्मेदारियाँ टाँगनी होती हैं।

◆आशीष●द्विवेदी◆

Shashi Nandan

महिलाओं पर अमानवीय प्रथाओं का बोझ हटाओ, रूढ़िवादी परम्पराओं को घर के खूँटी पर लटकाओ । मानसिकता को बदल उन्हें सम्मान-अधिकार देना है, हर बेटी क #womenempowerment #girls #महिलासशक्तिकरण #बालिका #राष्ट्रीयबालिकादिवस #24thjanuary

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 महिलाओं पर अमानवीय प्रथाओं का बोझ हटाओ,
रूढ़िवादी परम्पराओं को घर के खूँटी पर लटकाओ ।
मानसिकता को बदल उन्हें सम्मान-अधिकार देना है,
हर बेटी क

Parul Sharma

हसरतों को चाँद की खूँटी पर टांग आये है इस बार खुदा से कुछ.... भी कहने सुनने माँगने की सारी गुँजाइशें खत्म की हमने बस अपने आँशूओं को आसमाँ म #nojotoofficial #2liner #nojotohindi #nojotoquotes #kalakash #panchdoot_social #TST #likho_india #NojotoWODHindiquotestatic #Emotionalhindiquotestatic #CTL

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हसरतों को चाँद की खूँटी पे टांग आये हैं, इस बार खुदा से कुछ   



भी कहने सुनने माँगने की
सारी गुँजाइशें खत्म की हमने
बस अपने  आँशूओं को
आसमाँ में टाँक के आये है
कि जब खुदा चले तो 
धुल जाये चरण उनके 
और शायद याद आ जाये
उन्हें गम मेरे 
पारुल शर्मा हसरतों को चाँद की
खूँटी पर टांग आये है
इस बार खुदा से कुछ....
भी कहने सुनने माँगने की
सारी गुँजाइशें खत्म की हमने
बस अपने  आँशूओं को
आसमाँ म

CalmKazi

#दीवार #calmkaziwrites #yqdidi #yqbaba Written with tremendous inputs from Saket Garg Prasoon Vyas Ayena Makkar Girdhar and Shubhi Khare #ख्याल #हिंदी #कविता #calmkazicollabs

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मेरे कोनों में,
अपने दम्भ का,
सोफा सटा देती हो ।।

मेरे उखड़ते चूने को,
अपने काजल से,
भर देती हो ।।

स्याह दीवार बना रख छोड़ा है ।। #दीवार #CalmKaziWrites #YQDidi #YQBaba 

Written with tremendous inputs from Saket Garg Prasoon Vyas Ayena Makkar Girdhar and Shubhi Khare

AK__Alfaaz..

​प्रेम सदा ही संवेदना की जमी पर ही उगता है.. कहने का आशय यह है कि..कोई स्त्री जब अपने बाबुल के यहाँ जन्म लेती है तो वह जगह उसकी संवेदना की भ #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqquotes #bestyqhindiquotes

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इक दिन संवेदना की जमीन से,
प्रेम को उखाड़ा मैने,
​और टाँग दिया,
​मोहब्बत की कच्ची दीवार पर,
​विश्वास की तिरछी लगी एक खूँटी के सहारे,
​क्या पता था...प्रेम भी तिरछा ही टँग जायेगा,
​उस मौन तस्वीर की भाँति,
​जो चेहरे की मुस्कान तो साथ लिए है अरसे से,
​पर...कुछ कहती नहीं,
​बस...अविश्वास की आँधियों में,
​डोलती है इधर से उधर,
​एक स्थिर सहारे की तलाश लिए,
​और...आँधियों के थमने पर यथावत हो जाती है,
​उन आँधियों के फिर लौटने के इंतजार में,
​कि ..कब,
​कोई हवा का ऐसा झोंका चले,
​और....स्वतंत्रता की फर्श पर गिरकर,
​उसे आजीवन इस...अस्तित्व से मुक्ति मिलें..।। ​प्रेम सदा ही संवेदना की जमी पर ही उगता है.. कहने का आशय यह है कि..कोई स्त्री जब अपने बाबुल के यहाँ जन्म लेती है तो वह जगह उसकी संवेदना की भ

AK__Alfaaz..

#पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #रिवाज़ आओ...! कुछ देर साथ बैठतें हैं, ​मन के बरामदे मे, ​एक विश्वास की, #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqquotes #bestyqhindiquotes

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आओ...!
कुछ देर साथ बैठतें हैं,
​मन के बरामदे मे,
​एक विश्वास की,
​आराम कुर्सी पर तुम बैठना,
​एक प्रेम की खाट पर मैं,

​किंतु आने से पूर्व,
अपने ​अहम के स्वेद से लथपथ,
​अपनी रूढ़ियों की कमीज को,
​दिल के कमरे मे,
​समर्पण के दरवाजे के पीछे लगी,
​संवेदना की खूँटी पर टाँग देना,
​ताकि तेरे पुरूषार्थ मे डूबे,
​तेरे गर्व की बू न फैले यहाँ,​​
​ #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे

#रिवाज़

आओ...!
कुछ देर साथ बैठतें हैं,
​मन के बरामदे मे,
​एक विश्वास की,

धीरज झा

#भिखारी_बेटा मैंने देखा था एक रोज़ एक बेटे को भीख मांगते हुए हट्टे-कट्टे नौजवान गबरू को ट्रेन, बसों, मंदिर, मजारों गुरुद्वारों की खाक छानत

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#भिखारी_बेटा 

मैंने देखा था एक रोज़
एक बेटे को भीख मांगते हुए
हट्टे-कट्टे नौजवान गबरू को
ट्रेन, बसों, मंदिर, मजारों 
गुरुद्वारों की खाक छानते हुए
मैंने देखा था एक रोज़
एक बेटे को भीख मांगते हुए

थे तन पर कपड़े अच्छे 
मगर भूखा लग रहा था
गोर चिट्टा लड़का जिसका
मुंह प्यास से सूखा लग रहा था
उस पढ़े लिखे को देखा 
इज़्ज़त अपनी खूँटी पे टांगते हुए
मैंने देखा था एक रोज़
एक बेटे को भीख मांगते हुए

कमाल की थी बात 
ना उसको थे रुपये पैसे चाहिए 
कह रहा था जिसको जो चाहिए 
मुझसे से ले जाइए 
नोट थे रखे हुए मगर 
झोली फैलाई थी 
ना जाने उसने शर्म
कहां बेच खाई थी 
सबके सामने झुका रहा था सिर
अपने उसूलों को लांघते हुए
मैंने देखा था एक रोज़
एक बेटे को भीख मांगते हुए

वो पैसे ना रुपये ना मदद मांग रहा था
'दुआ करना' सबसे उसने यही कहा था
था बाप लड़ रहा लड़ाई ज़िंदगी मौत की
अब दुआओं का था आसरा 
वैसे तो कोशिश बहुत थी कर ली 
हर जगह से दुआएं था इकट्ठी कर रहा 
आंखों के सामने जब था बाप मर रहा 
झूठी उम्मीद में जिये जा रहा था
सब कुछ सच जानते हुए
मैंने देखा था एक रोज़
एक बेटे को भीख मांगते हुए

धीरज झा #भिखारी_बेटा 

मैंने देखा था एक रोज़
एक बेटे को भीख मांगते हुए
हट्टे-कट्टे नौजवान गबरू को
ट्रेन, बसों, मंदिर, मजारों 
गुरुद्वारों की खाक छानत

AK__Alfaaz..

#पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #मन_का_मकान उसके, ​मन के, ​​मकान का, ​एक चौकोर कमरा, #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqquotes #bestyqhindiquotes

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उसके,
​मन के,
​​मकान का,
​एक चौकोर कमरा,
​जहाँ दीवारें चार,
​ना कोई दहलीज,
​ना कोई दरवाजा,
​
​बस,
​एक उम्मीद की बंद खिड़की,
​जो खुलती साल के,
​सावन मे एकबार,
​और..,
​बटोरकर सीलन गम की,
​दर्द की कुंडी लगा,
​बंद कर दी जाती,
​हर रात, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#मन_का_मकान

उसके,
​मन के,
​​मकान का,
​एक चौकोर कमरा,

Gautam_Anand

एक नोटबुक है एहसास की जिल्द मढ़ी हुई यादों के धागे से जिसमें नत्थी कर रखे हैं मैंने समय के पन्ने और समय व्याकुल है वो चाहता है बीत जाना लेकि

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एक नोटबुक है
एहसास की जिल्द मढ़ी हुई
यादों के धागे से जिसमें
नत्थी कर रखे हैं मैंने 
समय के पन्ने
और समय व्याकुल है
वो चाहता है बीत जाना
लेकिन बेबस लाचार सा अटका हुआ है
अनंत वर्षो से इसी नोटबुक में
मैंने बंधक बना रखा है समय को 
और टाँगता रहता हूँ
याद की खूँटी पर
बीते वक़्त बीती तारीखें
आँखें जैसे खोज़ी कलम हो कोई
ढूंढ लाती हैं सब यादें
ऊकेर देती हैं सब तारीखें
वैसे ही जैसे गुज़रा था सबकुछ
पन्नों पर बोल पड़ती हैं वो सब तस्वीरें
देखो अभी-अभी सामने से गुजरी है
वो पहली तारीख तेइस नवम्बर निन्यानवे की
जब तुम्हें देखा था पहली बार
तुम्हारे लौट जाने पर यूँ ही मेरी मायूसी के दिन
तुम्हारे पहले फोन कॉल की तारीख
वो तुम्हारे कॉलेज की परीक्षा का पहला दिन
कॉलेज के पास वाली नदी का किनारा
जब मैं पहली बार तुमसे तुम्हारे शहर में मिला था 
चौदह फरवरी दो हज़ार दो 
और वो एक सीढ़ीनुमा लक्ष्मी रेस्टोरेंट
जहाँ खाने को कुछ नहीं होता था
बस साथ बैठने को सीढ़ियाँ मिल जाती थी  एक नोटबुक है
एहसास की जिल्द मढ़ी हुई
यादों के धागे से जिसमें
नत्थी कर रखे हैं मैंने 
समय के पन्ने
और समय व्याकुल है
वो चाहता है बीत जाना
लेकि
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