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Alok Vishwakarma "आर्ष"
तुम्हें मैं दूँ नए से शब्द, लेखन के प्रयोजन को । उतारो तुम उन्हें निज पृष्ठ में, बह कलम से स्याही ।। मेरा तो काम है बस, रोपना एक बीज माटी में । नयन के धार से सिंचित करो, बन प्रेम का राही ।। तुम्हें मैं दूँ नए से शब्द, लेखन के प्रयोजन को । उतारो तुम उन्हें निज पृष्ठ में, बह कलम से स्याही ।। मेरा तो काम है बस, रोपना एक बीज माटी मे
Kulbhushan Arora
शुभ हो आनंदमय हो जीवन, आज तुम्हारा है जन्मदिन 🪔🪔🎂🎂🪔🪔 Dedicating a #testimonial to स्वस्तिका (सखी) तुम्हारे जीवन में आए उजाला, कुछ तो बहुत शुभ है होने वाला, स्वस्तिका नाम का तो अर्थ यही, जन्मदि
Kulbhushan Arora
मन के उपवन में अच्छी सोच के बीज डालेंगे, सुगंधित पुष्प ही खिलेंगे 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 सुप्रभात🙏🏼🙏🏼सुविचार😍😍 किसी के लिए अच्छा सोचना, दरअसल है अच्छाई के बीज रोपना, इन रोपित बीजों को होता है फूटना, मुश्किल होता है तब सुगंध को रो
अशेष_शून्य
हम दोनों रचनाकार हैं ईश्वर ! तुम सही कहते हो हमारा दायित्व बस वर्तमान को गढ़ना है। ~©Anjali Rai सौभाग्यशाली मनुष्यों के हिस्से में आता है प्रेम पर मेरे हिस्से में आया वो ईश्वर जो स्वयं इस भाव से वंचित था
SK pant
पृथिवी दिवस पर विशेष... 👇👇👇 पढ़े.. ©SK pant ( I.A.S ) *पृथ्वी दिवस पर करणीय* १- वृक्ष लगाकर उनका शृंगार करेंगे। २-देशी गाय के गोबर से उनका भरण पोषण करेंगे। ३- उनके शरीर पर पालीथिन नाम का कलंक न
अशेष_शून्य
~©Anjali Rai— % & कुछ लड़कियां सपनों के लिए तपना जानती हैं कुछ लड़कियां खुद को गढ़ना जानती है कुछ लड़कियां अपने किस्से में धूप और छांव होना जानती हैं
अशेष_शून्य
इक प्यारी सी लड़की को उसका हर दिन मुबारक 💞— % & Dedicating a #testimonial to Neha _ Sh Dear नेहू , मैं जानती हूं कि बहुत लेट हो चुकी हूं वक्त पर प्रेम लौटना मुझे नहीं आता सच कहती हूं बहुत
एक अजनबी
एक पुरुष और स्त्री के आपसी संबंधों की परिणति, सिर्फ देह ही तो नहीं हो सकती। क्या एक स्त्री और पुरुष किसी और तरह नहीं बँध सकते आपस में ? और बँधें ही क्यों ? उन्मुक्त भी तो रह सकते हैं, समाज के बने बनाए एक ही तरह के खाके से जिसमें सदियों पुरानी एक सड़ांध सी है। एक स्त्री और पुरुष बौध्दिकता के स्तर पर भी एक हो सकते हैं उपन्यास, कविताएँ, कहानियों, ग़ज़लों पर विमर्श करना कहानियों की पौध रोपना क्या दैहिक सम्बन्धों की परिभाषाएँ लाँघता है ? एक स्त्री और पुरुष-घण्टों बातें कर सकते हैं फूल के रंगों के बारे में, तितलियों के पंखों के बारे में, समुद्र के दूधिया किनारों के बारे में, और ढलती शाम के सतरंगी आसमानों के बारे में, पत्तों पर थिरकती, बारिश की सुरलहरियों के बारे में; इनमें तो कहीं भी देह की महक नहीं, दूर - दूर तक नहीं। फिर दायरे, वही दायरे बाँध देते हैं दोनों को। एक स्त्री और पुरुष- आपस में बाँट सकते हैं - एक दूसरे का दुःख, ठोकरों से मिला अनुभव, कितनी ही गाँठें सुलझा सकते हैं, साथ में मन की। मगर, नहीं कर पाते, ......क्योंकि दोनों को कहीं न कहीं रोक देता है, उनका स्त्री और पुरुष होना। एक स्त्री और पुरुष - के आपसी सानिध्य की उत्कंठा - की दूसरी धुरी.. आवश्यक तो नहीं कि दैहिक खोज ही हो; मन के खाली कोठरों को सुन्दर विचारों से भरने में भी सहभागी हो सकते हैं - स्त्री और पुरुष। यूँ भी तो हो सकता है कि - उनके बीच कुछ ऐसा पनपने को उद्वेलित हो, जो देह से परे हो, प्रेम की पूर्व गढ़ित परिभाषाओं से भी अछूता हो, क्यों न दें इस नई परिभाषा को? स्त्री और पुरुष के बीच। ©एक अजनबी #एक_स्त्री_और_पुरुष #कृपया_पूरी_पढ़े 🙏🏻 *एक पुरुष और स्त्री के आपसी संबंधों की परिणति, सिर्फ देह ही तो नहीं हो सकती। क्या एक स्त्री और पुर
अशेष_शून्य
~©Anjali Rai ये मशीनी दुनिया है जिसमें हर क्षण मशीन बने रहने की होड़ लगी है सब भाग रहें हैं मैं फिर दोहराऊंगी बिना ये जाने की भागना जरूरी भी है या
अशेष_शून्य
"प्रेयसी होती होगी गुलाबी गुलाब ! पर पत्नी सिंदूरी गुलमोहर होती है।" ~© अंजली राय प्रेयसी होती होगी रूमानी गुलाबी गुलाब ! जो खुले केशों में बिखरी बिखरी पंखुड़ियों सी खींचना, खीझना रिझना, रिझाना तितलियों सी इठलाना रूठना,